पिछले 15 साल में सत्र की बैठकें लगातार कम होती गईं। जबकि कांग्रेस कार्यकाल में तो जरूरत पडऩे पर देर शाम तक बैठकें कीं। वर्तमान 15वीं विधानसभा के पिछले 3 सत्रों में सदन देर रात तक चले हैं तथा उनमें शासकीय काम काज के निबटारे के साथ जनहित के मुद्दों पर भी चर्चा की गई है।
भार्गव के पत्र के एक-एक बिन्दु का जबाव देते हुए संसदीय कार्यमंत्री ने पूछा है कि आप यह कह रहे हैं कि प्रदेश में यह परम्परा रही है कि सत्र की तिथि और समय अवधि तय करने के पहले प्रतिपक्ष से चर्चा की जाती थी, लेकिन आप यह बताएं कि भाजपा के 15 साल के कार्यकाल में प्रतिपक्ष से कब इस बारे में चर्चा की गई या फिर सलाह मशविरा किया गया। हकीकत तो यह है कि भाजपा कार्यकाल में प्रतिपक्ष से कभी इस बारे में नहीं पूछा गया।
उन्होंने कहा कि सरकार सदन में लोक महत्व के विषय पर चर्चा को तैयार है। संसदीय कार्यमंत्री ने पत्र में लिखा कि भाजपा कार्यकाल के दौरान विधानसभा सत्र जनहित के विषयों पर चर्चा के बिना ही निर्धारित अवधि के पूर्व की स्थगित कर दिए जाते थे। भाजपा शासन ने लोकमहत्व के विषयों तथा पटल पर रखे गए प्रतिवेदनों पर चर्चा करने से हमेशा दूरी बनाई। सत्र की अवधि बढ़ाए जाने का आग्रह खारिज करते हुए संसदीय कार्य मंत्री ने लिखा है कि यह अल्प अवधि का सत्र है इसलिए सदन की पांच बैठकें बुलाई गई हैं।
तीन-तीन दिन के भी हुए सत्र – संसदीय कार्य मंत्री ने भाजपा काल में अल्पावधि सत्रों का पूरा विवरण भी दिया है। इसमें बताया गया है कि कई सत्र तो तीन-तीन दिनों के लिए बुलाए गए। इसमें नवम्बर 2007, जुलाई 2008, मार्च 2009, जुलाई 2012, मार्च 2014, जुलाई 2015 का सत्र शामिल है। जून 2018 के सत्र में तो मात्र दो दिन का हुआ।