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रेस में हैं ये नाम
प्रदेश अध्यक्ष की रेस में कई नाम शामिल हैं। प्रदेश के वन मंत्री उमंग सिंघार, पूर्व मंत्री अजय सिंह, गृहमंत्री बाला बच्चन और ज्योतिरादित्य सिंधिया। हालांकि इन सब नामों के बीच कमल नाथ सरकार के मंत्री सज्जन सिंह वर्मा कह चुके हैं कि कमल नाथ के बाद अगर प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए कोई उपयुक्त चेहरा है तो वो हैं प्रदेश के गृहमंत्री बाला बच्चन। वहीं, सिंधिया समर्थक कई मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम का समर्थन कर चुके हैं, लेकिन माना जा रहा है कि पार्टी का अगला प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ खेमे का होगा।
रेस में हैं ये नाम
प्रदेश अध्यक्ष की रेस में कई नाम शामिल हैं। प्रदेश के वन मंत्री उमंग सिंघार, पूर्व मंत्री अजय सिंह, गृहमंत्री बाला बच्चन और ज्योतिरादित्य सिंधिया। हालांकि इन सब नामों के बीच कमल नाथ सरकार के मंत्री सज्जन सिंह वर्मा कह चुके हैं कि कमल नाथ के बाद अगर प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए कोई उपयुक्त चेहरा है तो वो हैं प्रदेश के गृहमंत्री बाला बच्चन। वहीं, सिंधिया समर्थक कई मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम का समर्थन कर चुके हैं, लेकिन माना जा रहा है कि पार्टी का अगला प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ खेमे का होगा।
आदिवासी कार्ड खेल सकती है कांग्रेस
प्रदेश अध्यक्ष के लिए कमल नाथ और कांग्रेस किसी आदिवासी चेहरे पर दांव लगा सकते हैं। आदिवासी चेहरे पर दांव लगाने की वजह है लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल एक सीट मिली थी उसे 28 सीटों पर हार मिली थी। कांग्रेस को सबसे ज्यादा झटका उन सीटों पर लगा जो प्रदेश की आदिवासी बाहुल्य सीटें मानी जाती हैं। जबकि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को आदिवासी और ओबीसी सीटों में बड़ी जीत मिली थी जिस कारण से कांग्रेस की सरकार बनी।
प्रदेश अध्यक्ष के लिए कमल नाथ और कांग्रेस किसी आदिवासी चेहरे पर दांव लगा सकते हैं। आदिवासी चेहरे पर दांव लगाने की वजह है लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल एक सीट मिली थी उसे 28 सीटों पर हार मिली थी। कांग्रेस को सबसे ज्यादा झटका उन सीटों पर लगा जो प्रदेश की आदिवासी बाहुल्य सीटें मानी जाती हैं। जबकि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को आदिवासी और ओबीसी सीटों में बड़ी जीत मिली थी जिस कारण से कांग्रेस की सरकार बनी।
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मध्यप्रदेश में आदिवासी वर्ग की लगभग 22 फीसदी आबादी है। विधानसभा के 47 क्षेत्र इस वर्ग के लिए आरक्षित हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 47 में से 30 सीटों में जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के 114 विधायकों में 25 फीसदी से ज्यादा इस वर्ग के हैं। विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस को आदिवासी इलाकों में सफलता मिली, वहीं लोकसभा चुनाव में उसे इस वर्ग की एक भी सीट हासिल नहीं हो पाई।
मध्यप्रदेश में आदिवासी वर्ग की लगभग 22 फीसदी आबादी है। विधानसभा के 47 क्षेत्र इस वर्ग के लिए आरक्षित हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 47 में से 30 सीटों में जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के 114 विधायकों में 25 फीसदी से ज्यादा इस वर्ग के हैं। विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस को आदिवासी इलाकों में सफलता मिली, वहीं लोकसभा चुनाव में उसे इस वर्ग की एक भी सीट हासिल नहीं हो पाई।
बाला बच्चन रेस में क्यों आगे
मध्य प्रदेश में कांग्रेस डेढ़ दशक बाद सत्ता में लौटी है और कांग्रेस की इस सफलता में आदिवासी वर्ग की बड़ी भूमिका रही है, मगर पार्टी के पास एक भी ऐसा आदिवासी चेहरा नहीं है, जिसकी पहचान पूरे प्रदेश में हो और उसके सहारे वह अपनी राजनीतिक जमीन को तैयार कर सके। मध्यप्रदेश का गृहमंत्री बनने के बाद बाला बच्चन की प्रदेश स्तर पर छवि बनी है। बाला बच्चन कमलनाथ के करीबी हैं और कमल नाथ खेमे के सबसे विश्वस्त चेहरों में एक हैं ऐसे में कमलनाथ बाला बच्चन को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की सिफारिश कर सकते हैं। वहीं, उमंग सिंघार प्रदेश के दूसरे बड़े आदिवासी नेता हैं लेकिन उमंग सिंघार कमल नाथ खेमे के नहीं माने जाते हैं ऐसे में कमल नाथ चाहेंगे की बाला बच्चन प्रदेश अध्यक्ष बनें जिससे सत्ता और संगठन के बीच समन्वय बना रहे।
सिंधिया को रोकने की कोशिश
प्रदेश अध्यक्ष के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम भी चल रहा है। कमलनाथ सरकार के मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर, इमरती देवी, गोविंद सिंह राजपूत समेत कई मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम का समर्थन कर चुके हैं। हालांकि जिन मंत्रियों ने सिंधिया के नाम का समर्थन किया है वो सभी सिंधिया खेमे के माने जाते हैं। मध्यप्रदेश कांग्रेस में खेमेबाजी भी कांग्रेस की एक बड़ी मुश्किल है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस अध्यक्ष बनते हैं तो प्रदेश में सत्ता और संगठन के बीच आपसी खींचतान भी शुरू हो जाएगी। जानकारों का कहना है कि कांग्रेस की परंपरा के अनुसार, प्रदेश अध्यक्ष का पावर कांग्रेस में सीएम से भी बड़ा हो जाता है। जब पहली बार जब पहली बार ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम प्रदेश अध्यक्ष के लिए उठा था तब कमलनाथ सरकार के कई मंत्रियों ने उनके नाम का विरोध भी किया था।