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इन लोगों के लिये बड़ी परेशानी बना था लॉकडाउन
सरकार की ओर से अचानक ही लॉकडाउन लगाया गया था। प्रधानमंत्री मोदी के आहवान पर देशभर के लोगों से 21 मार्च 2020 को जनता कर्फ्यू लगाने की अपील की गई थी। लोगों ने इस कर्फ्यू का खुलकर समर्थन भी किया। लोगों को लगा कि, ये सिर्फ एक दिन के लिये ही तो बंद किया जा रहा है। हालांकि, 21 मार्च की शाम को ही पीएम मोदी द्वारा अचानक लॉकडाउन का ऐलान कर दिया गया, जो आगे बढ़ते-बढ़ते तीन माह से अधिक समय तक चला। लॉकडाउन लगते ही मध्य प्रदेश समेत देशभर के सभी कारोबार, बाजार, कंस्ट्रक्शन, दफ्तर आदि व्यवस्थाएं बंद हो गईं थी। ऐसे हालात उन लोगों के लिये बड़ी समस्या बन गए थे, जो अपने शहरों-गांवों को छोड़कर अन्य बड़े शहरों में बसे थे।
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पैदल तय किया था हजारों कि.मी का सफर
लॉकडाउन का बड़ा नुकसान, अन्य शहरों में काम या नौकरी करने वाले लोगों को भुगतना पड़ा। मजदूर वर्ग इससे खासा प्रभावित हुआ। वो लोग जो अन्य शहरों में काम तो करते थे और बड़े शहरों में किराये के मकानों में भी रहते थे। ऐसे लोगों के पास न तो खर्च के लिये पैसे बचे थे और न ही किराये के मकानों में रहने के लिये किराया। ऐसे लोगों ने अपनी जीवन लीला बचाने का सिर्फ एक ही तरीका बेहतर समझा और वो था अपना खुद का घर। शुरुआत में कोई परिवहन व्यवस्था भी चालू नहीं थी, जिसके चलते लोग अपने घरों के लिये जरूरी सामान लेकर पैदल ही निकल पड़े थे। इस दौरान कई लोगों ने तो देश के एक कोने से दूसरे कोने तक का सफर पैदल ही तय किया था।
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कई विचलित कर देने वाले दृष्यों का गवाह बना देश
इस दौरान मध्य प्रदेश समेत देशभर के कई लोग इनमें खासतौर पर मजदूर वर्ग शामिल थे। सड़क मार्ग के जरिये पैदल ही भूखे-प्यासे अपने घरों को जाते नजर आए थे। इस दौरान कई मार्मिक दृष्य भी देखने को मिले थे। मध्य प्रदेश के देवास हाईवे पर कर्नाटक से आ रही एक गर्भवती मजदूर महिला ने सड़क पर ही बच्चे को जन्म दिया था। इस दौरान उसके साथ कोई भी मौजूद नहीं था। हालांकि, बाद में उसे लोगों की मदद से देवास जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था। ऐसे कई विचलित कर देने वाले दृष्यों का पूरा देश गवाह बना था।
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सरकार ने की थी परिवहन व्यवस्था
हालांकि, लोगों की इस परेशानी को देखते हुए सरकार द्वारा लोगों को उनके शहर या गांव तक पहुंचाने के लिये ट्रेन व्यवस्था भी की गई थी। साथ ही, ई-पास भी बांटे जाने लगे थे। हालांकि, इन माध्यमों से घर लौटने की प्रक्रिया भी कोरोना गाइडलाइन से होकर गुजरती थी। यानी ट्रेन में सफर करने से पहले यात्री को अपनी कोरोना जांच करानी होती थी। संक्रमण का शक होने पर 14 दिनों के लिये क्वारंटीन होना होता था। इसके बाद अन्य सहर पहुंचकर भी यही प्रकिया होती थी। ऐसे में कई लोगों ने इसके व्यवस्था के तहत घर लौटने के बजाय पैदल सफर करना ही बेहतर समझा।
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2020 ने दी हमें ये सीख
फिलहाल, संक्रमण की रफ्तार अब पहले से काफी कम है। लॉकडाउन खुलने के बाद देश-प्रदेश के मजदूरों समेत अन्य लोग एक बार फिर अपने-अपने कामों और रोजगार के लिये बड़े शहरों में वापस पहुंचने लगे हैं। लॉकडाउन के दौरान हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई भी धीरे-धीरे हो ही जाएगी। व्यवस्थाएं दौबारा से पटरी पर आने लगी हैं। लेकिन, हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि, कोरोना अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। राजधानी भोपाल समेत देश-प्रदेश के कई शहरों के भीड़भाड़ वाले इलाके या बाजारों में देखा जा रहा है कि, लोग कोरोना नियमों का पालन नहीं कर रहे। हमें ये याद रखना होगा कि, लॉकडाउन लगने की वजह कोरोना वायरस है, जो अब भी हम में से कई लोगों में मौजूद है और एक जरा सी चूक हमें दौबारा उसी भयावय समस्या से दो-चार कर सकती है। इसलिये जागरूक रहना ही हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है, जो साल 2020 की हमारे जीवन के लिये सीख है।
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