मुरैना में भी इस गिरोह से जुड़ा एक अपराधी मिला है। राजधानी में अब तक चाइल्ड पोर्नोग्राफी का कोई मामला भले ही सामने नहीं आया हो लेकिन बच्चोंं के यौन शोषण और लैगिंग अपराधों के कई मामले सामने आ चुके हैं। साफ है कि शहर के कई बच्चों पर भी अपराधियों की गंदी नजर पड़ चुकी है। ऐेसे में बच्चों को हमारे आपके बीच के इन अपराधियों और ऐेसे खतरनाक अपराध से बचाया जाना जरुरी है।
केस 1. प्यारे मियां कम उम्र की बच्चियों को पढ़ाई और परवरिश कराने के बहाने गोद लेता था। इन बच्चों को खास तरह की डाइट देकर जल्द बड़ा किया जाता था। फिर उन्हें नशे की लत लगाकर पार्टियों में रसूखदारों के सामने पेश किया जाता था। यौन शोषण के आरोप में प्यारे मियां जेल में बंद है वहीं इस मामले की कई परतें तो अब खुल ही नहीं सकीं।
केस 2. पुराने शहर में रहने वाले कुछ किशोरों ने लॉकडाउन में पोर्न मूवी देखी। इसके बाद 12 साल के बच्चे का लैगिंक शोषण भी किया। बच्चों के चाचा की शिकायत पर पुलिस ने कार्रवाई करते हुए किशोरों को बाल सुधार गृह भेजा। वहां उनकी काउंसलिंग की गई। जिसमें सामने आया कि उन्हें लंबे समय से पोर्न देखने की आदत थी।
बच्चों के शोषण के खिलाफ बड़ा कानून
साइबर लॉ एक्सपर्ट यशदीप चतुर्वेदी बताते हैं, लैगिंक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम में भी बच्चों के लैगिंक शोषण पर कड़े प्रावधान हैं। इसमें बालक का मतलब 18 साल से कम के किसी भी किशोर-किशोरी या बच्चे से है। कानूनों के अनुसार बच्चों को शोषण से बचाने और उनके शोषण से जुड़ा कोई भी कंटेट प्रसारित होने से रोकने के लिए प्रावधान लागू है। इन कानूनों के अनुसार किसी भी ऐेसे वीडियो, फोटो, या ऐेसे किसी कंटेट जिसमें जिसमें बच्चों का अश्लील चित्रण या लैगिंग क्रियाओं में दिखाया गया हो अपराध है। एेसे कंटेट को रखना, देखना, प्रसारित करना, दिखाना या किसी भी तरह से हस्तांतरित या प्रचारित करना या किसी को देखने के लिए प्रोत्साहित करना गंभीर अपराध में आते हैं।
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शहर में अब तक पोनोग्राफी का कोई मामला सामने नहीं आया है, लेकिन पोर्न मटेरियल देखने और इसे देखकर शोषण के कई मामले सामने आ चुके हैं। बच्चों और किशोर-किशोरियों को शोषण से बचाने के साथ पोर्न से बचाना भी बड़ी चुनौती बनी हुई है।
-अर्चना सहाय, डायरेक्टर, चाइल्ड लाइन
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संक्रमण काल में बच्चे इंटरनेट पर बहुत निर्भर हो गए, पिछले दो सालों से वे इंटरनेट के माध्यम से ही पढ़ाई कर रहे हैं। लेकिन ऑनलाइन पढ़ाई, वीडियो देखने या सर्फिंग के दौरान कई बार अश्लील विज्ञापन या अश्लील साइट की लिंक आ जाती है, बच्चे इस पर उत्सुकतावश क्लिक कर देते हैं जिनसे अश्लील कंटेट तक पहुंच जाते हैं। इस तरह से कई बच्चों के शिकार बनने तो कई बार विधि विरुद्ध जाने के मामले सामने आए हैं। बाल आयोग ने एेसे मामलों को गंभीरता से लेते हुए साइबर सेल सहित सम्बंधित विभागों को बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पत्र लिखा है। वहीं अन्य उपाय भी उठाए जाने की दिशा में कार्य चल रहा है।
-ब्रजेश चौहान, सदस्य, मप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग