अधिक बारिश होने के कारण चीते यहां खुद को ढाल नहीं पा रहे—परियोजना से जुड़े रहे एक विशेषज्ञ ने बताया कि चीतों को भारत लाते समय किसी ने यह भी नहीं सोचा कि भारत में ज्यादा बारिश होती है। अधिक बारिश होने के कारण चीते यहां खुद को ढाल नहीं पा रहे। उनका यह भी कहना है कि चीतों को यहां पर अनुकूल होने में दो से तीन पीढ़ी लगेगी।
विशेषज्ञ के अनुसार यहां बाघ, तेंदुआ और अन्य वन्य प्राणियों की चमड़ी मोटी होती है। इसलिए उन्हें कॉलर आइडी के बाद भी इंफेक्शन नहीं होता लेकिन चीते संक्रमित हो रहे हैं। कूनो नेशनल पार्क में तीन और चीते संक्रमित मिले हैं। इनमें से एक चीता ओवान की कॉलर आइडी हटा दी गई है। बाकी दो चीतों को पकड़ने और बेहोश करने की कोशिश की जा रही है।
इस बीच चीतों की मौत पर दक्षिण अफ्रीकी चीता मेटापॉपुलेशन विशेषज्ञ विंसेंट वान डेर मेरवे का बयान भी सामने आया है। उनका भी यही कहना है कि अत्यधिक गीली स्थितियों के कारण रेडियो कॉलर चीतों में संक्रमण पैदा कर रहे हैं।
10-12 दिन तक किसी ने ध्यान ही नहीं दिया
इधर कूनो में मॉनीटिरिंग टीम की भी लापरवाही साफ नजर आ रही है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि इंफेक्शन से तत्काल मौत नहीं होती। सेप्टिसीमिया होने के बाद इसमें 10 से 12 दिन का समय लगता है। इस बीच कोई ध्यान देता तो चीतों को बचाया जा सकता था।