भोपाल

बेटे की मौत के बाद डोनेट कर दी किडनी, अब 6 महीने बाद सदानंद को देख लगा- ‘बेटा ही मेरे सामने खड़ा है’

इंडियन ऑर्गन डोनेशन-डे आज: जागरुकता कार्यक्रम में मिले डोनर और रिसीवर के परिवार, भोपाल में डोनर के पिता बोले-

भोपालNov 27, 2022 / 02:03 pm

Astha Awasthi

भोपाल। इनमें मुझे मेरा बेटा नजर आता है, क्योंकि मेरे बच्चे के अंग से इनका जीवन रोशन हो रहा है। जब भी हम इनसे मिलते हैं, आंखें नम हो जाती हैं। आंसुओं को छिपाने की कोशिश करते हैं… लेकिन छिपा नहीं पाते। ये बातें शशांक के माता-पिता ने रविवार को होने वाले इंडियन ऑर्गन डोनेशन डे की पूर्व संध्या पर हुए कार्यक्रम में कहीं। वे किरण फाउंडेशन के डोनर व रिसीवर संवाद कार्यक्रम में शामिल हुए थे। अंगदान के प्रति जागरूक करने के लिए इस आयोजन में अपनी बात रखी।

कोलार निवासी बैंक अधिकारी राजेश कोराने व उनकी पत्नी भावुक हो गईं। उन्होंने कहा- बेटे शशांक की मौत के बाद उसके अंग अलग-अलग लोगों को डोनेट किए। किडनी भोपाल के ही सदानंद को दी गई। ट्रांसप्लांट के 6 माह बाद राजेश व उनकी पत्नी सदानंद से मिलने गए। राजेश ने बताया, उसे देखते ही हम भावुक हो गए। आंखों में आंसू के साथ मन में कई सवाल थे। हमें ऐसा लग रहा था कि हम शशांक से ही मिल रहे हों। राजेश और सदानंद जैसे कई डोनर और रिसीवर के परिवार कार्यक्रम में थे।

सदानंद बोले-शशांक के माता-पिता मेरे भी

सदानंद का कहना है, शशांक की किडनी से उन्हें दोबारा जीवन मिला। उन्होंने कहा, जब वह पहली बार राजेश व उनकी पत्नी से मिले थे। तब आंखों में आंसू आ गए थे। उनके बेटे के अंग से ही मुझे नया जीवन मिला है। मुझे उनमें मेरे माता पिता नजर आते हैं। सदानंद 2012 से किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे। कई साल कोशिश करने के बाद तुर्की जाकर ट्रांसप्लांट कराने का फैसला किया। तब ही अचानक उन्हें निजी अस्पताल से ट्रांसप्लांट का कॉल आया। पहले पता नहीं था कि मुझे किसकी किडनी मिली है। लेकिन जब शशांक के बारे में पता चला, तब से उनके माता पिता से मिलना चाहता था।

पहली बार मिले तो निकला बेटे का नाम

राजेश कोराने ने बताया कि पहली बार सदानंद से मिले तो पत्नी के मुंह से शशांक नाम ही निकला था। हम सदानंद में अपने शशांक को महसूस कर रहे थे। इस बात को 6 साल हो चुके हैं। मगर आज भी पहले दिन जैसा महसूस होता है। दोनों परिवार एक हैं। त्योहार व अन्य आयोजनों में साथ होते हैं।

ओमी पंजवानी अब बैडमिंटन खेलते हैं

ओमी पंजवानी बताते हैं, वे 2010 से डायलिसिस पर थे। डॉक्टरों ने किडनी ट्रांसप्लांट कराने कहा। 7 साल डायलिसिस पर रहने के बाद 11 दिसंबर 2017 में ट्रांसप्लांट हुआ। इसने मुझे नया जीवन दिया। अब वे रोज बैडमिंटन भी खेलते हैं। उन्हें किडनी देने वाले डोनर के परिजन भी मौके पर मौजूद थे।

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