शमी पूजा में शामलि हुए थे ज्योतिरादित्य सिंधिया
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने परंपरा अनुसार, शमी पूजा की। उन्होंने राजघराने की तलवार से शमी के पेड़ को स्पर्श किया। स्पर्श करते ही यहां मौजूद लोगों शमी की पत्तियों को लूटा और महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया से मुलाकात की। दशहरे के अवसर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया राजसी पोशाक में गोरखी स्थिति अपने कुलदेवता की पूजा-अर्चना करने पहुंचे। सिंधिया के साथ उनके बेटे महाआर्यमन सिंधिया भी थे। गोरखी देवघर में सिंधिया ने अपने बेटे के साथ कुलदेवी की पूजा अर्चना की। शाम को वो मांढरे की माता पर पहुंचे। यहां पुलिस बैंड ने परंगारागत अगवानी की इसके साथ विधि विधान के साथ शमी पूजा की गई।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने परंपरा अनुसार, शमी पूजा की। उन्होंने राजघराने की तलवार से शमी के पेड़ को स्पर्श किया। स्पर्श करते ही यहां मौजूद लोगों शमी की पत्तियों को लूटा और महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया से मुलाकात की। दशहरे के अवसर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया राजसी पोशाक में गोरखी स्थिति अपने कुलदेवता की पूजा-अर्चना करने पहुंचे। सिंधिया के साथ उनके बेटे महाआर्यमन सिंधिया भी थे। गोरखी देवघर में सिंधिया ने अपने बेटे के साथ कुलदेवी की पूजा अर्चना की। शाम को वो मांढरे की माता पर पहुंचे। यहां पुलिस बैंड ने परंगारागत अगवानी की इसके साथ विधि विधान के साथ शमी पूजा की गई।
क्यों होती है शमी पूजा
ऐसी मानता है कि दशहरे के दिन दानवीर राजा बलि ने अपनी प्रजा को शमी वृक्ष पर बैठ कर ही स्वर्ण मुद्राओं के रूप में अपना पूरा खजाना लुटा दिया था। इसी प्रतीक के तौर पर सिंधिया राजवंश इस परंपरा का निर्वाह करता आ रहा है।
ऐसी मानता है कि दशहरे के दिन दानवीर राजा बलि ने अपनी प्रजा को शमी वृक्ष पर बैठ कर ही स्वर्ण मुद्राओं के रूप में अपना पूरा खजाना लुटा दिया था। इसी प्रतीक के तौर पर सिंधिया राजवंश इस परंपरा का निर्वाह करता आ रहा है।
क्या है परंपरा
गोरखी परिसर में सिंधिया के कुलदेवता का मंदिर है। इस मंदिर में सिंधिया ने विधि विधान से पूजा की। पूजा के बाद मराठा सरदार उनका आर्शीवाद लेने के लिए बाकायदा शाही परंपरा का अभिवादन मुजरा करते हैं। पूजा के बाद सिंधिया वापस जयविलास पैलेस पहुंचे और दशहरे का दरबार लगाता है। दशहरे के दरबार में मराठा सरदारों के वंशजों को ही जाने की अनुमति है। हालांकि अब कुछ गणमान्य नागरिकों भी इस शाही दरबार में आमंत्रित किया जाता है।
गोरखी परिसर में सिंधिया के कुलदेवता का मंदिर है। इस मंदिर में सिंधिया ने विधि विधान से पूजा की। पूजा के बाद मराठा सरदार उनका आर्शीवाद लेने के लिए बाकायदा शाही परंपरा का अभिवादन मुजरा करते हैं। पूजा के बाद सिंधिया वापस जयविलास पैलेस पहुंचे और दशहरे का दरबार लगाता है। दशहरे के दरबार में मराठा सरदारों के वंशजों को ही जाने की अनुमति है। हालांकि अब कुछ गणमान्य नागरिकों भी इस शाही दरबार में आमंत्रित किया जाता है।
लोगों को दी शुभकामनाएं
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस दौरान ट्वीट कर कहा- हम और आप मिलकर समाज और देश मे फैली कुरीतियों, बुरे विचारों, भ्रष्टाचार और असहिष्णुता रूपी रावण का दहन करने का प्रयास करें, तभी विजयादशमी की सार्थकता होगी। आप सभी को अच्छाई और सच्चाई की विजय के प्रतीक दशहरा पर्व की बहुत बधाई और शुभकामनाएं । ये धार्मिक उत्सव हमे सिखाता है- “सत्य के मार्ग पर, अन्याय के विरुद्ध सदैव अपनी आवाज उठाकर न्याय दिलाने की कोशिश करो।”
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस दौरान ट्वीट कर कहा- हम और आप मिलकर समाज और देश मे फैली कुरीतियों, बुरे विचारों, भ्रष्टाचार और असहिष्णुता रूपी रावण का दहन करने का प्रयास करें, तभी विजयादशमी की सार्थकता होगी। आप सभी को अच्छाई और सच्चाई की विजय के प्रतीक दशहरा पर्व की बहुत बधाई और शुभकामनाएं । ये धार्मिक उत्सव हमे सिखाता है- “सत्य के मार्ग पर, अन्याय के विरुद्ध सदैव अपनी आवाज उठाकर न्याय दिलाने की कोशिश करो।”