भोपाल

राजधानी में मनमोहक रूपों में विराजित हैं प्रथम पूज्य गजानन

-कोलार में दगड़ू सेठ, छोला में सिद्धिविनायक तो भेल में 2.5 फीट गणेश प्रतिमा स्थापित

भोपालSep 08, 2018 / 05:23 pm

manish kushwah

ड्रॉ से किया जाता है निर्णय, किस घर विराजेंगे श्रीगणेश

भोपाल. सनानत परंपरा में प्रथम पूज्य श्री गणेश को बुद्धि एवं समृद्धि का देवता माना गया है, किसी भी शुभ कार्य को श्रीगणेश की पूजन के बगैर शुरू नहीं किया जाता है। गजानन के विभिन्न रूपों के पूजन की परंपरा रही है। श्रद्धालु अलग-अलग रूपों में श्रीणेश की न केवल आराधना करते हैं, बल्कि इन विशेष नामों से मंदिरों की स्थापना भी की गई है। राजधानी में भी अलग-अलग क्षेत्रों में भगवान श्रीगणेश के विभिन्न रूपों को प्रदर्शित करती प्रतिमाएं विराजित की गई हैं।

 

गणेशोत्सव को लेकर इन सभी मंदिरों में विशेष तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। महाराष्ट्र के पुणे शहर में मौजूद प्रसिद्ध दगड्ू सेठ मंदिर की तर्ज पर कोलार में दगड़ू गणेश मंदिर तो मुंबई के ख्यात सिद्धिविनायक की तरह छोला में सिद्धि विनायक गणेश मंदिर है। इसी तरह भेल में महाराष्ट्रीयन समाज द्वारा स्थापित गणेश मंदिर में ढाई फीट की संगरमरमर से बनी प्रतिमा श्रद्धालुओं को भाव-विभोर कर देती है। ये सभी गणेश मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था के प्रमुख केंद्र हैं। प्रत्येक बुधवार यहां श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगती हैं। उद्देश्य यही है कि इस विशेष दिन श्रीगणेश के दर्शनों का लाभ मिल सके। इसी तरह गणेशोत्सव के दौरान यहां विशेष पूजा अर्चना की जाती है।

पुणे की तर्ज पर दगड़ू गणेश मंदिर
पुणे स्थित प्रसिद्ध गणेश मंदिर की तर्ज पर कोलार स्थित बैरागढ़ चीचली में वर्ष 2010 में मंदिर की स्थापना की गई है। इस मंदिर का निर्माण नारायण राव बहाड़ ने कराया था। इसके पीछे वजह ये थे कि जो श्रद्धालु पुणे स्थित गणेश मंदिर दर्शन करने नहीं जा सकते हैं उन्हें राजधानी में ही दगड़ू गणेश के दर्शन हो सकें।
नारायणराव बहाड़ के छोटे भाई अमराव शंकर राव ने बताया कि उनके बड़े भाई वर्ष 2008 में पुणे स्थित अष्ट विनायक मंदिर गए थे। उन्हें ये मंदिर और दगड़ू गणेश प्रतिमा इतनी पसंद आई कि उन्होंने निश्चय किया कि भोपाल में भी दगड़ू गणेश मंदिर बनाएंगे। इस मंदिर में स्थापित मूर्ति को जयपुर के कलाकारों ने आकार दिया है। मंदिर के पुजारी नीरज दीक्षित के मुताबिक संभवत: ये भोपाल का इकलौता ऐसा गणेश मंदिर है जहां दगड़ू गणेश प्रतिमा विराजित है।
 

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प्राचीन सिद्धि विनायक गणेश मंदिर
प्रथम पूज्य श्रीणेश के विभिन्न रूपों में से एक हैं सिद्धि विनायक गणेश। राजधानी में एकमात्र सिद्धि विनायक मंदिर छोला क्षेत्र में हे। यहां सिद्धि विनायक गणेश की 11 फीट की आकर्षक प्रतिमा विराजित हैं। साथ में रिद्धि-सिद्धि भी हैं। इस मंदिर की स्थापना वर्ष 1980 में जगदीश वाजपेयी के परिवार ने की थी। वाजपेयी परिवार इस मंदिर का ट्रस्टी है। तकरीबन दस हजार वर्गफीट में बने इस मंदिर की तीसरी मंजिल पर सिद्धि विनायक गणेश की प्रतिमा स्थापित है।

