जन्माष्टमी के अवसर पर patrika.com बता रहा है वो रोचक कथा जिसका उल्लेख शास्त्रों में मिलता है।
भगवान श्रीकृष्ण पर एक बार स्यामंतक मणि की चोरी का झूठा कलंक लग गया था, जिसे मिटाने के लिए वे विंध्यांचल पर्वत श्रंखला में स्थित जामवंत गुफा में आए थे और जामवंत के साथ 27 दिनों तक युद्ध किया था। यह उल्लेख धार्मिक ग्रंथ प्रेम सागर में भी मिलता है। भोपाल से जबलपुर मार्ग पर बरेली कस्बा है। यह कस्बा वर्तमान में रायसेन जिले में आता है। यहा से 15 किलोमीटर दूर विंध्यांचल पर्वत शृंखला के पहाड़ों में यह गुफा है। यह गुफाएं कई किलोमीटर दूर तक अंदर ही अंदर फैली हुई है। वर्तमान में कुछ लोग यहां जाते हैं, लेकिन भूल-भुलैया जैसी गुफाएं होने के कारण कुछ हिस्सों में ही पहुंच पाते हैं।
पुरातत्वविद भी देते हैं संकेत
यह गुफा वर्तमान में रायसेन जिले में है। गुफा के इतिहास और किंवदंतियों की सच्चाई जानने के लिए कई पुरातत्वविद भी इस क्षेत्र का अध्ययन कर चुके हैं। जामवंत गुफा अब धीरे-धीरे संकरी होती जा रही है। इसके आगे कई और छोटी गुफाएं भी हैं। अंतिम छोर पर कुदरती तौर पर बनी शिवगुफा है। भागवत महापुराण में भी इस गुफा का उल्लेख मिलता है। यहां 27 दिनों तक श्रीकृष्ण ने जामवंत के साथ युद्ध किया था। इसके बाद जामवंत ने अपनी पुत्री जामवंती का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया था। साथ ही स्यामंतक मणि को उपहार के रूप में कृष्ण को दे दिया था।
यह है प्रचलित कथा
सत्राजीत ने भगवान सूर्य की उपासना की थी। इसके बाद उन्हें भगवान ने स्यामंतक मणि दिया था। यह मणि सूर्य के समान चमकदार था। इसकी रोशनी दूर-दूर तक जाती थी। उस समय भगवान कृष्ण चौसर खेल रहे थे, तभी सत्राजीत व मणि लेकर आ या। इस दौरान सूर्य के समान चमकने वाे सत्राजीत को देख कृष्ण के साथ मौजूद यादवनों ने कहा था कि अरे सत्राजीत, तुम्हारे पास अलौकिक दिव्य मणि है। वो तो किसी राजा के पास ही होना चाहिए था। इस पर वे तत्काल वहां से चले गए। इसके बाद सत्राजीत ने मणि को घर के मंदिर में रख दिया था। एक दिन सत्राजीत का भाई प्रसेनजीत उस मणि को पहनकर घोड़े पर सवार होकर शिकार पर चले गया। घने जंगल में प्रसेनजीत और उसके घोड़े को एक सिंह ने मार डाला और उसका मणि छीन लिया। उस सिंह को ऋक्षराज जामवंत ने मार डाला।
जामवंत ने उस मणि को हासिल कर लिया और वह अपने बालक को खेलने के लिए दे दिया। जब प्रसेनजीत वापस नहीं आए तो सत्राजीत समझे कि मेरे भाई को श्रीकृष्ण ने माकर वो मणि छीन लिया है। चोरी का यह संदेह पूरी द्वारिका में फैला दिया गया। जब यह खबर श्रीकृष्ण को मिली तो वे व्यथीत हो गए। उन्होंने चोरी का इल्जाम मिटाने के लिए मणि की खोज की। वे मणि की खोज में निकल पड़े थे। वे रीछ के पैरों के निशान देखते हुए एक गुफा तक पहुंचे। जहां पर रीछ का एक बालक चमकते-दमकते मणि के साथ खेल रहा है। श्रीकृष्ण ने उस मणि को उठा लिया। यह देख जामवंत क्रोधित हो गए और श्रीकृष्ण के साथ युद्ध करने लगे। माना जाता है कि यह युद्ध 27 दिनों तक लगातार चलता रहा। युद्ध में जब जामवंत हार गए तो पता चला कि यह तो प्रभु श्रीकृष्ण हैं और श्रीराम के ही अवतार हैं, तब युद्ध रुक गया था। जामवंत ने अपनी हार स्वीकार कर ली। इसके बाद अपनी पुत्री जामवंती का विवाद श्रीकृष्ण के साथ कर दिया। इसी विवाह में जामवंत ने यह मणि श्रीकृष्ण को सौंप दी थी।
महाभारत काल में भी जामवंत
भगवान ने अपने ऊपर लगा कलंक मिटा दिया और जामवंत को भगवान के इस युग में भी दर्शन हो गए थे। श्रीकृष्ण द्वारका लौटे तब राजा सत्राजीत को वो मणि लौटा दी। इसके बाद उन्हें काफी पश्चाताप हुआ। महाबली जामवंत त्रेता युग के रामायण काल में भी थे और द्वापर युग के महाभारत काल में भी थे। त्रेतायुग में वे विष्णु अवतार श्रीराम के प्रमुख सहायकों में एक थे, वहीं महाभारतकाल में उन्होंने विष्णु अवतार श्रीकृष्ण से युद्ध लड़ा था।