ये भी पढें – जनजातीय गौरव दिवस पर धार-धरमपुरी के विजन डॉक्यूमेंट का विमोचन करेंगे सीएम और राज्यपाल बता दें कि देश में सबसे ज्यादा जनजातियां(Tribal Pride Day) मध्यप्रदेश में ही निवास करती हैं। प्रकृति से जुड़ी इस कौम की संस्कृति का अनोखा रूप हों, इनकी परंपराएं हों, रहन-सहन और खान-पान हर चीज में कुदरत से जुड़ाव नजर आता है और ये अपने आप में अनूठे हो जाते हैं। यहां तक कि इन जनजातियों के देवी-देवता भी आपको अपने अलग रूपों के कारण हर किसी को आकर्षित कर लेते हैं। जनजातीय गौरव दिवस पर जानिए एमपी की जनजातियों की अनोखी परम्पराएं…
एमपी में 21.1% आबादी, दुनिया भर में है लोकप्रिय
2011 की जनगणना के अनुसार मध्यप्रदेश में इनकी आबादी का प्रतिशत 21.1% है। जनजातियों और उपजातियों को मिलाकर इनकी कुल संख्या 90 है। ये जनजातियां मध्प्रदेश के लगभग सभी जिलों में निवास करती हैं। अपने अनोखे वर्चस्व और परम्परा के चलते ये जनजातियां प्रदेश के साथ ही देश और दुनिया में काफी लोकप्रिय हैं।देश के दिल में बसी इन जनजातियों को लेकर यहां पढ़ें Interesting Facts
भील जनजाति (Bhil tribe)
अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, परंपरा और अनूठी अर्थव्यवस्था के लिए जानी जाने वाली भील जनजाति मध्यप्रदेश के अलावा राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तरप्रदेश में भी निवास करती हैं। लेकिन यह मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति है। परंपरागत रूप से ये घने जंगलों, नदी घाटियों, पहाड़ियों में छोटी बस्ती बनाकर रहते हैं। भील जनजाति के रीती रिवाज इसे बहुत अलग बनाते हैं। शादी को लेकर पुरानी मान्यताएं हैं कि पुरुष सात शादियां कर सकता है। हालांकि ये कल्चर अब खत्म हो चुका है और पुरुष केवल एक विवाह की रस्म तक सीमित हो गए हैं।
हिन्दू देवी-देवताओं के साथ भील हरहेलबाबा या बाबादेव, मईड़ा कसूमर, भीलटदेव, खालूदेव, सावनमाता, दशामाता, सातामाता को भी पूजते है। झाबुआ, आलीराजपुर, धार, खरगोन, बड़वानी और रतलाम में ज्यादातर निवास करते है।
गोंड जनजाति (Gond tribe)
गोंड जनजाति की बड़ी संख्या मध्यप्रदेश में निवास करती है। पितृसत्तात्मक समाज की धारणा के साथ चलने वाली गोंड जनजाति में लिंग भेद हावी रहता है। इस जनजाति के लोगों को जीवों और पेड़-पौधों की अच्छी-खासी जानकारी इनके पास होती है। इनमें बलि देने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। गोंड डांस, संगीत और डिजाइनिंग और पेंटिंग की कला में भी ये बहुत माहिर होते हैं। गोंड नृत्यों में कर्मा और सैला काफी प्रचलित है। ये मुख्यता महादेव, पडापेन, लिंगोपेन, ठाकुरदेव, चण्डीमाई, खैरमाई को पूजते हैं। ये ज्यादातर नर्मदापुरम, बैतूल, छिंदवाड़ा, सिवनी, बालाघाट, मंडला, डिंडौरी, रायसेन में पाए जाते हैं।
बैगा जनजाति (Baiga tribe)
माना जाता है कि बैगा शब्द ‘वैद्य’ से निकला है। इसका मतलब होता है, इलाज करने वाला। अपने नाम की ही तरह इन्हें पेड़-पौधों के कई औषधीय गुण और गहन रहस्य इन्हें पता हैं। गोंड की ही तरह यह जनजाती भी नेचर प्रेमी है। बैगा समुदाय के खान-पान की बात करें तो इनमें कोदु-कुटकी का काफी प्रचलन है। इनके खाने में ज्यादातर मोटे अनाज का इस्तेमाल किया जाता है। बैगा जनजाति में बुद्धदेव, बाघदेव, भारिया दूल्हादेव, नारायणदेव, भीमसेन की पूजा की जाती है। गोंड समुदाय की ही तरह ये जनजाति भी नर्मदापुरम, बैतूल, छिंदवाड़ा, सिवनी, बालाघाट, मंडला, डिंडौरी, रायसेन के इलाकों में बसती है।