इस मंदिर की खासितय है कि इसें रंगबिरंगे कांचों से सजाया गया है। मांगलिक एवं धार्मिक आयोजनों के लिए यहां विशाल हॉल बनाया गया है। यहां गणेशोत्सव में विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इस मंदिर में सिद्धि विनायक के दर्शनों के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।

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यहां विराजमान हैं 2.5 फीट की गणेश प्रतिमा
भेल के पिपलानी सी सेक्टर स्थित श्री गणेश का मंदिर पिपलानी की पहचान बन गया है। मराठी सांस्कृतिक मंडल के सचिव एम गोडबोले ने बताया कि इसका निर्माण वर्ष 1975 में कराया गया था। भेल के तत्कालीन एचआइआरएल प्रतिष्ठान प्रमुख स्वयंभूजी ने मंदिर की आधारशिला रखी थी। तब से अभी तक यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है।

यहां प्रत्येक संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह से चंद्रोदय तक मेला लगता है। इस दिन यहां अथर्वशीर्ष के पठन-आवर्तनों से अभिषेक आदि होता है। इस मंदिर में 400 व्यक्तियों के बैठने की व्यवस्था है। यह विराजमान भगवान गणेश की मूर्ति जयपुर से मंगाई गई थी। सफेद संगमरमर से निर्मित यह 2.5 फीट ऊंची यह प्रतिमा मूर्तिकला की एक अद्भुत मिसाल है।

 

ड्रॉ से किया जाता है निर्णय, किस घर विराजेंगे श्रीगणेश
राजधानी में गणेशोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन मराठी संस्कृति के मुताबिक इस उत्सव को मनाने वालों की भी कमी नहीं है। कोलार में एक रहवासी कॉलोनी ऐसी है जहां गणेश प्रतिमा विराजित करने के लिए ड्रॉ निकाला जाता है, जिस रहवासी के नाम से ड्रॉ खुलता है उसके घर पर दगड़ू गणेश प्रतिमा की स्थापना की जाती है। इस अनूठी प्रथा के पीछे वजह ये है कि वर्ष 2012 में कोलार रोड पर लावारिस हालत में मिले एक बुजुर्ग को सर्वधर्म बी सेक्टर स्थित अपनाघर वृद्धाश्रम को सौंपा गया था। मूलत: महाराष्ट्र के रहने वाले ये बुजुर्ग पारिवारिक कारणों से घर छोड़ आए थे। अपनाघर की संचालिका माधुरी मिश्रा ने बताया कि स्वास्थ्य बिगडऩे के दौरान उन्होंने पुणे स्थित मंदिर में दगड़ू गणेश के दर्शन की इच्छा जाहिर की, लेकिन उनकी स्थिति ऐसी नहीं थी कि उन्हें सफर कराया जा सके।

इसके बाद कॉलोनीवासियों एवं आश्रम संचालिका की बेटी ने कॉलोनी में पुणे से दगड़ू गणेश की प्रतिमा लाकर स्थापना करने की पहल की। तब ये यहां हर वर्ष गणेशोत्सव में दगड़ू गणेश प्रतिमा की स्थापना की जाती है। गणेशोत्सव के दौरान जिस रहवासी को श्रीगणेश प्रतिमा स्थापित करने का अवसर मिलता है वो परिवार एक कमरे को खुद अपने हाथों से सजाता है। यहां दस दिन तक मराठी संस्कृति के मुताबिक भजन एवं कीर्तन आयोजित किए जाते हैं। गणेशोत्सव के अंतिम दिन कॉलोनी के रहवासी महाराष्ट्रीयन परिधान में गणेश प्रतिमा को ढोल-नगाड़ों के साथ विसर्जन के लिए ले जाते हैं।

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