भोपाल

कोरोनाकाल में न मोबाइल, न लैपटॉप, फिर शहर से पीछे रह गए आदिवासी बच्चे, 85 फीसदी फेल

कोरोनाकाल में शहरी बच्चों ने की मोबाइल, लैपटॉप पर ऑनलाइन पढ़ाई, सतना में 85 फीसदी, तो पन्ना जिले के 56 फीसदी से ज्यादा आदिवासी बच्चे फेल…।

भोपालMay 05, 2022 / 07:17 pm

Manish Gite

भोपाल। कोरोनाकाल में जब शहरी क्षेत्रों के बच्चे अपने घरों में मोबाइल और लैपटॉप पर ऑनलाइन क्लास कर रहे थे, वहीं आदिवासी क्षेत्रों के बच्चों तक न बिजली थी, न मोबाइल था और न लैपटॉप। नतीजा इस बार सतना में 85 फीसदी और पन्ना में 56 फीसदी बच्चे फेल हो गए। सरकार की ओर से आदिवासियों के कल्याण के लिए किए जा रहे प्रयासों का शायद यह सबसे दुखद पहलू है।

यह खुलासा आदिवासी क्षेत्रों के हाईस्कूल के रिजल्ट ने किया है। इस रिजल्ट से पता चलता है कि यहां कोरोनाकाल में सरकारी शिक्षा नहीं पहुंच पाई। जिन क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाएं ही नहीं हैं, वहां आज के जमाने की ऑनलाइन शिक्षा अब भी कोसों दूर है।

 

 

सतना में 85 फीसदी फेल

सतना जिले में हाईस्कूल के परिणाम में 84.62 प्रतिशत बच्चे फेल हो गए। सिर्फ 15.38 बच्चे पास हुए हैं। सतना जिले में 2687 बच्चों ने दाखिला लिया था। इनमें से 159 ने परीक्षा नहीं दी। सिर्फ 2528 बच्चों ने परीक्षा दी। इनमें से 1895 बच्चे फेल हो गए। सिर्फ 389 बच्चे पास हो सके।

 

पन्ना का 25 फीसदी कम रहा रिजल्ट

पन्ना जिले के परीक्षा परिणामों पर गौर करें तो आदिवासी (अनुसूचित जनजाति) वर्ग के 56 फीसदी से भी अधिक बच्चे हाई स्कूल परीक्षा में फेल हुए हैं। सिर्फ 43.20 फीसदी बच्चे ही पास होने में सफल रहे। यह जिले के औसत परीक्षा परिणाम 67.56 प्रतिशत से 24.36 फीसदी कम है। आंकड़े यह भी कहते हैं कि इन विद्यार्थियों के पास डिजिटल शिक्षा का कोई साधन ही नहीं था।

 

आदिम जाति कल्याण विभाग का क्या मतलब

आदिवासी विकास के लिए चलने वाला आदिम जाति कल्याण विभाग भी इस दिशा में कोई पहल नहीं कर सका। कोरोनाकाल में आदिवासियों के लिए शिक्षा के सभी रास्ते बंद हो चुके थे, जिसे रिजल्ट ने साबित कर दिया।

 

मोबाइल नेटवर्क ही नहीं

इस परिणाम ने यह भी साबित कर दिया कि कोरोनाकाल में स्कूल शिक्षा विभाग के डिजीलैप जैसे प्रयोग वनवासियों और गरीबों के लिए सफल नहीं रहे। इसका बड़ा कारण ऑनलाइन शिक्षा के लिए आदिवासी क्षेत्रों में मोबाइल नेटवर्क सिग्नल का नहीं होना और महंगे मोबाइल और आए दिन का नेट रिचार्ज नहीं करा पाना बड़े कारण के रूप में सामने आया है। इस समस्या को मैदानी स्तर पर काम करने वाले अधिकारी भलीभांति जान भी रहे थे, लेकिन वे सरकार के आदेशों से भी बंधे थे।

 

पन्ना जिले के परिणाम की स्थिति

 लड़के लड़कियां कुल
रजिस्टर्ड6786241302
अनुपस्थित563086
परीक्षा में शामिल6225941216
परिणाम घोषित6225931515
प्रथम श्रेणी85119204
द्वितीय श्रेणी159156315
तृतीय श्रेणी336
सप्लीमेंट्री6067363
फेल315248568
कुल पास247278525
पास प्रतिशत39.7146.8843.20

तो कैसे हुई चूक

सेवानिवृत्त जेडी अंजनी त्रिपाठी भी एसटी वर्ग के परिणाम को चौंकाने वाला मानते हैं। वे कहते हैं कि 9वीं पास कर 10वीं तक पहुंचे इन बच्चों का इतनी बड़ी संख्या में फेल होना कई बड़े सवाल खड़े करता है। संसाधन की कमी तो है ही, शिक्षकों की अनदेखी व विभागीय समन्वय में कमी से भी इंकार नहीं कर सकते। छात्रावास बंद हुए तो वैकल्पिक व्यवस्था नहीं बनाई गई।

 

नहीं की गई वैकल्पिक व्यवस्था

कोरोनाकाल में जब विद्यालय बंद कर दिए गए थे तब छात्रावास भी बंद हो गए थे। ऐसे में विद्यार्थियों की शिक्षा को जारी रखना बड़ी चुनौती था। इस बीच, स्कूल शिक्षा विभाग ने डिजिटल एजुकेशन का विकल्प चुना। इसके लिए डिजीलैप जैसे कार्यक्रम शुरू हुए। इसमें मोबाइल के माध्यम से पढ़ाई का दौर शुरू हुआ। हालांकि कोरोना की परिस्थितियों में यही इकलौता विकल्प था, इसके जरिए विद्यार्थियों को सुरक्षित तरीके से पढ़ाई से जोड़े रखा जा सकता था। लेकिन, अब जब नतीजे सामने आए तो यह स्पष्ट हो गया कि यह विकल्प शहर में रहने वाले और लोवर मिडिल क्लास तक तो सफल रहा। लेकिन, गरीब वर्ग और आदिवासियों तक इस प्रोग्राम की पहुंच नहीं हो सकी। इसके अलावा छात्रावास के स्थान पर कोई वैकल्पिक व्यवस्था भी नहीं की गई।

 

यह रहे प्रमुख कारण

-डिजिटल शिक्षा के अनुकूल विद्यार्थियों के पास संसाधन व वैकल्पिक व्यवस्था न होना
-शिक्षकों में एसटी वर्ग के लिए नवाचार की कमी
-आदिवासी गांवों में जाकर पढ़ाने वाले शिक्षक भी कम दिखे
-सुदूर आदिवासी इलाकों में नेटवर्क की समस्या

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