भोपाल

कोविड में लोगों की मदद करने कैलीफोर्निया से गांव लौटी माया

घर में ही खोल दिया हेल्थ केयर सेंटर
टेलीमेडीसिन से होता है डॉक्टरों से संपर्क
 

भोपालMay 15, 2021 / 03:41 pm

Arun Tiwari

coronavaccine

भोपाल : पढऩे वाले युवाओं की हमेशा ये ख्वाहिश रहती है कि वे विदेश में पढ़ाई करें और वहीं काम करने लगें। लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो हमेशा अपने देश में रहकर अपने लोगों के बीच में काम करना चाहते हैं। अमेरिका के कैलीफोर्निया में रहने वाली माया विश्वकर्मा उनमें से ही एक हैं। नरसिंहपुर जिले के छोटे से गांव मेहरागांव की माया विश्वकर्मा ने अमेरिका के कैलीफोर्निया में अपनी पीएचडी छोडकऱ अपने गांव के लोगों के बीच सेवा में जुट गईं। कोविड जैसी महामारी से अपने गांव और उसके आसपास के लोगों को बचाने के लिए उन्होंने अपने घर में हेल्थ केयर सेंटर खोल दिया। घर में ही 10 बिस्तरों के हेल्थ केयर सेंटर में वे लोगों को कोविड से बचाने में जुट गईं। इसका असर ये हुआ कि शुरुआती दौर में ही इलाज मिलने से 90 फीसदी लोगों को अस्पताल जाने की जरुरत नहीं पड़ी।

गांव में खोला टेलीमेडिसिन सेंटर :
माया का गांव महज दो हजार की आबादी वाला छोटा सा गांव है। यहां पर माया ने अपने दोस्तों और परिचितों से मदद लेकर टेलीमेडिसिन सेंटर खोल दिया है। इस सेंटर से वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए दिल्ली और जयपुर के डॉक्टर मरीजों को देखते हैँ और उनका इलाज करते हैं। ईमेल के जरिए दवाइयों का परचा माया के पास पहुंचता है और वे मरीज को वो दवाई दे देती हैं। मरीज से सिर्फ दवाई की लागत ही ली जाती है, डॉक्टरों की फीस माया अपनी तरफ से भरती हैं। यदि मरीज गंभीर है तो अपने घर के हेल्थ केयर सेंटर के बिस्तर पर उसको निगरानी में रखा जाता है। हेल्थ केयर केयर सेंटर में दो नर्स भी हैं जो मरीजों को इंजेक्शन और बॉटल चढ़ाने का काम करती हैं। इस हेल्थ केयर सेंटर में ऑक्सीजन,ब्लड प्रेशर,डायबिटीज चेक करने के उपकरणों के साथ एक ऑक्सीजन कंसंट्रेटर भी है। यदि मरीज की तबीयत ज्यादा खराब हो तो उसके पास के सरकारी अस्पताल भेजने का इंतजाम किया जाता है।

यूनिवर्सिटी और कैलीफोर्निया में कर रहीं पीएचडी :
माया यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया में एएमएल वैक्सीन और बोनमेरो ट्रांसप्लांट पर पीएचडी कर रहीं थीं। लेकिन गांव आने के फैसले से उनकी पीएचडी बीच में ही छूट गई। माया ने अमेरिका के साउथ डकोटा में थर्मो स्टेबल एंजाइम पर काम किया है। इसके अलावा उन्होंने दिल्ली के एम्स में भी न्यूक्लियर मेडिसिन ऑस्टियोपोरोसिस के डॉक्टरों के साथ भी काम किया है।

गांव में काम करने मिल रही खुशी :
माया कहती हैं कि इस महामारी में गांव के लोगों के कुछ काम आ पाई यही मेरे लिए सबसे बड़ा पुण्य का काम है। मैं अपनी कोशिशों से यहां के लोगों की जिंदगी को बेहतर करना चाहती हंू। यही कारण है कि मैंने अमेरिका छोडऩे में देरी नहीं लगाई। मेरी इस कोशिश को देखकर गांव वाले भी मेरा सहयोग कर रहे हैं। मैंने इससे पहले भी यहां की महिलाओं को सेनटरी नैपकिन के प्रति जागरुक किया था जिससे मुझे पैडवूमन के नाम से जाना जाने लगा।

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