सच्चा सुख पाने का ऐसा अवसर प्रत्येक जीव को मिला है
जैन आचार्य ने कहा कि हमारा सुख जहां से लुप्त हो गया है, हमें वहीं उसकी खोज करनी होगी। जहां सुई गिर गई हो और हम उस जगह को छोड़कर अन्य जगह तलाश करें तो दूसरी जगह तब क्या वह मिलेगी। इसी तरह जो सच्चे सुख सुविधाओं में तलाशते रहे, वह कभी मिलने वाला नहीं है। अंतर चक्षु से जब आप अपने को देखेंगे, तब भीतर की यात्रा प्रारंभ हो पाएगी। अनन्त सुख का भण्डार फिर स्वत: ही अनुभव में आ जाएगा। फिर संसारी इच्छाएं नहीं रह पाएंगी। उन्होंने कहा कि सच्चा सुख पाने का ऐसा अवसर प्रत्येक जीव को मिला है।
जैन आचार्य ने कहा कि हमारा सुख जहां से लुप्त हो गया है, हमें वहीं उसकी खोज करनी होगी। जहां सुई गिर गई हो और हम उस जगह को छोड़कर अन्य जगह तलाश करें तो दूसरी जगह तब क्या वह मिलेगी। इसी तरह जो सच्चे सुख सुविधाओं में तलाशते रहे, वह कभी मिलने वाला नहीं है। अंतर चक्षु से जब आप अपने को देखेंगे, तब भीतर की यात्रा प्रारंभ हो पाएगी। अनन्त सुख का भण्डार फिर स्वत: ही अनुभव में आ जाएगा। फिर संसारी इच्छाएं नहीं रह पाएंगी। उन्होंने कहा कि सच्चा सुख पाने का ऐसा अवसर प्रत्येक जीव को मिला है।
बाहर शांति मत खोजो, शांति निज में है : मुनि शैल सागर
चौक जैन धर्मशाला में चल रहे चातुर्मास प्रवचन में मुनि शैल सागर महाराज ने कहा कि अनादिकाल से जो हमने भूलें की हैं, उनके सुधार के लिए पुरूषार्थ करो। बाह्य में शांति की खोज नहीं करना, शांति निज में ही भरी हुई है। शीतलता प्राप्त करने के लिए कितने ही नदी सरवरों के तट पर गये हो, परन्तु आत्मसंतोष एवं आत्मिक शीतलता प्राप्त करने के लिए कभी भी आत्म तट पर नहीं बैठे। अपनी परेशानियों का कब तक दु:खड़ा रोते रहोगे, अपनी समस्याओं के लिए कब तक दूसरों को दोष देते रहोगे। दूसरों को दोष देना बंद कर सावधानीपूर्वक निज के दोषों को खोज कर निज कलंक होने का पुरूषार्थ करो। निज की शांति में स्थापित होने का पुरूषार्थ करो। इस मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।
चौक जैन धर्मशाला में चल रहे चातुर्मास प्रवचन में मुनि शैल सागर महाराज ने कहा कि अनादिकाल से जो हमने भूलें की हैं, उनके सुधार के लिए पुरूषार्थ करो। बाह्य में शांति की खोज नहीं करना, शांति निज में ही भरी हुई है। शीतलता प्राप्त करने के लिए कितने ही नदी सरवरों के तट पर गये हो, परन्तु आत्मसंतोष एवं आत्मिक शीतलता प्राप्त करने के लिए कभी भी आत्म तट पर नहीं बैठे। अपनी परेशानियों का कब तक दु:खड़ा रोते रहोगे, अपनी समस्याओं के लिए कब तक दूसरों को दोष देते रहोगे। दूसरों को दोष देना बंद कर सावधानीपूर्वक निज के दोषों को खोज कर निज कलंक होने का पुरूषार्थ करो। निज की शांति में स्थापित होने का पुरूषार्थ करो। इस मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।
सम्यक दर्शन के बिना ज्ञान की वृद्धि नहीं होती है: मुनि पुराण सागर
शंकराचार्य नगर जिनालय में आयोजित चातुर्मास प्रवचन में मुनि पुराण सागर ने सम्यक दर्शन का महत्व बताते हुए कहा कि सम्यक दर्शन के अभाव में ज्ञान की उत्पत्ति नहीं होती है।सम्यक दर्शन बीज रूप है। जैसे एक फ ल के लिए बीज को खेत में बोना पड़ता है, तब पेड़ की उत्पत्ति होती है फि र फ ल लगता है। सम्यक ज्ञान होता है इसके बाद सम्यक चारित्र धारण करना पड़ता है ।सम्यक चरित्र के अभाव में ज्ञान की उत्पत्ति नहीं होती है ना ही ज्ञान की वृद्धि होती है ना फ ल की प्राप्ति होती है इसलिए सम्यक दर्शन धारण करने से ज्ञान की वृद्धि होती है।
शंकराचार्य नगर जिनालय में आयोजित चातुर्मास प्रवचन में मुनि पुराण सागर ने सम्यक दर्शन का महत्व बताते हुए कहा कि सम्यक दर्शन के अभाव में ज्ञान की उत्पत्ति नहीं होती है।सम्यक दर्शन बीज रूप है। जैसे एक फ ल के लिए बीज को खेत में बोना पड़ता है, तब पेड़ की उत्पत्ति होती है फि र फ ल लगता है। सम्यक ज्ञान होता है इसके बाद सम्यक चारित्र धारण करना पड़ता है ।सम्यक चरित्र के अभाव में ज्ञान की उत्पत्ति नहीं होती है ना ही ज्ञान की वृद्धि होती है ना फ ल की प्राप्ति होती है इसलिए सम्यक दर्शन धारण करने से ज्ञान की वृद्धि होती है।