प्रधानमंत्री मोदी ने की थी तारीफ
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इस पहल की तारीफ करते हुए कहा था कि मध्यप्रदेश हिन्दी में मेडिकल की पढ़ाई कराने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। भारत में शिक्षा क्षेत्र के लिए यह एक पथ प्रदर्शक पहल है और एक प्रकार का पुनर्जागरण है। सरकार का मानना है कि जब भाषा को नौकरियों या व्यवसायों से जोड़ा जाता है तो वह अपनी समृद्धि और विकास का रास्ता खुद खोज लेती हैं।मंदार प्रोजेक्ट के तहत निकला हिन्दी का अमृत
एमबीबीएस की पुस्तकें हिन्दी में तैयार करने के प्रोजेक्ट को मंदार नाम दिया गया था। गांधी मेडिकल कॉलेज भोपाल में इसके लिए एक विशेष कक्ष भी मंदार के नाम से ही तैयार किया गया था। 97 डॉक्टरों की एक टीम बनाई गई जिसने करीब दो साल में सभी 20 विषयों की किताबों का हिन्दी में अनुवाद किया है। गलतियों से बचने के लिए तीन अलग-अलग लोगों ने प्रूफ रीडिंग की। इसके बाद हिन्दी विश्वविद्यालय को भी यह किताबें जांच के लिए भेजी गईं।अन्य राज्य भी इम्प्रेस, ले रहे एमपी की मदद
एमपी के बाद अब देश के अन्य राज्य ने भी अपने यहां हिन्दी में मेडिकल शिक्षा की शुरूआत की है। इनमें राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, बिहार और उत्तरप्रदेश शामिल हैं। इन राज्यों को मेडिकल बुक्स के हिंदी ट्रांसलेशन की ट्रेनिंग मप्र के चिकित्सकों द्वारा ही दी गई है। इनकी टीमें कई बार एमपी आकर यह प्रक्रिया समझ चुकी हैं। यहां तक कि हाल ही में असम से भी एक टीम ने आकर यह प्रक्रिया समझी।क्या कहते हैं मेडिकल छात्र
लायब्रेरी के साथ ऑनलाइन मिल रही किताबेंरीवा के सरकारी मेडिकल कॉलेज के एमबीबीएस सेकेंड इयर के स्टूडेंट अनुराग ने कहा कि हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई का सकारात्मक असर हुआ है। किताबें लाइब्रेरी में आ गई हैं। इन किताबों को ऑनलाइन ई कॉमर्स साइट से भी कोई भी आसानी से खरीद सकता है।
विफल रही हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई
दो वर्ष पूर्व मध्य प्रदेश में हिन्दी के किताबों का अनावरण किया गया। यह कहा गया की मेडिकल की पढ़ाई हिन्दी में होगी। जो कि विफल प्रयोग रहा है। अपने भविष्य को देखते हुए कोई भी बच्चा इन किताबों से नहीं पढ़ रहा है। इसलिए अब इस पर चर्चाएं भी होना बंद हो गई है।
यह किताबें कर रही ब्रिज का कार्य
फर्स्ट इयर से लेकर थर्ड इयर की मेडिकल की हिन्दी किताबें सरकारी मेडिकल कॉलेज की लाइब्रेरी में मौजूद हैं। यह किताबें स्टूडेंट्स को सब्जेक्ट को बेहतर तरीके समझने में ब्रिज का कार्य कर रही हैं। स्टूडेंट्स अब खुद से इन किताबों के प्रति रुचि भी दिखा रहे हैं। जहां तक बात निजी मेडिकल कॉलेजों की है तो उन्हें भी अपनी लाइब्रेरी में यह किताबें रखने को कहा गया है। जिससे हिन्दी में मेडिकल की पढ़ाई को बढ़ावा मिले। अभी कुछ ही निजी कॉलेजों की लाइब्रेरी में यह किताबें उपलब्ध हैं।हिन्दी पाठ्यक्रम में विद्यार्थियों की संख्या कम
प्रयास है कि मात्र भाषा में विद्यार्थियों को शिक्षा मिले। इसी के तहत हिन्दी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू हुई है। इंजीनियरिंग का पाठ्यक्रम हिन्दी में तैयार है। विद्यार्थी भी हिन्दी माध्यम में प्रवेश ले रहे हैं। यह सही है कि अभी हिन्दी पाठ्यक्रम में विद्यार्थियों की संख्या कम है। धीरे-धीरे इसमें इजाफा होने की संभावना है।– प्रो. राजीव त्रिपाठी, कुलगुरु, आरजीपीवी भोपाल