गायक थे लता के पिता
लता मंगेशकर के पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर रंगमंच के कलाकार थे। वे एक गायक थे और संगीत की पाठशाला चलाते थे। उन्होंने ही लता को बचपन में गाने का रियाज कराना शुरू किया था और भविष्यवाणी की थी कि एक दिन लता बहुत बड़ी गायिका बनेंगी। हालांकि पंडित दीनानाथ का निधन उस समय हो गया था, जब लता महज 13 साल की थीं।
सुनती थी पिता के गीत
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक लता अपने आखिरी दिनों में वेंटिलेटर पर अपने पिता को बेहद याद करती थीं। उन्होंने हृदयनाथ से पिता के गानों की रिकॉर्डिंग्स अस्पताल आईसीयू में ही मंगा ली थी, उन्हें सुन रही थींं। डॉक्टरों के मना करने के बावजूद मास्क हटाकर पिता के गानों को गुनगुनाने की कोशिश करती थीं। अपनी जिंदगी के अंतिम दो दिनों में सुनने में दिक्कत होने पर उन्होंने अस्पताल में ही ईयरफोन मंगवाया और गाने सुनना जारी रखा।
पिता से था अनूठा रिश्ता
लता ने बचपन से ही अपने पिता को गाता देखा और अकेले में उनकी तरह गुनगुनाने की कोशिश की। लेकिन डर के कारण वे पिता के सामने कभी भी गाना नहीं गाती थीं। जबकि दीनानाथ उन्हें बेहद प्यार करते थे। पहले उनका नाम हेमा रखा गया था, बाद में पंडित दीनानाथ ने अपने एक नाटक ‘भाव बंधनÓ में लतिका नाम के किरदार से प्रभाावित होकर उनका नाम बदलकर लता रख दिया था। दीनानाथ ने पहली बार लता को 5 साल की उम्र में गाते सुना था और इतने हैरान रह गए कि उन्होंने लता को अपना शिष्य बना लिया।
रियाज न छूटे इसलिए घर पर ही की पढ़ाई
पंडित दीनानाथ को लता की आवाज के पूरी दुनिया पर छाने का इतना यकीन था कि उन्होंने लता के रियाज कभी छूटने नहीं दिया। यहां तक कि उन्हें महज दो दिन स्कूल भेजा और फिर पढ़ाई बंद करवा दी। इसके बाद से लता ने सारी पढ़ाई घर पर ही की। पंडित दीनानाथ ने उन्हें संगीत के साथ ही कई भाषाओं की शिक्षा भी घर पर ही दिलवाई।
नहीं सुनती थीं अपने रिकॉर्डेड सॉन्ग
एक इंटरव्यू में लता ने बताया था कि वे एक बार रिकॉर्ड होने के बाद कभी भी अपने गाने नहीं सुनती थीं। क्योंकि जब वे अपने गाने सुनती थीं, तो उस गाने में अपनी गलतियां पकड़ लेती थीं और काफी दुखी हो जाती थीं। वे ये सोचकर बेचैन हो जाती थीं कि, जब कोई बड़ा संगीतकार उनके गाने सुनेगा और गलतियां निकालेगा तो उनके बारे में क्या सोचेगा।
यह था उनका पहला प्रोग्राम
लता ने इंटरव्यू में यह भी बताया था कि उन्होंने 9 साल की उम्र में गाना शुरू किया था। तब उनका परिवार सोलापुर में रहता था। तब कुछ लोग उनके पिताजी के पास आए और उनसे कहा कि वे उनका एक क्लासिकल प्रोग्राम थिऐटर में रखना चाहते हैं। इसपर उनके पिताजी ने हामी भर दी। यह देखकर लता ने भी अपने पिता से कहा कि वह भी गाना चाहती हैं। उनके पिता ने कहा कि वे तो अभी छोटी हैं, वो क्या गाएंगी। लेकिन लता मंगेशकर जिद करने लगीं।
पिताजी ने उनसे पूछा- कौन सा राग गाएंगी? इस पर लता मंगेशकर बोलीं- मैं खंबावती गाऊंगी, जो आप सिखा रहे थे। तब लता मंगेशकर ने बताया, ‘शो रात को था तो पिताजी ने कहा-तू पहले गा। मैं गाने के लिए बैठी और गाया मैंने। लोगों को बहुत अच्छा लगा। फिर पिताजी आए और उन्होंने गाया। वो जब गा रहे थे तो मैं पिताजी की गोद में सिर रखकर सो गई। तो ये मेरा पहला प्रोग्राम था।’