विदिशा में विजय दशमी के दिन मनाया जाता है शोक
विदिशा जिले की नटेरन तहसील में एक रावणग्राम एक गांव है जिसका नाम रावण के नाम पर रखा गया है। यहां लंका के राजा को समर्पित एक प्रसिद्द मंदिर है जिसे रावणग्राम मंदिर के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी विदिशा की रहने वाली थी इसलिए यहां के लोग रावण को अपना दामाद मानते हैं। मंदिर के अंदर दशानन की 10 फ़ुट लंबी लेटी हुई मूर्ति है। यहां रावण को रावण बाबा के नाम से पूजा जाता है। मंदिर के सामने एक तालाब है, जिसके बीचों-बीच एक पत्थर की तलवार गढ़ी हुई है। स्थानीय लोगों का मानना है की इस तालाब की मिट्टी से चर्म रोग ठीक होते हैं। रावणग्राम गांव इस कदर रावण का भक्त है कि किसी भी शुभ लकार्य को करने से पहले मंदिर जाकर उनकी पूजा करते है। बात अगर दशहरे के दिन की बात की जाए तो जिस दिन पूरा भारत श्री राम के भेष में इंसान द्वारा रावण के पुतले को जला देने के बाद जश्न मनाता है तो वहीँ इस गांव में रावण दहन का शोक मनाया जाता है।
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क्षमा मांगकर रावण का किया जाता है वध
मंदसौर जिले के खानपुरा क्षेत्र में रुण्डी नामक पर भी लंका नरेश को समर्पित एक मंदिर है। मान्यता के अनुसार यह वह स्थान है जहां रावण और मंदोदरी का विवाह हुआ था। यही कारण है कि इस जिले का नाम मंदसौर पड़ा जो की मंदोदरी के नाम से लिया गया था। मंदसौर का पुराना नाम दशपुर थे जो की दशानन के नाम पर रखा गया था। मंदिर के भीतर रावण की प्रतिमा स्थापित है जिसके 10 सिर हैं। यहां जब महिलाएं रावण की प्रतिमा के सामने पहुंचती हैं तो घूंघट डाल लेती हैं। मान्यता है कि इस प्रतिमा के पैर में धागा बांधने से बीमारी नहीं होती। मंदिर में विभिन्न देवियों की मूर्तियां भी देखी जा सकती हैं। यहां दशहरा के दिन नामदेव समाज के लोग रावण की पूजा करते हैं। उसके बाद श्री राम और लंका के राजा रावण की सेनाएं निकलती हैं। यहां रावण का वध तो होता है लेकिन उससे पहले लोग रावण के समक्ष खड़े होकर क्षमा-याचना मांगते हैं। वे कहते हैं, ‘आपने सीता का हरण किया था, इसलिए राम की सेना आपका वध करने आई है।’
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रावण भक्तों से उन्हें भस्म न करने की करते है रिक्वेस्ट
इंदौर में वैभव नगर स्थित निराला धाम मंदिर भी एक ऐसा मंदिर है जहां रावण की पूजा की जाती है। हालांकि, यह मंदिर सूची के बाकी दो मंदिरों से थोड़ा अलग है। वो इसलिए क्योंकि इस मंदिर में श्री रामायण के सभी पात्रों की मूर्तियां स्थापित है। यह मंदिर करीब 33 साल पहले किसी अज्ञात ऋषि द्वारा बनाया गया था जिनका मानना था कि रामायण के सभी पात्र हिंदुओं के लिए पूजनीय है। मंदिर में चारों तरफ राम का नाम लिखा हुआ है। यहां भगवान राम और हनुमानजी के साथ रावण, कुंभकरण और मेघनाथ की भी पूजा होती है। मंदिर में रावण के अलावा कुंभकरण, मेघनाथ, सूर्पणखा, मंदोदरी और विभीषण की मूर्तियां भी हैं। मंदिर के दीवारों पर कई सारी बाते लिखी गयी है। जिसमें रावण के मूर्ति के पास लिखा हुआ है कि ‘ हे कलियुग वासियो मुझे भस्म करना छोड़ दो और अपने भीतर के राग, द्वेष, अहंकार को भस्म करो |’