यह नाम चौंकाने वाला क्यों?
कई बार के सांसद से लेकर 9 बार तक के विधायकों को छोड़ नया नाम चुना जाना। वरिष्ठता, क्षेत्र और जाति किसी भी कोटे से इनका नाम नहीं था। उज्जैन के मास्टर प्लान को लेकर चर्चा में रहे। टिकट पर भी संशय था। कांटे की टक्कर में जीते।
क्या ओबीसी फैक्टर से नाम आया?
हां, वैसे तो शिवराज खुद ओबीसी हैं, लेकिन उनका चेहरा सब जातियों को साधने लगा था। ओबीसी में अन्य नाम भी थे। सबसे बड़ा नाम प्रहलाद पटेल का माना जा रहा था। जो केंद्रीय मंत्री रहते चुनाव लड़े और जीते। माना जा रहा है कि भविष्य की राजनीति को देखते हुए चेहरा बनाया। मोहन यादव ओबीसी राजनीति का बड़ा चेहरा बनकर उभरेंगे, अभी यह देखना बाकी है।
यादव के साथ सबसे बड़ा फैक्टर क्या?
हॉर्डकोर हिन्दुत्व। हिन्दुत्व की धुरी पर ही उनकी राजनीति केंद्रित रही है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से शुरुआत की। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भी कई दायित्व में रहे और पसंदीदा कार्यकर्ता हैं।
ओबीसी नेता तो और भी हैं, मोहन यादव ही क्यों?
यादव सरनेम से पार्टी ने बड़ा निशाना साधा है। यह उपनाम मप्र में तो बहुत बड़े वोट बैंक को प्रभावित नहीं करता, लेकिन उत्तरप्रदेश और बिहार में यादव वोट बैंक बड़ा है। यादव उपनाम वहां कमाल कर सकता है।
पांच सांसद जो जीते उनकी आस-उम्मीदों का क्या हुआ?
नरेंद्र तोमर स्पीकर होंगे, बाकी को भी उचित भूमिका मिलेगी। 7 सांसदों कोउतारते ही साफ हो गया थी कि इन्हें राज्य की राजनीति में भेजा है। पार्टी चाहती थी कि सब सीएम की दौड़ में रहें, पार्टी को बंपर जीत दिलाएं। रणनीति कामयाब रही।
क्या रिवाज बदलने का कदम?
बदलाव में हमेशा अनुभव, उम्र, संघर्ष और स्वीकार्यता को तरजीह मिली। वीरेंद्र सखलेचा से लेकर सुंदर लाल पटवा, कैलाश जोशी, उमा भारती, बाबूलाल गौर, शिवराज तक इसी प्रक्रिया से अंग्रिम पंक्ति में आए। पर अब रिवाज बदल गया।
जेनरेशन नेक्स्ट की झलक क्या मंत्रिमंडल में भी दिखेगी?
भाजपा के इस निर्णय को पीढ़ी परिवर्तन की नजर से देखा जा रहा है। जिसमें त्वरित निर्णय, तकनीक, जीरो टॉलरेंस, जनकल्याण और युवाओं पर जोर शामिल है। सीएम के नए चेहरे यादव की इसी में अग्निपरीक्षा होगी। पर क्या अब मंत्रिमंडल में जेनरेशन नेक्स्ट की झलक होगी, यह देखना दिलचस्प होगा।
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