जिससे बाघ सहित अन्य वन्य प्राणी को एक जगह से दूसरे जगह शिफ्ट करने में परेशानी न आए। वन मंत्री ने अंतर्राष्ट्रीय एयर ट्रेवल्स एसोसिएशन के मापदंडों के अनुरुप पिंजरों को बनवाने के निर्देश दिए थे। इसके बावजूद अब तक वन्य प्राणी मुख्यालय ने इस दिशा में अब तक कोई काम नहीं किया।
वन मंत्री सिंघार का मानना है कि हर वन्य प्राणी के लिए अलग पिंजरा होना चाहिए, इसके लिए उन्होंने स्टेट फारेस्ट रिसर्च सेंटर जबलपुर से पिंजरों के मापदंड का सर्कूलर सभी अफसरों को भी भेजा है। वर्तमान में दो-तीन तरह के पिंजरों में सभी वन्य प्राणियों को रेस्क्यू के दौरान रखा जाता है।
इसके अलावा उन्हीं पिंजरों में बंद कर वन्य प्राणियों को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाया जाता है। ऐसी स्थिति में पिंजरा तोडऩे अथवा उससे भागने के चक्कर में वन्य प्राणी दांत, नाखून, पैर-तोड़ अपने आप को लहू-लुहान कर लेते हैं। इससे कई बार इलाज कराने के बाद भी वन्य प्राणियों के शारीरिक क्षति पूर्ति नहीं हो पाती है।
अब बुलाया प्रस्ताव
वन मंत्री ने वाइल्डलाइफ प्रमुख से पिंजरे में के संबंध में प्रस्ताव बुलाए हैं। इसमें मैदानी अधिकारियों को बताना होगा कि उनके क्षेत्र में कितने तरह के वन्य जीव पाए जाते हैं। रेस्क्यू के दौरान उन्हें रखने के लिए कितने पिंजरों की जरूरत होगी। बताया जाता है मंत्री के निर्देश के अनुसार प्रत्येक जिलों में सभी तरह के वन्य प्राणियों के लिए अलग-अलग पिंजरा तैयार करना पड़ेगा।
बजट के चलते पीछे हट रहे हैं अधिकारी
वन विभाग के अधिकारी पिंजरे खरीदने से इसलिए पीछे हट रहे हैं क्योंकि इसके लिए बजट प्रावधान नहीं है। सभी वन्य प्राणियों के लिए अलग-अलग तरह के पिंजरे खरीदने अथवा बनवाने पर प्रत्येक पार्क में करीब एक- करोड़ रुपए खर्च होंगे, जबकि सभी जिलों में पचास लाख रुपए से अधिक राशि खर्च होगी।
मंत्री ने पिंजरे की आवश्यकताओं के संबंध में प्रस्ताव जल्दी तैयार करने के लिए कहा है। सभी पार्क डायरेक्टरों और डीएफओ से जानकारी बुलाई गई है। – यू प्रकाशम, वन बल प्रमुख