प्रथम घर : लग्न ।
द्वितीय भाव: धन भाव ।
तृतीय भाव: पराक्रम ।
चतुर्थ भाव: मातृ स्थान ।
पंचम भाव: सुत भाव ।
षष्ठम भाव: शत्रु या रोग स्थान ।
सप्तम भाव : विवाह ।
अष्टम भाव : आयु या मृत्यु भाव ।
नवम भाव : भाग्य ।
दशम भाव : कर्म व पितृ ।
एकादश भाव : आय ।
द्वादश भाव : व्यय ।
यदि बुध भाग्येश होकर आपको अच्छा फल नहीं दे पा रहा हो तब प्रतिदिन गणेशजी की पूजा करनी चाहिए। गाय को हरे रंग का चारा खिलाएं और तांबे का कड़ा धारण करें।
नवम भाव में तुला या वृष राशि हैं तो भाग्येश शुक्र होगा। शुक्र भाग्येश होकर शुभ फल न दे रहे हैं तो लक्ष्मी माता की उपासना से लाभ मिल सकता है। प्रतिदिन देवी लक्ष्मी की आरती करें और उन्हें मखाने या चावल की खीर का भोग लगाना चाहिए। स्फटिक की माला से प्रतिदिन ”ओम द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः” का जप करना भी लाभप्रद होगा।
यदि आपकी कुंडली में चंद्रमा शुभ नहीं है तो आप शिवजी का पूजन करें। ”ओम श्रां: श्रीं: श्रौं: स: चंद्रमसे नम:” मंत्र का जप करें। चांदी के गिलास में पानी पीने से भी लाभ मिल सकता है, ऐसा लाल किताब में बताया गया है।
गुरु की अशुभ स्थिति के कारण यदि आपको भाग्य का साथ नहीं मिल रहा हो तो आपको भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। प्रतिदिन विष्णुजी की पूजा करें, और केसर या हल्दी का तिलक लगाएं।
मंगल के अशुभ प्रभावों के कारण लगातार दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है तो आप मंगलवार को हनुमानजी की पूजा करें। सुंदरकांड और हनुमान चालीसा का पाठ भी आपके लिए लाभप्रद रहेगा।
यदि आपको शनि की अशुभ स्थिति के चलते विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है तो काले और नीले कपड़े, जितना संभव हो न पहनें। शनिवार को पीपल के वृक्ष के नीचे दीया जलाएं और शनिवार को हनुमानजी की पूजा करें।
सूर्य यदि अशुभ प्रभाव दे रहा हो तो उसका सुखद तेज और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपको प्रतिदिन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त से पहले किसी भी समय गायत्रीमंत्र का जप करना चाहिए। प्रतिदिन सुबह के समय स्नान के बाद सूर्य को तांबे के लोटे स जल अर्पित करना चाहिए।