दरअसल, हाईकोर्ट की इंदौर और ग्वालियर खंडपीठ ने अध्यक्ष, महापौर की आरक्षण प्रक्रिया पर रोक लगा दी है। अब राज्य निर्वाचन आयोग वकीलों से विधिक राय ले रहा है। इसमें यह जानने की कोशिश की जा रही है कि जिन जिलों में आरक्षण को लेकर पेंच फंसा है, वहीं चुनाव रोके जा सकते हैं या सभी निकायों में चुनाव रोकने होंगे। विधिक राय आने के बाद ही आयोग निकाय और पंचायत चुनाव कराने के संबंध में निर्णय लेगा।
चुनाव आयोग के वकीलों की राय
30 मार्च के बाद आने की संभावना है। अप्रेल में बोर्ड परीक्षाएं शुरू हो जाएंगी। ऐसे में आयोग के सामने दो समस्या खड़ी हो सकती हैं। इसमें पहले मतदान केन्द्र और दूसरी समस्या मतदानकर्मियों की कमी को लेकर आ सकती है। इसके बाद यदि चुनाव आगे बढ़ाए जाते हैं तो एक महीने का समय मिलेगा। इसमें भी करीब 25 दिन अधिसूचना और चुनाव कराने में लगेंगे। जून में बारिश की शुरुआत हो जाती है। इस स्थिति में न तो पंचायतों में चुनाव हो पाएंगे और न ही नगरीय निकायों में वोटिंग हो सकेगी।
आयोग ने सरकार से मांगा पुलिस बल
भारत निर्वाचन आयोग ने मप्र सरकार से पश्चिम बंगाल सहित पांच राज्यों में चुनाव कराने के लिए पुलिस बल मांगा है। इसे लेकर गृह विभाग ने राज्य निर्वचन आयोग को पत्र लिखकर पूछा है कि स्थानीय चुनाव कराने के संबंध में क्या स्थिति है। यहां कितने बल की जरूरत होगी, ताकि उस हिसाब से दूसरे राज्यों के लिए बल दिया जाए।