इस मामले का कोर्ट तक पहुंचने का कारण यह रहा कि कॉम्प्लेक्स को नेशनल हाइवे की 60 मीटर रोड छोडऩे के बाद करीब 4.5 मीटर ऑफ स्ट्रीट पार्किंग और 4.5 मीटर खुला क्षेत्र छोडऩे के बाद निर्माण करना था, लेकिन ऑफ स्ट्रीट पार्किंग और ओपन स्पेस के करीब नौ मीटर क्षेत्र में भी निर्माण कर लिया गया।
यहां कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एमपीआरटीसी से मिलने वाली साढ़े सात करोड़ रुपए से निगम नई पार्किंग विकसित करे। यदि राशि नहीं मिलती और कॉम्प्लेक्स का करीब 15 फीट हिस्सा टूटता है तो यहां पर पार्किंग बन जाएगी।
– 800 वर्गमीटर की पार्किंग मानसरोवर के पास विकसित हो चुकी है
– बीआरटीएस कॉरिडोर को नो-पार्किंग जोन घोषित किया जाएगा
– भवन अनुज्ञा रद्द कर दी गई है
– एमपी नगर की मल्टीलेवल पार्किंग पूरी हो चुकी है
– 1360.48 वर्गमीटर क्षेत्र खुला है – 509.09 वर्गमीटर क्षेत्र डक्ट और कटआउट्स में है
– 75.68 प्रतिशत ग्राउंड कवरेज है – 1869.57 वर्गमीटर निर्माण है दूसरी और तीसरी मंजिल पर
– 1005.43 वर्गमीटर का क्षेत्र अतिरिक्त निर्माण कर लिया गया
– 3.84 करोड़ रुपए की कीमत है कलेक्टर गाइडलाइन से इसकी – 4.5 मीटर चौड़ी स्ट्रीट का अतिरिक्त निर्माण कंपाउंडेबल नहीं है
– निर्माण में भवन अनुज्ञा का उल्लंघन हुआ है
मानसरोवर मामले को कोर्ट ले जाने वाले सतीश नायक इस निर्णय
से संतुष्ट नहीं है। उनका कहना है कि इसमें बिल्डर को कुछ नहीं
कहा गया। हबीबगंज रेलवे कॉलोनी की दीवार से नपती कर 60 मीटर
रोड का हिस्सा तय करते तो मानसरोवर का आधा भाग आता, लेकिन
सहीं नपती नहीं की। वे इस मामले में रिव्यू याचिका लगाने की बात कह रहे हैं।