दुर्गा पूजा बंगालियों का काफी बड़ा त्योहार होता है जोकि चार दिनों तक चलता है। ऐसे में महीने की शुरूआत से ही दुर्गा पूजा के उत्सव को लेकर तैयारियां शुरू कर दी जातीं हैं, जिसमें पंडाल से लेकर कल्चर एक्टविटी गायन, नृत्य, पेटिंग जैसी प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। इतना ही नहीं इस अवसर के लिए लोग नए कपड़े भी खरीदते हैं। सदियों से बंगाल में दुर्गा पूजा का बहुत महत्व रहा है।
दुर्गा पूजा का पौराणिक महत्व(Durga Puja 2017):
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार दुर्गा पूजा का त्योहार देवी दुर्गा और राक्षस महिषासुर के बीच हुए युद्ध के तहत बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। मान्यता है कि राक्षस महिषासुर ने कई वर्षो तक तपस्या और प्रार्थना कर भगवान ब्रह्मा से अमर होने का वरदान मांगा (navdurga katha)। महिषासुर की भक्ति से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे कई वरदान दिए, लेकिन भगवान ब्रह्मा ने महिषासुर को अमर होने के वरदान की जगह यह वरदान दिया कि उसकी मृत्यु एक स्त्री के हाथों होगी। ब्रह्मा जी से यह वरदान पाकर महिषासुर काफी खुश हो गया और सोचने लगा की किसी भी स्त्री में इतनी ताकत नहीं है जो उसके प्राण ले सकें।
इसी विश्वास के साथ महिषासुर ने अपनी असुर सेना के साथ देवों के विरूद्ध युद्ध छेड़ दिया जिसमें देवों की हार हो गई और सभी देवगण मदद के लिए त्रिदेव यानि भगवान शिव, ब्रह्मा और विष्णु के पास पहुंचें।
तीनों देवताओं ने अपनी
शक्ति से देवी दुर्गा को जन्म दिया जिसके बाद दुर्गा ने राक्षस महिषासुर से युद्ध कर उसका वध किया, और इस तरह से बुराई पर अच्छाई की जीत हुई। वहीं इसके अलावा इस त्योहार को फसल से जोड़कर भी देखा जाता है जो दुर्गा माता के जीवन और सृजन रूप को भी चिन्हित करता है।
कब मनेगा दुर्गा पूजा का उत्सव (Durga Puja):
पंचमी या षष्ठी वाले दिन पंडाल में स्थापित देवी दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, कार्तिक और भगवान गणेश की खूबसूरत मूर्तियों का अनावरण भक्तों के दर्शन के लिए किया जाता है।
पूजा वाले दिन भक्त सुबह जल्द उठकर दुर्गा अंजली होने तक उपवास करते हैं, उसके बाद फल और मिठाई खाकर अपना व्रत तोड़ते हैं। दुर्गा पूजा के मौके पर ज्यादातर शहरों में एक लाइन से कई पंडाल देखे जा सकते हैं और कई परिवार इन पंडालों में देवी दर्शन के लिए जाते हैं।
देवी का पारंपरिक भोग (durga pooja prasad):
दोपहर के समय में देवी को पारंपरिक भोग जिसमें खिचड़ी, पापड़, मिक्स वेजिटेबल, टमाटर की चटनी, बैंगन भाजा के साथ रसगुल्ला भोग लगाया जाता है। अष्टमी वाले दिन को पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है, इस दिन भोग में कुछ विशेष चीजें शामिल की जाती हैं जिसमें खिचड़ी की जगह चावल, चना दाल, पनीर की सब्जी, मिक्स वेजिटेबल, बैंगन भाजा, टमाटर की चटनी, पापड़, राजभोग और पेयश भोग में चढ़ाया जाता है।
दुर्गा पूजा की खास 10 बातें (Pooja mahatva) :-
