शिव शर्मा मूलत: मुंबई के रहने वाले थे और ख्यात आयुर्वेद विशेषज्ञ थे। अपने नाड़ी ज्ञान के कारण वे वर्षों राष्ट्रपति के चिकित्सा दल में शामिल रहे। उस समय मुंबई के कांग्रेस नेता रामसहाय पांडे का विदिशा की राजनीति में बड़ा दबदबा था। वे 1962 में यहां से सांसद बने थे। इसके बाद भारतीय जनसंघ पार्टी अपने जनाधार को बचाने के लिए उनकी काट के लिए मुंबई से शिव शर्मा को विदिशा ले आई।
1967 के चुनाव में शर्मा ने रामसहाय को बड़े अंतर से हरा दिया। उनका प्रचार भी आयुर्वेद विशेषज्ञ के रूप में किया गया था। शर्मा के सांसद बन जाने के बाद लोग उनके पास समस्या नहीं, बल्कि बीमारी लेकर आते थे।
राजमाता सिंधिया ने बनवाया उम्मीदवार…
वैद्य शिव शर्मा के विदिशा से चुनाव लडऩे का किस्सा भी रोचक है। तब के जनसंघ के नेता और पूर्व वित्तमंत्री राघवजी बताते हैं कि 1962 के चुनाव में इस सीट से जनसंघ ने नाथूराम मंत्री को उतारा था, जिनकी जमानत जब्त हो गई थी। इससे चिंतित संघ ने 1967 के चुनाव में राजमाता विजयाराजे सिंधिया से हाथ मिला लिया। राजमाता ने शर्मा से संपर्क कर विदिशा से जुडऩे के लिए मना लिया। उनके लिए जनसंघ और राजमाता ने धुआंधार प्रचार किया।
जहां रुकते वहीं बना लेते अस्पताल…
शर्मा मुंबई से हर तीसरे महीने विदिशा लोकसभा क्षेत्र के दौरे पर आते थे। उस दौरान वे राघवजी या फिर राजमल जालौरी के घर पर रुकते थे। यहीं पर वे पूरा अस्पताल जमा लेते थे। राजनीतिक चर्चा और अन्य कार्यों से ज्यादा वक्त मरीजों की नब्ज टटोलने में ही लगता था। उनके आने की खबर मिलते ही दूरदराज के भी मरीज बैलगाडिय़ों से विदिशा पहुंचते थे और घंटों लाइन में लगकर बीमारी बताते थे। शर्मा भी पूरी तन्मयता से मरीजों को देखते थे।
मुंबई से आया था काफिला…
शिव शर्मा के साथ मुंबई से वाहनों का काफिला आया था। साधनों के बढ़ जाने और एक बड़े वैद्य के प्रचार से जनसंघ को बड़ी मदद मिली। रामसहाय जिनके पास कांग्रेस सरकार की ताकत थी फिर भी पराजित हो गए।