साल में सिर्फ दस दिनों के लिए यह जगह श्रद्धालुओं के लिए खोली जाती है, लेकिन पहली बार यहां कोई नहीं जा पा रहा है। सतपुड़ा के जंगल और पहाड़ों में पचमढ़ी के दुर्गम रास्तों से होकर इस स्थान पर पहुंचा जाता है। दस दिनों में ही दस लाख से अधिक लोग इस दुर्गम रास्ते को पार करके नागलोक में विराजे शिव का आशीर्वाद लेने पहुंच जाते हैं। यह क्षेत्र हजारों जहरीले सांपों से घिरा हुआ है। यहां कदम-कदम पर मौत का खतरना रहता है।
साथ चलती है जिंदगी और मौत :-:
नागद्वारी की यात्रा इतनी दुर्गम है कि एक तरफ जिंदगी और एक तरफ मौत हमेशा साथ रहती है। दस दिनों के बाद इस इलाके में खतरनाक जहरीले सांप और जंगली जानवर ही रहते हैं। यहां कोई इंसान अकेले जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। सांप-बिच्छू जैसे जहरीले जीव इस क्षेत्र में बहुतायात में एकत्र हो जाते हैं। जब इस नागलोक के लिए यात्रा शुरू होती है तो कदम-कदम पर सांप-बिच्छुओं से सामना होता रहता है। यह स्थान भोपाल से करीब 200 किलोमीटर दूर पचमढ़ी में है और पचमढ़ी से धूपगढ़ जाने वाले रास्ते से 12 किलोमीटर का दुर्गम रास्ते से यहां जाया जाता है।
महाराष्ट्रीयन के कुलदेव :-:
नागलोक श्रद्धा का अनूठा स्थल है। यह महाराष्ट्र से आने वाले कई लोग अपना कुलदेव मानते हैं। पचमढ़ी के घने जंगल और दुर्गम पहाड़ों के बीच एक गुफा में है यह मंदिर। यह मंदिर नागपंचमी से पहले 10 दिनों के लिए ही खुलता है।
रोमांच से भरपूर होती है यह यात्रा :-:
साल में एक बार होने वाली यह यात्रा इतनी रोमांचक होती है कि ट्रैकिंग के शौकीन व्यक्ति भी इस यात्रा को करने पहुंच जाते है। इस रास्ते में कई बड़े-बड़े प्राकृतिक झरने नजर आते हैं। वहीं कई जड़ी-बूटियों के पेड़-पौधे भी जानकारों को आकर्षित करते हैं। यह रास्ते इतने दुर्गम है कि हर पल डर बना रहता है कि कभी कदम डगमगाए तो सीधे गहरी खाई में समा सकते हैं। गिरते पानी में फिसलन भरी ढलान में यह खतरा और बढ़ जाता है। कभी बड़ी-बड़ी चट्टानों से गुजरना होता है। कई बार तो बहते पानी को भी पार करना किसी रोमांच से कम नहीं होता है।
अमरनाथ जैसा नजारा :-:
नागद्वारी यात्रा के रास्तों पर अमरनाथ यात्रा का अहसास होता है। यहां के पहाड़ और गुफा का दृश्य देखकर ऐसा लगता है जैसे आप अमरनाथ यात्रा कर रहे हैं। यात्रा में कदम-कदम पर खतरा बना रहता है। लेकिन यह यात्रा कितने ही खतरों के बाद पूरी की जाती है। प्राकृतिक सौंदर्य यहां का अद्भुत है।
यह है मान्यता:-:
आदिवासी समुदाय में मान्यता है कि इस यात्रा को करने से शारीरिक व मानसिक शक्ति के साथ ही अध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है। इस यात्रा के आरंभ होने का कोई लिखित दस्तावेज नहीं है। यहां कोरकू, गोंड व गोली आदिवासी समुदाय के लोग आसपास के जंगलों में रहते हैं। मान्यता है कि आदिवासियों के आराध्य बड़ादेव भगवान शिव ने यहां स्वर्ण द्वार बनाया है। यहां से नागलोक के दर्शन होते हैं।
संरक्षित घोषित है:-:
पचमढ़ी के राजा भभूत सिंह ने 1857 में यहां ब्रिटिश घुसपैठियों को परास्त करते हुए खदेड़ दिया था। बाद में धोखे से ब्रिटिश कैप्टन जे. फॉरसोथ ने राजा भभूत सिंह की हत्या करके पचमढ़ी को सेना की छावनी बना दिया था। यहां की विशाल प्राकृतिक संपदा को देखते हुए कैप्टन फॉरसोथ ने 1860 में इसे संरक्षति वन क्षेत्र घोषित कर दिया।