भोपाल

आदिवासी अंचल से पांच सितारा होटल पहुंची कोदो-कुटकी

– ब्राउन राइस नाम से परोसी जा रही

भोपालJul 29, 2020 / 01:07 am

anil chaudhary

kisan

पत्रिका टीम. परंपरागत जिंसों की खेती कर रहे आदिवासियों की बदौलत उनकी रोजमर्रा की फसल कोदो कुटकी ने संयुक्त राष्ट्र में आदिवासी अंचल डिंडोरी, शहडोल, मंडला और अनूपपुर समेत पूरे मध्यप्रदेश का नाम किया है। यही फसल अपने बहुआयामी स्वास्थ्यवद्र्धक गुणों व लजीज स्वाद की बदौलत देश के कुछ पांच सितारा होटलों में ब्राउन राइस के नाम से परोसी जा रही है। शहडोल से शुभम बघेल व रमाशंकर मिश्र, मंडला से विख्यात मंडल, डिंडोरी से रवि राज बिलैया और अनूपपुर से राजन कुमार की रिपोट…र्
शहडोल/डिंडोरी/मंडला/अनूपपुर. आदिवासी परंपरागत रूप से कोदो कुटकी की खेती करते रहे हैं। यह शुगर फ्री होती है, गुर्दों और मूत्राशय के लिए यह अति उत्तम है, उच्च रक्तचाप में प्रभावी समेत अन्य कई औषधीय गुणों से भी यह भरपूर होती है। इसमें रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं होता है, इसलिए यह मानव के लिए हर तरह से उपयोगी खाद्य पदार्थ है।
सरकार ने कोदो कुटकी को संकटग्रस्त प्रजातियों की खेती वाली सूची (आईयूसीएन) में डाला हुआ है। इसे संकट से निकालने के लिए सरकारी स्तर पर जो प्रयास हुए, उसी का नतीजा है कि मंडला में 60 हजार से ज्यादा किसान अब इसकी खेती कर रहे हैं, जिनमें आधे से ज्यादा सामान्य किसान हैं। वहां 26 हजार हेक्टेयर में इसका उत्पादन हो रहा है और पिछले साल का उत्पादन 27 हजार टन था। शहडोल में इस बार रकबा 5.63 हजार हेक्टेयर से बढ़कर 9 हजार हेक्टेयर हो गया है, तो डिंडोरी में 28 हजार हेक्टेयर में इसकी बोवनी की जा रही है। अनूपपुर में भी पांच साल में रकबा 8 हजार हेक्टेयर से बढ़कर 15 हजार हेक्टेयर से ज्यादा हो गया है।
– कम पानी में उपलब्ध उपज
किसान बताते हैं कि ढाई महीने से लेकर तीन महीने मे यह फसल मिल जाती है, इसलिए एक साल में तीन बार फसल लेना संभव हो पाता है। आदिवासी क्षेत्रों की जलवायु व मिट्टी इसके लिए अनुकूल है। इस उपज में ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती।

– नागपुर समेत महाराष्ट्र में मांग
किसानों से खरीदकर व्यापारी कोदो कुटकी को नागपुर समेत महाराष्ट्र के कई शहरों में भिजवाते हैं। इसके औषधीय गुणों से वाकिफ बाहर के कुछ व्यापारी भी खरीद के लिए यहां आते हैं।
– सरकारी स्तर पर प्रयास
मध्यप्रदेश में मोटे अनाज के तौर पर यह मिड डे मील कार्यक्रम में शामिल है। इसके तहत आदिवासी क्षेत्रों में ही आंगनबाड़ी केंद्रों पर 3 से 6 साल तक के बच्चों को कोदो कुटकी से जुड़े व्यंजन परोसे जाते हैं। अभी डिंडोरी व अनूपपुर में दो-दो जगह पर प्रसंस्करण इकाइयों में कोदो कुटकी से चावल, पट्टी, बिस्किट और खीर जैसे दर्जनभर व्यंजन बनते हैं। मंडला और शहडोल में ऐसी इकाइयां नहीं हैं।

