भोपाल

स्वास्थ्य सुधार में एक पायदान और नीचे खिसका मध्यप्रदेश, केरल नंबर-1

National Health Index: नीति आयोग ने 23 पैमानों पर जारी किया सूचकांक, केरल नंबर-1

भोपालJun 26, 2019 / 10:34 am

KRISHNAKANT SHUKLA

स्वास्थ्य सुधार में एक पायदान और नीचे खिसका मध्यप्रदेश, केरल नंबर-1

भोपाल . लोक स्वास्थ्य में सुधार की रफ्तार के लिहाज से मध्यप्रदेश पहले से और पिछड़ गया है। दो साल में देश के बड़े राज्यों की तुलना में मध्यप्रदेश एक पायदान खिसककर 18वें स्थान पर आ गया है। मध्यप्रदेश से पीछे केवल बिहार , उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड ही हैं।

यह खुलासा नीति आयोग की स्वस्थ राज्य प्रगतिशील भारत शीर्षक से जारी रिपोर्ट से हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार 2017-18 में स्वास्थ्य के क्षेत्र में मध्यप्रदेश का संपूर्ण प्रदर्शन सूचकांक 1.70 अंक गिरा है। यह रैंकिंग 23 संकेतकों के आधार पर तैयार की गई है।

यह दूसरा मौका है, जब आयोग ने स्वास्थ्य सूचकांक के आधार पर राज्यों की रैंकिंग जारी की है। इस तरह की पिछली रैंकिंग फरवरी 2018 में आई थी। उसमें 2014-15 के आधार पर 2015-16 के आंकड़ों की तुलना की गई थी। इस रिपोर्ट में पिछले बार के मुकाबले सुधार और कुल मिलाकर बेहतर प्रदर्शन के आधार पर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की रैंकिंग तीन श्रेणियों में की गई है, जिसमें मध्यप्रदेश पहले से फिसड्डी साबित हुआ है।

रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा पहले, राजस्थान दूसरे और झारखंड तीसरे स्थान पर है। क्रमिक बदलाव के अलावा मौजूदा स्वास्थ्य ढांचे के मामले में केरल नंबर एक, आंध्र प्रदेश दूसरे और महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर रहा। छत्तीसगढ़ में कई पैमानों पर सुधार हुआ है। इसलिए इसे क्रमिक सुधार के लिहाज से 11वें स्थान पर रखा गया है।

मध्यप्रदेश स्वास्थ्य पैमानों पर

स्वास्थ्य सेवा 2015-16 2017-18
संस्थागत प्रसव 64.79 62.27
उपचार सफलता दर 90.30 82.50
कार्डियक केयर यूनिट 9.80 9.80
गर्भावती पंजीयन 63.79 62.78
जन्म पंजीयन 82.60 74.60
(आंकड़े प्रतिशत में )

मातृ-शिशु मृत्यु में अब भी आगे

तमाम प्रयासों और योजनाओं के बाद भी मातृ-शिशु मृत्यु दर के मामले में मध्यप्रदेश अभी भी पहले नंबर पर बना हुआ है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 की तुलना में 2017-18 में मातृ मृत्यु दर 34 से घटकर 32 प्रति हजार और शिशु मृत्यु दर 62 से घटकर 55 प्रति हजार हो गई है, लेकिन यह देश के औसत से ज्यादा है।

बेटों से 78 बेटियां कम

प्रदेश में बेटों और बेटियों का लिंगानुपात भी एक साल में कुछ अधिक वृद्धि नहीं कर पाया। पहले के मुकाबले प्रति हजार बेटों की तुलना में तीन बेटियां बढ़ी हैं। यह अंतर अब 922 पर आ गया है।

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