मुनि सेवा समिति के मुकेश जैन ढाना ने बताया कि 5 दिसंबर को आचार्यश्री का कुंडलपुर में प्रवेश हुआ। उसके बाद निर्यापक मुनि समयसागर, निर्यापक मुनि योगसागर, मुनि प्रशांतसागर, मुनि विमलसागर, अजितसागर, सौम्यसागर सहित कई अन्य संघ कुंडलपुर पहुंच चुके हैं। जिले के इसरवारा में जन्मे चतुर्थ निर्यापक मुनि सुधासागर भी 8 वर्ष बाद कुंडलपुर पहुंच रहे हैं।
189 फीट ऊंचाई, सिर्फ पत्थरों से काम
दमोह जिला मुख्यालय से 36 किमी दूर स्थित जैन तीर्थ क्षेत्र कुंडलपुर में बड़े बाबा के मंदिर निर्माण कार्य पूरा हो गया। इसके शिखर की ऊंचाई 189 फीट है। दुनिया में अब तक नागर शैली में इतनी ऊंचाई वाला मंदिर नहीं है। मंदिर की ड्राइंग डिजाइन अक्षरधाम मंदिर की डिजाइन बनाने वाले सोमपुरा बंधुओं ने तैयार की है। मंदिर की खासियत है कि इसमें लोहा, सरिया और सीमेंट का उपयोग नहीं किया है। इसे गुजरात व राजस्थान के लाल-पीले पत्थरों से तराशा गया है। पत्थर को दूसरे पत्थर से जोडऩे के लिए भी खास तकनीक का इस्तेमाल किया है।
63 मंदिर हैं स्थापित
प्राचीन स्थान कुंडलपुर को सिद्धक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। यहां 6& मंदिर हैं, जो 5वीं-6वीं शताब्दी के बताए जाते हैं। क्षेत्र 2500 साल पुराना बताया जाता है। कुण्डलपुर सिद्ध क्षेत्र अंतिम श्रुत केवली श्रीधर केवली की मोक्ष स्थली है। यहां 1500 वर्ष पुरानी पद्मासन श्री 1008 आदिनाथ भगवान की प्रतिमा है, जिन्हें बड़ेबाबा कहते हैं।
गजरथ महोत्सव और महामस्तकाभिषेक 2022 के संबंध में पदाधिकारियों ने बताया कि आचार्य विद्यासागर की प्रेरणा और पहल से हो रहे पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव के लिए आवश्यक अधो-संरचनात्मक व्यवस्थाओं को सुनिश्चित की जा रही है। आयोजन समिति के साथ ही सभी संबंधित विभाग महोत्सव के लिए सुरक्षा, विद्युत, पेयजल, यातायात और अन्य सुविधाएँ विकसित कर रहे हैं। महोत्सव में देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए बेहतर रेल परिवहन व्यवस्था के लिए केन्द्र सरकार से भी अनुरोध किया जाएगा।
कुंडलपुर देश-विदेश के प्रमुख जैन तीर्थों में शामिल है। ईसा से 6वीं शताब्दी पूर्व भगवान महावीर स्वामी का समवसरण यहां आया था। आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के शिष्य मुनि सुधासागर महाराज का विहार चांदखेड़ी राजस्थान से गुरु चरणों की ओर कुंडलपुर के लिए चल रहा है। उनके 7 फरवरी को कुंडलपुर पहुंचने की संभावना है। मुनि सुधासागर महाराज ने जिज्ञासा समाधान में कहा कि भगवान महावीर स्वामी के बाद आचार्य भद्रबाहु स्वामी के संबंध में आगम में यह बात मिलती है कि पाटलीपुत्र में लगभग 24 हजार साधु इक_ा हुए थे और उसके 2000 साल बाद आचार्य कुंदकुंद स्वामी के संबंध में भी कथन है कि भगवान नेमिनाथ की निर्वाण भूमि गिरनार मे भी
लगभग 500 साधु एकत्रित हुए थे। अब 2000 वर्ष बाद यह पहला इतिहास है जब कुंडलपुर में गुरुदेव विद्यासागर महाराज के मंगल सान्निध्य में इतने साधु इकटठे हो रहे हैं। मुनिश्री ने कहा कि जो जगत के आराध्य हैं वह गुरुदेव विद्यासागर जी महाराज हैं और उनके आराध्य कुंडलपुर के बड़े बाबा हैं। गुरुदेव ने कहा इस करोना काल में भी हम सब इसलिए जिंदा है क्योंकि हमारे नसीब में कुंडलपुर के बड़े बाबा का पंचकल्याणक देखना लिखा है।
कुंडलपुर के ट्रस्टियों की माने तो भगवान महावीर के 500 शिष्य हुए जिनमें इंद्रभूति गौतम के भट्टारक ने भ्रमण किया था। भट्टारक सुरेंद्र कीर्ति ने कुंडलगिरी क्षेत्र से भगवान आदिनाथ की प्रतिमा खोजी थी। तब से यह माना जा रहा है कि भगवान महावीर का समवसरण 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व कुंडलपुर आया था। इस इलाके की पहाडिय़ां कुंडली आकार में होने के कारण पहले इसका नाम कुंडलगिरी था। बाद में धीरे-धीरे इसका नामकरण कुंडलपुर पड़ गया। जो अब सबसे बड़ा तीर्थ क्षेत्र है। यह क्षेत्र 2500 साल पुराना बताया जाता है।
वैसे तो कुंडलपुर में विराजित भगवान आदिनाथ की 15 फीट ऊंची विशाल प्रतिमा की खोज करने वाले के रूप में भट्टारक सुरेंद्र कीर्ति का नाम आता है। लेकिन एक किवदंती यह भी है कि पटेरा गांव में एक व्यापारी प्रतिदिन सामान बेचने के लिए पहाड़ी के दूसरी ओर जाता था। रास्ते में उसे प्रतिदिन एक पत्थर से ठोकर लगती थी। एक दिन उसने मन बनाया कि वह उस पत्थर को हटा देगा। लेकिन उसी रात उसे स्वप्न आया कि वह पत्थर नहीं तीर्थंकर मूर्ति है। स्वप्न में उससे मूर्ति की प्रतिष्ठा कराने के लिए कहा गया, लेकिन शर्त थी कि वह पीछे मुड़कर नहीं देखेगा। उसने दूसरे दिन वैसा ही किया। बैलगाड़ी पर मूर्ति सरलता से आ गई। जैसे ही आगे बढ़ा उसे संगीत और वाद्य, ध्वनियां सुनाई दीं। जिस पर उत्साहित होकर उसने पीछे मुड़कर देख लिया। और मूर्ति वहीं स्थापित हो गई। जिसके बाद उसने यही प्रतिमा स्थापित कराकर मंदिर बनवाया था।