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भोपाल

हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई से इंप्रेस कई राज्य, इंजीनियरिंग के लिए अभी और इंतजार

एमबीबीएस के सभी विषयों की किताबों का हिन्दी संस्करण हुआ तैयार, 10 फीसदी छात्र ले रहे इन पुस्तकों की मदद, मध्यप्रदेश में मेडिकल शिक्षा के लिए 16 अक्टूबर 2022 को केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने की थी हिन्दी में प्रकाशित पहले वर्ष की तीन विषयों की पुस्तकों एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री की लांचिंग, हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई को पूरे हुए दो साल…

भोपालOct 17, 2024 / 02:19 pm

Sanjana Kumar

Medical Education in hindi in MP

Medical Education in Hindi in MP: मेडिकल की किताबें हिन्दी में उपलब्ध कराने वाला मध्यप्रदेश देश में पहला राज्य बन गया है। हालांकि इंजीनियरिंग की हिन्दी में पढ़ाई शुरू कराने के मामले में ज्यादा प्रगति नहीं हो पाई है। प्रदेश के सभी सरकारी मेडिकल कॉलेजों की लायब्रेरी में एमबीबीएस के 20 में से 15 विषयों की हिन्दी में पुस्तकें उपलब्ध करा दी गई हैं। बचे हुए पांच विषयों की पुस्तकें प्रिंटिंग के लिए दे दी गई हैं। यह भी जल्द छात्रों के लिए उपलब्ध होंगी।
चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा लिए गए फीडबैक के अनुसार एमबीबीएस के 10 फीसदी विद्यार्थी हिन्दी की इन पुस्तकों से पढ़ाई कर रहे हैं। खासतौर पर हिन्दी माध्यम वाले छात्रों के लिए यह पुस्तकें काफी मददगार साबित हो रही हैं। उन्हें यह पुस्तकें विषय को समझने के लिए ब्रिज का काम कर रही हैं। हालांकि अधिकांश छात्र परीक्षा अभी भी अंग्रेजी में ही दे रहे हैं।
इसके साथ सरकार की यह पहल केवल सरकारी मेडिकल कॉलेजों तक सीमित रह गई है। कई बार पत्र भेजने के बावजूद निजी मेडिकल कॉलेजों ने अभी तक हिन्दी की पुस्तकों के प्रति रुचि नहीं दिखाई है। मध्य प्रदेश की इस पहल की न केवल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रशंसा की बल्कि अन्य हिन्दी भाषी राज्य भी अब इसे अपना रहे हैं।
मध्यप्रदेश में मेडिकल शिक्षा के लिए हिन्दी में प्रकाशित पहले वर्ष की तीन विषयों की पुस्तकों एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री की लांचिंग 16 अक्टूबर 2022 को केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने की थी।

प्रधानमंत्री मोदी ने की थी तारीफ

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इस पहल की तारीफ करते हुए कहा था कि मध्यप्रदेश हिन्दी में मेडिकल की पढ़ाई कराने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। भारत में शिक्षा क्षेत्र के लिए यह एक पथ प्रदर्शक पहल है और एक प्रकार का पुनर्जागरण है। सरकार का मानना है कि जब भाषा को नौकरियों या व्यवसायों से जोड़ा जाता है तो वह अपनी समृद्धि और विकास का रास्ता खुद खोज लेती हैं।

मंदार प्रोजेक्ट के तहत निकला हिन्दी का अमृत

एमबीबीएस की पुस्तकें हिन्दी में तैयार करने के प्रोजेक्ट को मंदार नाम दिया गया था। गांधी मेडिकल कॉलेज भोपाल में इसके लिए एक विशेष कक्ष भी मंदार के नाम से ही तैयार किया गया था। 97 डॉक्टरों की एक टीम बनाई गई जिसने करीब दो साल में सभी 20 विषयों की किताबों का हिन्दी में अनुवाद किया है। गलतियों से बचने के लिए तीन अलग-अलग लोगों ने प्रूफ रीडिंग की। इसके बाद हिन्दी विश्वविद्यालय को भी यह किताबें जांच के लिए भेजी गईं।
इसके बाद इनका प्रकाशन किया गया। मंदार नाम इसलिए रखा गया कि जिस प्रकार समुद्र मंथन में मंदार पर्वत के सहारे अमृत निकाला गया था, उसी तरह से मंदार में शामिल डॉक्टरों और विशेषज्ञों ने विचार मंथन करके किताबों का हिन्दी में अनुवाद किया है। इन किताबों को इस प्रकार अनुवादित कर तैयार किया गया है, जिसमें शब्द के मायने हिन्दी में ऐसे न बदल जाएं कि उसे समझना मुश्किल लगे। इसलिए अधिकांश तकनीकी शब्दों को अंग्रेजी में भी लिखा गया है और देवनागरी में भी लिखा गया है।

