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सीएम भी कर चुके हैं केंद्रीय कृषि मंत्री से मुलाकात
बता दें कि, मध्य प्रदेश ने बासमती के लिए जी.आई. टैगिंग के लिए अपने 13 जिलों को शामिल करने की मांग कर रही है। पंजाब के अलावा हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू कश्मीर के कुछ जिलों को पहले ही बासमती के लिए जी.आई. टैगिंग मिली हुई है। ऐसे में मध्य प्रदेश भी इसी टैगिंग की सूबे में पैदावार होने वाले बासमति के लिए मांग कर रहा है। इसी सिलसिले में पिछले महीने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिल्ली स्थित केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात की थी। उन्होंने बासमती चावल को जियोग्राफिकल इंडिकेशन यानी जीआई टैग दिलाने की मांग की थी।
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ये है नियम
जीओग्राफीकल इंडीकेशंस ऑफ गुड्डस (रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट 1999 के मुताबिक जी.आई. टैगिंग कृषि वस्तुओं के लिए जारी किया जा सकता है, जो मूल रूप से एक देश के राज्य, क्षेत्र की विशेष हों, जहां ऐसी वस्तुओं की गुणवत्ता, प्रतिष्ठा या अन्य विशेषताएं इसके भौतिक उत्पत्ति की विशेषता को दर्शाती हो। बासमती के लिए जी.आई. टैगिंग बासमती के परंपरागत तौर पर पैदावार वाले क्षेत्रों को विशेष महक, गुणवत्ता और अनाज के स्वाद पर दिया गया है, जो इंडो-गंगेटिक मैदानी इलाकों के निचले क्षेत्रों में मूल तौर पर पाई जाती है और इस इलाके की बासमती की विश्वभर में अलग पहचान होती है।
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हो सकता है पाकिस्तान को फायदा
मुख्यमंत्री ने कहा कि ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन द्वारा मध्य प्रदेश के किसी भी दावे को विचारने का विरोध करते हुए ऐसा करने से भारत की निर्यात क्षमता पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव के बारे में चिंताएं जाहिर की जा रही हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत, हर साल 33,000 करोड़ रुपए का बासमती निर्यातक है, लेकिन भारतीय बासमती की रजिस्ट्रेशन में किसी तरह की छेड़छाड़ से बासमती की विशेषताएं और गुणवत्ता के पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय मार्केट में पाकिस्तान को फायदा हो सकता है।
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बासमती निर्यातकों के हितों से खिलवाड़
प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में मुख्यमंत्री ने जी.आई. टैगिंग के आर्थिक और सामाजिक महत्ता से जुड़े मुद्दे की तरफ उनका ध्यान दिलाते हुए कहा कि मध्यप्रदेश की बासमती को जी.आई. टैगिंग देने से राज्य के कृषि क्षेत्र और भारत के बासमती निर्यातकों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। श्री मोदी को इस मामले के मौजूदा स्वरूप में किसी तरह की छेड़छाड़ न करने देने के लिए सम्बन्धित अथोरिटी को आदेश देने की अपील करते हुए कहा कि किसानों और भारत के बासमती निर्यातकों के हितों की सुरक्षा के लिए ऐसा किया जाना बहुत जरूरी है।
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कानून का उल्लंघन
कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि मध्यप्रदेश बासमती की पैदावार के लिए विशेष जोन में नहीं आता। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि मध्यप्रदेश को बासमती की पैदावार वाले मूल क्षेत्र में शामिल नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि बासमती की टैगिंग के लिए मध्यप्रदेश के किसी भी इलाके को शामिल करने का कदम जी.आई. टैगिंग की प्रक्रिया और कानूनों का सीधा उल्लंघन होगा और जी.आई. टैगिंग इलाकों के उल्लंघन की कोई भी कोशिश न सिर्फ भारत के विशेष इलाकों में सुगंधित बासमती पैदावार के दर्जे को चोट पहुंचाएगी, बल्कि भारतीय संदर्भ में जी.आई. टैगिंग के मंतव्य को भी नुकसान पहुंचाएगी।
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पहले भी किए गए प्रयास, हुए निरस्त
मुख्यमंत्री ने कहा कि मध्यप्रदेश ने इससे पहले भी साल 2017-18 में बासमती की पैदावार के लिए जी.आई. टैगिंग के लिए कोशिश की थी। हालांकि, जीओग्राफीकल इंडीकेशन ऑफ गुड्डज (रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन) ऐक्ट 1999 के अंतर्गत गठित जीओग्राफीकल इंडीकेशन के रजिस्ट्रार ने मामले की जांच करने के उपरांत मध्यप्रदेश की माँग रद्द कर दी थी। इस सम्बन्ध में भारत सरकार के ‘दी इंटलेक्चुयल प्रॉपर्टी ऐपेलेट बोर्ड’ ने भी मध्यप्रदेश के दावे को खारिज कर दिया था। बाद में मध्यप्रदेश ने इन फैसलों को मद्रास हाई कोर्ट में चुनौती दी थी परन्तु कोई राहत नहीं मिली। कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि बासमती के लिए जी.आई. टैगिंग बारे मध्यप्रदेश के दावे को जाँचने के लिए भारत सरकार ने प्रसिद्ध कृषि विज्ञानियों की एक समिति का गठन भी किया था जिसने लम्बी-चौड़ी चर्चा के बाद राज्य के दावे को रद्द कर दिया था।