देशभर में इतने सारे लिटरेचर फेस्टीवल हो रहे हैं, इसका मतलब है कि हम भाषा के लिए सजग हुए हैं। यहां सिर्फ अंग्रेजी की भाषाएं तो नहीं होती है। यह बात गीतकार इरशाद कामिल ने कही। वे विश्वरंग समारोह में बैंड प्रस्तुति के लिए आए थे। उन्होंने बताया कि हमारे बैंड में पांच लोग हैं। यह हिंदुस्तान का पहला पोएट्री बैंड है।
युवाओं तक पहुंचाना है दिल की बात
उन्होंने कहा कि मेरे ‘इंक’ बैंड का मकसद युवाओं के दिल की बात करना है। मुझे हमेशा ऐसा लगा है कि दुनिया प्रेम से ही चलती है। जिस तरह से वे प्रेम करते हैं, उस तरह से समझदार -बुद्धिजीवी वर्ग नहीं कर पाता है। जब आप गीत में कोई छोटी सी बात लिखते हैं तो बीसियों खत आ जाते हैं। इंक बैंड में पोएट्री है, संगीत और गायकी है।
बड़ा पुराना साहित्यिक सा विचार चलता आ रहा है कि कविता लोगों से दूर होती जा रही है। मुझे लगता है कविताएं सिर्फ लिखने के लिए लिखी जा रही हैं, पाठकों तक पहुंचाने के लिए नहीं। भाषायी साहित्य के खत्म होने के खतरे पर उन्होंने कहा कि मैं भी अंग्रेजी स्कूल से पढ़ा हूं। अब बच्चों को पब्लिक स्कूल में पढ़ाकर मुझे खुशी महसूस होती है।
आज पैरेन्ट्स बच्चों को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाकर खुश है तो बच्चे अंग्रेजी सीखकर। हर किसी में एक कलाकार होती है, बस उसे निखारने की जरूरत है। हमारे देश में आज भी नब्बे प्रतिशत घरों में मातृभाषा बोली जाती है न की अंग्रेजी। मुझे नहीं लगता कि हिंदी-उर्दू पर संकट है। मैंने कोई उर्दू शब्द का इस्तेमाल किया तो उसका फील समझने के लिए डिक्शनरी का जरूरत नहीं पड़ती।
मिल के भी हम ना मिले….
इरशाद कामिल के बैंड द इंक की प्रस्तुतियों ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर उनके जहन में अपने लफ्जों की अमित छाप छोड़ी। देश का पहला पोएट्री बैंड द इंक कविताओं के जरिए दिलों की बातें करता है, जिसका मकसद गीतों और कविताओं के साथ संगीत का मिश्रण और उसमें सही तालमेल बैठाकर दर्शकों तक पहुंचाना है।
इरशाद ने मिल के भी हम ना मिले, तुमसे ना जाने क्यों, मीलों के हैं फासलें तुमसे ना जाने क्यो… के साथ प्रस्तुति की शुरुआत की। अपनी चर्चित नज़्म मैं उसका हो भी चुका और उसको खबर ही नहीं, इलाही इस खबर से बेखबर करे मुझको, मैंने खोया है खुद को बड़ी मुश्किल से, यहां खुदा कोई मुझे ढूंढ न लाए के साथ-साथ में आने… जैसी प्रस्तुतियों से श्रोताओं को खूब लुभाया।