भोपाल. दुर्घटना में हड्डी टूटने के बाद इसे जोडऩे का एकमात्र तरीका है प्लास्टर बांधना। लेकिन हफ्तों तक प्लास्टर बांधे रखने का दर्द भी असहनीय होता है। अब हड्डी को जोडऩे के लिए प्लास्टर बांधकर परेशान नहीं होना पड़ेगा। अब सिर्फ तीन दिन ही टूटी हड्डी जुड़ सकती है। अब नई तकनीक नेल्सकॉन के जरिए 2 से 3 दिन में मरीज चलने लायक हो जाता है।
पहले चोट लगने पर लोगों को कम से कम एक से डेढ़ महीने परेशान होना पड़ता था, जिससे न तो वो कहीं जा पाते थे और न ही चल पाते थे। भोपाल के अलग-अलग अस्पतालों में 20 या 25 ऑपरेशन कूल्हे के किए जाते हैं। नई तकनीक से ऐसे पेशेंट को काफी राहत मिलेगी। यह एक ऐसी सर्जरी है, जिसमें हड्डी को जोडऩे के लिए रॉड यानि नेल का इस्तेमाल किया जाता है।
एंटीबायोटिक युक्त रॉड रोकेगी संक्रमण टूटी हड्डी जोडऩे के बावजूद कई बार घाव नहीं भरते। ऐसे में एंटीबायोटिक इंजेक्शन लगाए जाते हैं लेकिन कई बार वे भी काम नहीं करते। ऐसे में अब नई तकनीक एंटीबायोटिक युक्त रॉड है। मरीज को बचाने के लिए सर्जरी में एंटीबायोटिक कोटेड रॉड लगाई जाती है। एंटीबायोटिक लेयर युक्त होने से मरीज के घाव को जल्दी भरने के साथ मवाद नहीं बनने देते।
ये है नेल्सकॉन तकनीक अब बड़ी हड्डियों को जोडऩे के लिइ तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे लोगों को कम समय में जल्द आराम मिल जाए। हमीदिया अस्पताल के अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. राहुल वर्मा बताते हैं कि हड्डी जोडऩे के लिए टूटी हड्डी को नट से कस दिया जाता है। इससे व्यक्ति को तीन दिन में आराम मिल जाता है।
त्योहार पर इन तोहफों से रहें संभलकर, भारी पड़ सकता है लालच नई तकनीक कूल्हे की हड्डी के लिए सबसे उपयुक्त है। विशेषज्ञों के मुताबिक तेज रफ्तार दोपहिया वाहन से गिरने पर चालक के शरीर का पूरा भार हाथ की कलाई या हिप बोन पर आता है। इसलिए हाथ, बाजू या पैर टूटने के अलावा गंभीर चोट कूल्हे की हड्डी या सिर में भी लगती है। हेलमेट से सिर तो बच जाता है, लेकिन हिप बोन (कूल्हे की हड्डी) टूट जाती है।