अन्य राज्य भी इम्प्रेस, ले रहे एमपी की मदद

एमपी के बाद अब देश के अन्य राज्य ने भी अपने यहां हिन्दी में मेडिकल शिक्षा की शुरूआत की है। इनमें राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, बिहार और उत्तरप्रदेश शामिल हैं। इन राज्यों को मेडिकल बुक्स के हिंदी ट्रांसलेशन की ट्रेनिंग मप्र के चिकित्सकों द्वारा ही दी गई है। इनकी टीमें कई बार एमपी आकर यह प्रक्रिया समझ चुकी हैं। यहां तक कि हाल ही में असम से भी एक टीम ने आकर यह प्रक्रिया समझी।

क्या कहते हैं मेडिकल छात्र

लायब्रेरी के साथ ऑनलाइन मिल रही किताबें


रीवा के सरकारी मेडिकल कॉलेज के एमबीबीएस सेकेंड इयर के स्टूडेंट अनुराग ने कहा कि हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई का सकारात्मक असर हुआ है। किताबें लाइब्रेरी में आ गई हैं। इन किताबों को ऑनलाइन ई कॉमर्स साइट से भी कोई भी आसानी से खरीद सकता है।
सब्जेक्ट पर पकड़ बन रही मजबूत

राजधानी के जीएमसी के एमबीबीएस स्टूडेंट अंकित ने बताया कि उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई हिन्दी मीडियम से की थी। ऐसे यह किताबें उनके लिए बेहद लाभकारी साबित हो रही हैं। यह उनके जैसे हर उस बच्चे को एक सबजेक्ट पर बेहतर पकड़ बनाने में मदद कर रही हैं, जिसकी अंग्रेजी कमजोर है।

विफल रही हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई


दो वर्ष पूर्व मध्य प्रदेश में हिन्दी के किताबों का अनावरण किया गया। यह कहा गया की मेडिकल की पढ़ाई हिन्दी में होगी। जो कि विफल प्रयोग रहा है। अपने भविष्य को देखते हुए कोई भी बच्चा इन किताबों से नहीं पढ़ रहा है। इसलिए अब इस पर चर्चाएं भी होना बंद हो गई है।
– डॉ आकाश सोनी, फॉर्मर स्टेट चेयरमैन, म.प्र. फाइमा (जूडा का राष्ट्रीय संगठन)

यह किताबें कर रही ब्रिज का कार्य

फर्स्ट इयर से लेकर थर्ड इयर की मेडिकल की हिन्दी किताबें सरकारी मेडिकल कॉलेज की लाइब्रेरी में मौजूद हैं। यह किताबें स्टूडेंट्स को सब्जेक्ट को बेहतर तरीके समझने में ब्रिज का कार्य कर रही हैं। स्टूडेंट्स अब खुद से इन किताबों के प्रति रुचि भी दिखा रहे हैं। जहां तक बात निजी मेडिकल कॉलेजों की है तो उन्हें भी अपनी लाइब्रेरी में यह किताबें रखने को कहा गया है। जिससे हिन्दी में मेडिकल की पढ़ाई को बढ़ावा मिले। अभी कुछ ही निजी कॉलेजों की लाइब्रेरी में यह किताबें उपलब्ध हैं।
-डॉ. लोकेंद्र दवे, नोडल अधिकारी, हिंदी प्रकोष्ठ

एमबीबीएस के सभी विषयों की हिन्दी में पुस्तकें तैयार

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हिन्दी पाठ्यक्रम में विद्यार्थियों की संख्या कम

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प्रयास है कि मात्र भाषा में विद्यार्थियों को शिक्षा मिले। इसी के तहत हिन्दी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू हुई है। इंजीनियरिंग का पाठ्यक्रम हिन्दी में तैयार है। विद्यार्थी भी हिन्दी माध्यम में प्रवेश ले रहे हैं। यह सही है कि अभी हिन्दी पाठ्यक्रम में विद्यार्थियों की संख्या कम है। धीरे-धीरे इसमें इजाफा होने की संभावना है।
– प्रो. राजीव त्रिपाठी, कुलगुरु, आरजीपीवी भोपाल

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