फिलहाल 9 फीसदी पीछे हैं पेंशनर्स
प्रदेश के कर्मचारियों को केंद्रीय कर्मचारियों के समान 42% डीए मिलने लगा है, लेकिन यहां के पेंशनर्स अभी 33% महंगाई राहत (डीआर) ही पा रहे हैं। यानी पेंशनर्स नियमित कर्मचारियों के मुकाबले 9% पीछे हैं। बुढापे में पेंशन ही सहारा है, लेकिन इसमें भी नियमों के पेंच से उनकी परेशानी बढ़ गई है। राज्य के 4.80 लाख पेंशनर्स महंगाई राहत के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सरकार उन्हें सिर्फ आश्वासन ही दे रही है। 1 नवंबर 2000 को मप्र के दो हिस्से हुए। मप्र से अलग होकर छत्तीसगढ़ बना। आबादी के हिसाब से पेंशनर्स का बंटवारा हुआ, इससे कर्मचारी भी प्रभावित हुए।
ऐसे समझें नुकसान
मध्यप्रदेश के कर्मचारियों को 42 प्रतिशत महंगाई भत्ता दिया जा रहा है। हाल ही में चार प्रतिशत डीए बढ़ा तो उन्हें इसका लाभ जनवरी 2023 से मिला। यानी छह माह का एरियर भी दिया जाएगा। दूसरी ओर पेंशनर्स को 33 प्रतिशत महंगाई राहत दी जा रही है। राज्य कर्मचारियों की तुलना में उन्हें 9 प्रतिशत कम महंगाई राहत मिल रही है। छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने पेंशनर्स को पांच प्रतिशत महंगाई राहत देने का निर्णय लिया। मध्यप्रदेश ने भी पांच प्रतिशत की सहमति दे दी, लेकिन मध्यप्रदेश सरकार ने अभी तक आदेश जारी नहीं किए। यदि पांच प्रतिशत अतिरिक्त महंगाई राहत मिल जाती है तो भी पेंशनर्स राज्य कर्मचारियों से चार प्रतिशत पीछे ही रहेंगे। उन्हें एरियर भी नहीं मिलेगा, क्योंकि मध्यप्रदेश द्वारा दी गई सहमति में एरियर का कोई जिक्र नहीं है।
राज्य पुनर्गठन की धारा 49 (6) है विवाद की बड़ी वजह
राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49(6) पेंशनर्स के महंगाई राहत के विवाद की बड़ी वजह है। पेंशनर्स को महंगाई राहत देने के पहले दोनों राज्य एक-दूसरे की सहमति लेते हैं। मप्र पेंशनर्स एसोसिएशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष गणेश दत्त जोशी बताते हैं, दोनों सरकारें अपना पैसा बचाने इस धारा की आड़ ले रही है, जबकि यह धारा सिर्फ राज्य विभाजन के दौरान के पेंशनर्स के लिए थी। तब जो पेंशनर्स जिस राज्य में गए, उनके लिए दोनों राज्यों की सहमति रही। उसके बाद रिटायर्ड लोगों पर यह नियम लागू नहीं होता, लेकिन अफसर मनमर्जी से काम कर रहे हैं।
नौकरशाही ने मामला बड़ा बनाया
पेंशनर्स का विवाद इतना बड़ा नहीं है, जितना सरकारों ने बना दिया। 13 नवंबर 2017 को केंद्र ने दोनों राज्यों को पत्र लिखा था। कहा दोनों राज्य अपने पेंशनर्स को समय पर महंगाई राहत देते रहें और साल के अंत में हिसाब कर लें। तब छत्तीसगढ़ की तत्कालीन रमन सिंह सरकार ने मप्र को सहमति पत्र भी लिखा था, लेकिन मप्र सरकार ने सहमति नहीं दी। विवाद उलझता चला गया। जो भी कर्मचारी रिटायर होते हैं, उनका महंगाई राहत फाइलों में उलझ जाती है। यह विवाद सिर्फ मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में ही है। उत्तर प्रदेश से अलग होकर बने उत्तराखंड, बिहार से अलग हो बने झारखंड में ऐसा विवाद नहीं है।