क्या हैं मुलाकात के मायने
दोनों नेताओं की मुलाकात के बाद सियासी गलियारों में चर्चाएं तेज हो गई हैं कि बुधनी और विजयपुर के उपचुनावों की जिम्मेदारी कमलनाथ के हाथों में थमाई जा सकती है। विधानसभा में हार और छिंदवाड़ा में गढ़ छीनने के बाद से अध्यक्ष पद छीन लिया गया था। लोकसभा चुनाव 2024 में भी देखा गया कि वह केवल छिंदवाड़ा और आसपास के इलाकों तक ही सीमित रहे। कमलनाथ और राहुल गांधी की यह 42 दिन के भीतर दूसरी मुलाकात है। इससे पहले तीन सितंबर को कमलनाथ ने राहुल गांधी के आवास पर मुलाकात की थी।
कमलनाथ को मिलेगी बड़ी जिम्मेदारी
इधर कयास लगाए जा रहे हैं कि कमलनाथ को महाराष्ट्र और झारखंड में होने वाले चुनाव प्रचार की कमान थमाई जा सकती है, उधर विश्लेषक कह रहे हैं कि कमलनाथ किसी दूसरे राज्य की बागडोर अपने हाथों में नहीं थमेंगे। बल्कि वह मध्यप्रदेश के उपचुनाव में एक्टिव हो सकते हैं।
राजनीतिक विश्लेषक तो यहां तक बताते हैं कि जब कमलनाथ बीजेपी में शामिल होने जा रहे थे। तब भाजपा के आलाकमान ने उनको पार्टी में लाने के फैसले को होल्ड पर रख दिया था। उसके बाद कमलनाथ कांग्रेस में ही रह गए और राहुल गांधी से कई बार संपर्क करने की कोशिश भी की, लेकिन राहुल गांधी उनके फोन का कोई जवाब नहीं दिया। फिर समय बदला और दोनों के बीच 3 सितंबर को मुलाकात हुई। इसके बाद मंगलवार की मुलाकात ने पूरे समीकरण को ही बदलकर रख दिया है।
जीतू पटवारी खेमे में निराशा
राहुल गांधी और कमलनाथ की लंच से मध्यप्रदेश कांग्रेस का जीतू पटवारी खेमा नाराज बताया जा रहा है। जीतू पटवारी के पीसीसी चीफ बनने से पहले ही दोनों नेताओं की अनबन थी। सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि मध्यप्रदेश कांग्रेस के संगठन में नियुक्तियां होनी थी। जो कि अब होल्ड पर रखी जा सकती है। इसमें कमलनाथ का दखल देखने को मिल सकता है।