नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल सेंट्रल जोन बेंच ने सैनिक फूडप्राइवेट लिमिटेड द्वारा लगाई गई याचिका पर गुरुवार को सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिए। याचिका में सीहोर जिले के छीपानेर गांव में नर्मदा नदी की सहायक नहरों और उसके आसपास के क्षेत्र में अवैध तरीके से रेत का उत्खनन होने की शिकायत की गई है। इसमें भारी मशीनरी के साथ सक्शन पंपों का भी इस्तेमाल हो रहा है।
रेत उत्खनन की अनुमति देने के पहले डीएसआर जरूर बनवाएं एनजीटी ने प्रिंसिपल बेंच द्वारा जारी पुराने आदेश का हवाला देते हुए कहा है कि रेत उत्खनन की अनुमति जारी करने के पहले डिस्ट्रिक्ट सर्वे रिपोर्ट विशेषज्ञों से बनवाना जरूरी है। इस डीएसआर में वहां के पूरे पर्यावरण प्रबंधन का प्लान शामिल होगा। यह डीएसआर ऐसे विशेषज्ञों से बनवाई जाएगी जो नेशनल एक्रीडिटेशन बोर्ड ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग या क्वालिटी कंट्रोल काउंसिल ऑफ इंडिया से संबंद्ध हों। डीएसआर रिपोर्ट जिला मजिस्ट्रेट को सौंपी जाएगी वह इसका मूल्यांकन कराएंगे। जिला मजिस्ट्रेट अपने जिले की भौतिक और भूगर्भीय विशेषताओं के आधार पर इसका परीक्षण कराएंगे उसके बाद वह अपनी वेरीफिकेशन रिपोर्ट स्टेट एक्सपर्ट अप्रेजल कमेटी को भेज देंगे। इसमें तकनीकी और साइंटिफिक एक्सपर्ट रहेंगे। यह कमेटी अपनी रिपोर्ट सिया को सौंपेगी। सिया इस रिपोर्ट के आधार पर ही फैसला करेगी कि पर्यावरणीय अनुमति जारी करना है या नहीं।
उत्तराखंड जैसी आपदा रोकना है तो रोकें अवैध उत्खनन एनजीटी ने अपने आदेश में टिप्पणी भी की है कि नदियां प्रकृति का महत्वपूर्ण लाइफ सपोर्ट सिस्टम है। नदियों से अनियंत्रित रेत उत्खनन से आपदाओं को ही आमंत्रण मिलता है क्योंकि इससे नदी का पूरा इकोसिस्टम प्रभावित होता है। हमारा देश उत्तराखंड में हाल ही में आई बाढ़ का प्रकोप देख चुका है। वहां भी रेत और बोल्डर्स का भारी मशीनरी से उत्खनन किया गया था। जबकि रेत और बोल्डर्स नदियों को अपना प्रवाह नियंत्रित करने और अपनी दिशा बदलने से रोकने में मदद करते हैं। यह रिवर बेड के लिए भी बफर का काम करते हैं। अनियंत्रित तरीके से रेत उत्खनन से नदी किनारे की जैव विविधता भी नष्ट हो जाती है इसमें कई ऐसे सूक्ष्मजीव ही रहते हैं जो हमें दिखाई तो नहीं देते लेकिन यह जमीन की उर्वरता और मृदा को बनाने में मददगार होते हैं। इसलिए यदि आपदाओं को रोकना है तो नदियों से अवैध रेत उत्खनन रोकना जरूरी है।