दरअसल कांग्रेस महासचिव और पूर्व सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया दिल्ली के 27, सफदरजंग रोड पर स्थित सरकारी आवास खाली करने जा रहे हैं।
लोकसभा चुनाव हारने के बाद सिंधिया को इस बंगले में रहने की पात्रता नहीं है। 33 साल से यह बंगला सिंधिया परिवार के पास रहा है। अपात्र लोगों को बंगला खाली करने के लिए सरकार छह महीने का समय देती है।
सूत्रों की मानें तो सिंधिया की मंशा सरकारी नोटिस मिलने के पहले ही बंगला छोडऩे की है। घर में सामान की पैकिंग का काम भी शुरू हो गया है।
सूत्रों के मुताबिक, सिंधिया ने लुटियंस जोन के पास एक लग्जरी बंगला किराए पर लिया है। बताया जाता है कि इसका किराया लाखों में है। वे जल्द सरकारी बंगला छोड़कर किराए के घर में शिफ्ट होंगे।
सिंधिया परिवार का पुश्तैनी बंगला भी दिल्ली में है, लेकिन वह मालिकाना हक को लेकर विवादों में घिरा है।
सिंधिया ने भोपाल में भी मांगा था आवासकांग्रेस की सरकार बनने के बाद ज्योतिरादित्य ने मुख्यमंत्री कमलनाथ से पूर्व गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह के चार इमली स्थित सरकारी आवास की मांग की थी। भूपेंद्र सिंह ने इस बंगले को खाली करने के लिए लोकसभा चुनाव तक का वक्त मांगा था, लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं।
माधवराव सिंधिया को हुआ था आवंटित
1986 में राजीव गांधी सरकार में माधवराव सिंधिया को केंद्रीय रेल मंत्री बनाया गया था, तब उन्हें यह बंगला मिला था। 2001 में जब माधवराव का निधन हुआ और ज्योतिरादित्य सांसद बने तो बंगला उनके नाम पर आवंटित हो गया। आज भी इस बंगले में माधवराव सिंधिया की नेमप्लेट लगी है।
इस बंगले में रहने की पात्रता मंत्री या संसदीय दल के नेता या सचेतक की होती है। ज्योतिरादित्य अब लोकसभा चुनाव हार चुके हैं और वे सांसद नहीं रहे, इसलिए नियमानुसार वे इस आवास में रहने के पात्र नहीं हैं।
इधर, कांग्रेस कोर कमेटी की बैठक: ईवीएम पर फोड़ा चुनाव में हार का ठीकरा :
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस कोर कमेटी की बैठक में शनिवार को लोकसभा चुनाव में हुई हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ा गया। सभी नेता एक सुर में बोले कि जो प्रत्याशी 5 हजार से नहीं जीत सकता, वह 5 लाख से ज्यादा मतों से जीता है। ऐसे में हमें ईवीएम की जांच कराना चाहिए।
सांसद विवेक तन्खा को ये जिम्मेदारी सौंपी गई कि वे एआईसीसी से बात कर इस योजना तैयार करें। अजय सिंह और अरुण यादव ने हार का बड़ा कारण ईवीएम को बताया। बैठक में कुछ नेताओं ने भितरघात और चुनाव प्रबंधन की कमजोरी का मुद्दा उठाया।
बैठक में बिजली का मुद्दा उठा तो मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि भाजपा बिजली संकट को लेकर प्रदेश में प्रोपेगंडा कर रही है। अधिकारियों के साथ मिलकर बिजली संकट पैदा किया जा रहा है। सीएम ने इस दौरान स्थानीय चुनाव की रणनीति भी बताई।
उन्होंने कहा, अगले छह माह में नगरीय निकाय, मंडी, सहकारिता और पंचायत के चुनाव हैं। इनमें अभी से जिम्मेदारी दी जा रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा, संगठन में कसावट की जरूरत है।
कांग्रेस को जनता में पैठ बढ़ाना होगी। बाद में सिंधिया ने मीडिया से कहा, बैठक में प्रदेश अध्यक्ष को लेकर चर्चा नहीं हुई। मैं अपने काम पर ध्यान देता हंू। मेरे लिए राजनीति का मतलब लोगों की सेवा करना है।
बैठक में प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया, दिग्विजय सिंह, अजय सिंह, अरुण यादव, कांतिलाल भूरिया समेत एआईसीसी के प्रभारी सचिवों ने भाग लिया।
हार की रिपोर्ट पेश
एआईसीसी सचिव सुधांशु त्रिपाठी और संजय कपूर ने हार के कारणों की रिपोर्ट पेश की। इसमें कहा गया है कि कार्यकर्ताओं ने विधानसभा जैसा काम लोकसभा चुनाव में नहीं किया।
संगठन कमजोर और निष्क्रिय रहा। सरकार और कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय बनाने की जरूरत है। अफसरों के साथ भी कार्यकर्ताओं का सामंजस्य बैठाया जाए।
इस पर प्रदेश प्रभारी बावरिया ने कहा, जिन कार्यकर्ताओं ने सक्रियता के साथ काम किया है, उनकी निगम-मंडल और संगठन में ताजपोशी की जाएगी। निष्क्रिय कार्यकर्ताओं को हटाया जाएगा।