10 दिनों तक चलने वाले इस त्योहार को मां की अराधना के साथ साथ ही ये 10 चीज़ें भी इसे खास बनाती हैं… 1. पांडाल: दुर्गा पूजा का सबसे बड़ा आकर्षण होता है मां दुर्गा का पंडाल। यहां मां शक्ति की प्रतिमा विधि-विधान से स्थापित की जाती है और पूरे 9 दिन तक पूजा-अर्चना होती है। मां का पट सप्तमी यानी सातवें दिन खुलता है जिसके बाद लोग इन पंडालों में मां के दर्शन करने आते हैं। इस दौरान न केवल मूर्ति बल्कि पंडाल के डिजाइन भी चर्चा का विषय होते हैं। कई पूजा समितियां तो बाकायदा बाहर के कारीगरों को बुलाकर एक से बढ़कर एक विषयों पर पंडाल तैयार कराती हैं।
2. भोग: नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के 9 रूपों को अलग-अलग भोग चढ़ाया जाता है। पूजा के बाद प्रसाद के रूप में इसे बांटा जाता है। कई पूजा समितियां बड़े पैमाने पर भोग वितरित करती हैं। घरों में भी लोग मां को घी, गुड़, नारियल, मालपुआ का भोग चढ़ाते हैं। इसके अलावा जो लोग व्रत करते हैं वे भी फलाहार के रूप में मखाना का खीर, घुघनी, संघाड़े के आटे का हलवा, शर्बत वगैरह फलाहार के रूप में लेते हैं और घर के बाकी सदस्यों को बांटते हैं।
3. धुनुची डांस : दुर्गा पूजा में धुनुची नृत्य खास है। धुनुची एक प्रकार का मिट्टी से बना बर्तन होता है जिसमें नारियल के छिलके जलाकर मां की आरती की जाती है। लोग दोनों हाथों में धुनुची लेकर, शरीर को बैलेंस करते हुए, नृत्य करते हैं। मान्यता है कि इन 9 दिनों के लिए मां अपने मायके आती हैं। इसलिए उनके आने की खुशी में वातावरण को शुद्ध करने और खुशनुमा बनाने के लिए धुनुची डांस किया जाता है।
4. गरबा/डांडिया : नवरात्रि के पहले दिन गरबा-मिट्टी के घड़े जिन्हें फूल-पत्तियों और रंगीन कपड़ों, सितारों से सजाया जाता है- की स्थापना होती है। फिर उसमें चार ज्योतियां प्रज्वलित की जाती हैं और महिलाएं उसके चारों ओर ताली बजाती फेरे लगाती हैं। कई जगहों पर मां दुर्गा की आरती से पहले गरबा नृत्य किया जाता है। वहीं आरती के बाद लोग डांडिसा डांस भी करते हैं।
5. ढाक : ढाक के शोर के बिना दुर्गा पूजा का जश्न अधूरा है। ढाक एक तरह का ढोल होता है जिसे मां के सम्मान में उनकी आरती के दौरान बजाया जाता है। इसकी ध्वनी ढोल-नगाड़े जैसी होती है।
6. लाल पाढ़ की साड़ी:
वैसे तो ये बंगाली परंपरा है, जहां महिलाएं दुर्गा पूजा के दौरान लाल पाढ़ की साड़ी पहनती हैं, लेकिन फैशन के इस दौर में अब देश के कई हिस्सों में इसे पहना जाने लगा है। गारद और कोरियल दोनों ही लाल पाढ़ वाली सफेद साड़ियां होती। इनमे फर्क बस इतना है कि गारद में लाल रंग का बॉर्डर कोरियल के मुकाबले चौड़ा होता है और इनमें फूलों की छोटी-छोटी मोटिफ होती हैं। 7. पुष्पांजलि :
नवरात्रि के दौरान, खासकर अष्टमी को, लोग हाथों में फूल लेकर मंत्रोच्चारण करते हैं। फिर मां को अंजलि देते हैं। पंडालों में जब बड़े पैमाने पर एक साथ कई लोग मां दुर्गा को पुष्प अर्पित करते हैं, तो नज़ारा देखने लायक होता है। 8. सिंदूर खेला : नवरात्रि के आखिरी दिन मां की अराधना के बाद शादीशुदा महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। इसे सिंदूर खेला कहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि मां दुर्गा मायके से विदा होकर ससुराल जाती हैं, इसलिए उनकी मांग भरी जाती है। मां को पान और मिठाई भी खिलाई जाती है।
