भोपाल

पुलिस रिसर्च लैब में बनाएगी साइबर ठगों की कुंडली, बताए डीपफेक-डार्कवेब से बचने के 4 तरीके

patrika raksha kavach abhiyan: डीपफेक और डार्कवंब से ठगी के मामले बढ़े, सािवर पुलिस करेगी अपराधों पर शोध, तैयार करेगी ठगों की कुंडली…

भोपालDec 07, 2024 / 02:34 pm

Sanjana Kumar

Patrika Raksha Kavach Abhiyan: बदलती तकनीक ने भले ही हमारे जीवन में बहुत सी चीजें आसान कर दी हों लेकिन, तकनीक के दुरुपयोग ने हमारी मुश्किलें कई गुना बढ़ा दी है। पुलिस के सामने भी ये चुनौतियां बड़ी हैं। सामान्य साइबर क्राइम के साथ अब डीपफेक और डार्कवेब अपराधों में भी इजाफा हुआ है। इनसे निपटने के लिए साइबर पुलिस अब हेडक्वार्टर में एक एडवांस रिसर्च लैब तैयार करने वाली है। जिसमें डीपफेक और डार्कवेब के जरिए होने वाली घटनाओँ की रिसर्च की जाएगी। इसके लिए बकायदा इस विधा में एक्सपर्ट लोगों को भी रखा जाएगा। इसी के साथ अभी मौजूद फॉरेंसिक लैब को भी और अधिक हाईटेक बनाया जाएगा।
देश में इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 के तहत डीप फेक संबंधी मामलों से निपटा जाता है। प्राइवेसी की सुरक्षा के लिए कई प्रावधान हैं। यदि कोई डीपफेक वीडियो या तस्वीर बनाकर कानून तोड़ता है तो उसकी शिकायत की जा सकती है। इस कानून की धारा 66-डी के तहत गुनहगार पाए जाने पर तीन साल कैद और 1 लाख रुपए तक जुर्माना हो सकता है।

ऐसे समझें डीप फेक का संक्रमण

केस-1

लोकसभा चुनाव के वक्त तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह से जुड़ा कौन बनेगा करोड़पति से जुड़ा वीडियो आया। इसमें पूछा था-किस सीएम को घोषणा मशीन कहते हैं। इस वीडियो को डीप फेक के जरिए बनाया गया था।
केस-2

भोपाल की छात्रा की इंस्टाग्राम पोस्ट से फोटो निकालकर पोर्न में तब्दील कर वायरल किया गया। पहले वह समझ नहीं पाई। पत्रिका की मदद से पुलिस तक पहुंची तो एक्सपर्ट ने कहा, डीपफेक का इस्तेमाल किया गया।

आतंकी भी डार्कवेब से करते हैं संवाद

साइबर अपराधी के साथ- साथ आतंकी भी डार्कवेब का इस्तेमाल करते हैं। खासतौर पर संवाद के लिए डार्कवेब का सबसे ज्याद इस्तेमाल हो रहा है। ताकि आसानी से उन्हें पकड़ा न जा सके। खैर अभी भी पुलिस ऐसे सिस्टम पर लगातार निगरानी करती है। लेकिन इनकी चेन को पकड़ने के लिए अब हाईटेक सिस्टम को पुलिस विकसित कर रही है।

डीपफेक को लेकर ये है कानून

भारत में इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 के तहत डीपफेक संबंधी मामलों से निपटा जाता है। नागरिकों की प्राइवेसी की सुरक्षा के लिए इस एक्ट में कई प्रावधान किए गए हैं। ऐसे में अगर कोई डीपफेक वीडियो या तस्वीर किसी की मर्जी के बगैर बना कर कोई कानून तोड़ता है तो उसके खिलाफ शिकायत की जा सकती है। इस कानून की धारा 66 डी के तहत किसी के गुनहगार पाये जाने पर उसे तीन साल तक की सजा और 1 लाख तक का जुर्माना हो सकता है।

इस तरह बच सकते हैं

व्यक्तिगत फोटो, वीडियो सोशल मीडिया में साझा करने से बचें। प्रोफाइल प्राइवेट रखें। अनजान वीडियो कॉल रिसीव न करें।

डीपफेक कंटेंट को पहचानें कैसे

फोटो, वीडियो के आईब्रो, लिप्सिंग के मूवमेंट से पहचानें कुछ प्लेटफॉर्म एआइ जनरेटेड कंटेंट के लिए वॉटरमार्क भी इस्तेमाल करते हैं। ऐसे मार्क या डिसक्लेमर ध्यान से देखें।

डीपफेक और डार्कवेब से क्राइम बढ़े

डीपफेक व डार्कवेब से क्राइम बढ़े हैं। जांच के लिए साइबर एचक्यू में रिसर्च लैब बनेगी।

योगेश देशमुख, एडीजी साइबर

डीपफेक के सॉफ्टवेयर और एप्लीकेशन पर लगे वॉटर मार्क

जिसके जितने ज्यादा सोशल मीडिया में वीडियो और फोटो मौजूद होंगे उसका उनता रियल डीपफेक कंटेट बनेगा। इसलिए कम से कम पब्लिक में वीडियो फोटो शेयर करें। दूसरा सरकार इसको लेकर ठोस कानून बनाए। जो डीपफेक के सॉफ्टवेयर और एप्लीकेशन मौजूद हैं उन पर वॉटर मार्क लगे ताकि डीपफेक कंटेंट की पहचान हो सके या इन पर बैन लगे।
-सन्नी नेहरा, सायबर एक्सपर्ट

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