आपको बता दें कि, सरकार द्वारा जारी की गई नई शराब नीति के तहत ठेकेदारों को देशी और अंग्रेजी शराब की दुकानें एक ही जगह पर खोलनी होंगी। इसके साथ ही उन्हें मेन्युफेक्चरिंग से बिक्री का मार्जिंन घटाना होगा। साथ ही, एक तय सीमा का माल ही उठाना होगा। सरकार के इस निर्णय को शराब विक्रेता मानना नहीं चाहते। हालांकि, जानकार ये मान रहे हैं कि, इस तरह की हड़ताल के चलते शराब न बिक पाने से सरकार को करीब 5 करोड़ रुपए राजस्व की हानि हो सकती है। शराब ठेकेदार ये तो मान रहे हैं कि, वो सरकार से टकरा तो नहीं सकते, लेकिन वो अपना विरोध प्रदर्शन तो जारी रख सकते हैं। हालांकि, उनका कहना ये भी है कि, अगर सरकार शराब नीति में बदलाव नहीं करती तो वो दुकाने ही नहीं खरीदेंगे।
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ये है ठेके न जाने की वजह
शराब ठेकेदारों का कहना है कि, ये सरकार की नई आबकारी नीति की ही देन है जो इस बार ठेके नीलाम नहीं हो रहे। नीलामी नहीं हो रही तो सरकार का आबकारी विभाग ठेकेदारों पर दबाव बना रहा है। चेकिंग के बहाने उनकी दुकानें सील की जा रही हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार, सिर्फ भोपाल में शराब की 90 दुकानें हैं। 1 अप्रैल से 31 मार्च 2023 तक की अवधि के लिए 11 फरवरी को हुए ई-टेंडर की प्रोसेस में सिर्फ 32 दुकानों के ही ठेके हुए। नई आबकारी नीति के चलते ठेकेदार इस बार शराब दुकान का ठेका लेने ही आगे नहीं आ रहे।
ठेकेदारों को सता रहा ये डर
शराब विक्रेताओं की मानें तो इस बार से 25 फीसदी रिजर्व प्राइस बढ़ाया गया है। देशी और अंग्रेजी शराब एक ही दुकान से बेचने को कहा जा रहा है। शराब ठेकेदारों का कहना है कि ऐसा करने से उन्हें घाटा होगा, संभव है कि, कारोबार ही ठप हो जाए। शराब की कीमत को लेकर भी ठेकेदार कह रहे हैं कि, दूसरे राज्यों के मुकाबले मध्य प्रदेश में सबसे अधिक ड्यूटी वसूली जा रही है। इसी वजह से हमें भी मजबूरन दाम बढ़ाने पड़ते हैं।
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