9. विसर्जन : नवरात्रि के बाद दसवें दिन मां की मूर्ति का पानी में विसर्जन किया जाता है। इस दौरान लोग रास्ते भर झूमते नाचते जाते हैं और उन्हें विदा करते हैं। 10. दशहरा/रावण वध : दुर्गा पूजा के 10वें दिन दशहरा मनाया जाता है। इस दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं और मेला घूमने जाते हैं। इस दिन रावण दहन की भी परंपरा है, क्योंकि इसी दिन लंका में राम ने रावण का वध किया था। इसी के प्रतीक में रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों में आतिशबाज़ी लगाकर आग लगाई जाती है और बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश दिया जाता है।
माता दुर्गा की पूजा करने की विधि (Maa Durga puja vidhi):
दुर्गा जी हिन्दू धर्म की देवी हैं। इन्हें आदिशक्ति के नाम से भी जाना जाता है। इनके नौ अन्य रूप है जिनकी पूजा नवरात्रों में की जाती है। माना जाता है कि राक्षसों का संहार करने के लिए देवी पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण किया था।
पूजन सामग्री :
देव मूर्ति के स्नान के लिए तांबे का पात्र, तांबे का लोटा, जल का कलश, दूध, देव मूर्ति को अर्पित किए जाने वाले वस्त्र व आभूषण।
प्रसाद के लिए फल, दूध, मिठाई, पंचामृत( दूध, दही, घी, शहद, शक्कर ), सूखे मेवे, शक्कर, पान, दक्षिणा।
गुड़हल के फूल, नारियल।
चावल, कुमकुम, दीपक, तेल, रुई, धूपबत्ती, अष्टगंध।
गणेश पूजन :
प्रथमपूजनीय गणपति गजानन गणेश हिन्दू धर्म के लोकप्रिय देव हैं। इनका वर्णन समस्त पुराणों में सुखदाता, मंगलकारी और मनोवांछित फल देने वाले देव के रूप में किया गया है। भगवान गणेश को वरदान प्राप्त है की किसी भी शुभ कार्य से पहले उनकी पुजा अनिवार्य है, बिना श्री गणेश की पूजा के किसी भी यज्ञ आदि पवित्र कार्य को सम्पूर्ण नहीं माना जा सकता|
सकंल्प :
पूजन शुरू करने से पहले सकंल्प लें। संकल्प करने से पहले हाथों में जल, फूल व चावल लें। सकंल्प में जिस दिन पूजन कर रहे हैं उस वर्ष, उस वार, तिथि उस जगह और अपने नाम को लेकर अपनी इच्छा बोलें। अब हाथों में लिए गए जल को जमीन पर छोड़ दें।
माता दुर्गा की पूजा (puja vidhi of maa durga) :
सबसे पहले जिस मूर्ति में माता दुर्गा की पूजा की जानी है। उस मूर्ति में माता दुर्गा का आवाहन करें। माता दुर्गा को आसन दें। अब माता दुर्गा को स्नान कराएं। स्नान पहले जल से फिर पंचामृत से और वापिस जल से स्नान कराएं। अब माता दुर्गा को वस्त्र अर्पित करें। वस्त्रों के बाद आभूषण पहनाएं। अब पुष्पमाला पहनाएं। सुगंधित इत्र अर्पित करें, तिलक करें। तिलक के लिए कुमकुम, अष्टगंध का प्रयोग करें।
अब धूप व दीप अर्पित करें। माता दुर्गा की पूजन में दूर्वा को अर्पित नहीं करें। लाल गुड़हल के फूल अर्पित करें। 11 या 21 चावल अर्पित करें। श्रद्धानुसार घी या तेल का दीपक लगाएं। आरती करें।
आरती के पश्चात् परिक्रमा करें। अब नेवैद्य अर्पित करें। माता दुर्गा की आराधना के समय ‘‘ऊँ दुं दुर्गायै नमः” मंत्र का जप करते रहें। माता दुर्गा की पूजन के पूरा होने पर नारियल का भोग जरूर लगाएं। माता दुर्गा की प्रतिमा के सामने नारियल अर्पित करें। 10-15 मिनिट के बाद नारियल को फोड़े। अब प्रसाद देवी को अर्पित कर भक्तों में बांटें।
क्षमा-प्रार्थना : पूजन में रह गई किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए दुर्गा माता से क्षमा मांगे।