सरकार प्रोसेसिंग यूनिट के साथ अन्य संसाधन विकसित करे तो किसान वृहद स्तर पर कोदो कुटकी की खेती करना चाहते हैं। अभी कोदो कुटकी का चावल निकालने के लिए लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, जिसमें समय के साथ ही ज्यादा मेहनत भी लगती है। प्रोसेसिंग यूनिट लगने से आसानी से इसका चावल निकाला जा सकेगा।
– होरीलाल जायसवाल, किसान जुगवारी (शहडोल)

सोयाबीन की फसल से लगातार नुकसान हो रहा था और अब तो उसमें फली भी नहीं लग रही है, जिसे देखते हुए अब सोयाबीन की जगह कोदो कुटकी की खेती शुरू की है। इसकी चारा मार दवा चॉक साइज बन जाए तो निंदाई में जो खर्च आता है उससे किसानों को काफी राहत मिल जाएगी।
– बजारू कोल, किसान जुगवारी (शहडोल)

दूसरे का खेत लेकर उसमें कोदो कुटकी की खेती कर रहे हैं। जो भी फसल होती है उसमें से अपने खाने के लिए रख देते हैं। बाकी व्यापारियों को सीधे बेच देते हैं। अभी तक उतना लाभ नहीं मिल रहा है, जितना मिलना चाहिए। समर्थन मूल्य पर खरीदी की व्यवस्था हो जाए और सार्वजनिक वितरण प्रणाली में इसे शामिल किया जाए। अभी किसानों को 12-15 रुपए प्रति किलो का भाव ही मिल पाता है।
श्याम लाल सिंह, किसान बडख़ेरा (शहडोल)


इस बार तीन एकड़ में फसल बोयी है। शासकीय स्तर पर खेती के लिए भी कोई सहायता नहीं दी जाती है। प्रोससिंग यूनिट दूर है जिसमें खर्च अधिक और लाभ कम मिल पाता है।
महेश प्रसाद, किसान नोनघटी गांव (अनूपपुर)

इस वर्ष पांच एकड़ में खेती की है। पूर्व में स्थानीय व्यापारी बीज 20.25 रुपए प्रति किलो के अनुसार उपलब्ध कराते थे, लेकिन इसी तैयार फसल को वे 15.17 रुपए की हिसाब से खरीदी करते थे। पिछले साल से हम फसल को प्रोसेसिंग यूनिट में भेज रहे हैं। इस वर्ष 100 रुपए किलो की दर के कारण इसका कुछ लाभ दिखने लगा है।
सुरेन्द्र, किसान बहपुरी गांव (अनूपपुर)

जिले में परंपरागत फसलों को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं। किसानों को कोदो कुटकी की खेती के लिए प्रोत्साहित किया गया है। यदि अच्छी पैदावार हुई तो प्रोसेसिंग यूनिट सहित अन्य सुविधाएं विकसित करने की दिशा में प्रयास किए जाएंगे।
– जेएस पेन्द्राम, उप संचालक कृषि, शहडोल

कोदो स्वास्थ्यवद्र्धक और परम्परागत खाद्य श्रेणी में शामिल है। प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करने के साथ स्थानीय स्तर पर आउटलेट की दुकान की व्यवस्था बनाई जा रही है। प्रशासन द्वारा ब्रांडिंग, पैकजिंग, और प्रोसेसिंग पर ध्यान दिया जा रहा है। यह सही है कि समर्थित मूल्य और बेहतर बाजार का अभाव होने के कारण इसमें किसानों ने ज्यादा रुचि नहीं दिखाई है।
– एनडी गुप्ता, उप संचालक कृषि, अनूपपुर

डिंडोरी में प्रसंस्करण इकाइयों मे अच्छा काम हुआ है। कृषि विभाग तेजस्विनी व आजीविका एनआरएलएम के साथ मिलकर कोदो कुटकी का उत्पादन बढ़ाने का काम भी कर रहा है। इसमें बीज उत्पादन पर भी जोर दिया जा रहा है, ताकि किसानों को बीज की अच्छी कीमत मिल सके। इसके सरकारी स्तर पर उपार्जन के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं।
– पीडी साराठे, उप संचालक कृषि, डिंडोरी

 

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