मध्यप्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य है जहां एक नवंबर से खेतों में आग लगाने की घटनाओं की मॉनीटरिंग की जा रही है। भारत सरकार की सैटेलाइट सेवा से यह काम किया जा रहा है. कृषि अभियात्रिकी विभाग द्वारा कलेक्टरों को रियल टाइम डाटा मुहैया कराया जा रहा है, ताकि पराली में आग लगाने की घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सके।
पराली जलाने पर कड़ी कार्रवाई की बात कही गई है हालांकि ऐसे मामलों में जुर्माना समेत अन्य कार्रवाई को लेकर फिलहाल स्थिति स्पष्ट नहीं है। खेती—किसानी के विशेषज्ञों के मुताबिक धान, ज्वार समेत मक्का आदि फसलों का रकबा बढऩे से इस साल खरीफ सीजन में पराली जलाने के मामले ज्यादा सामने आए हैं। इसकी वजह इन फसलों के अवशेषों का रोटावेटर या अन्य कृषि उपकरणों से खत्म नहीं होना है।
बहरहाल इस पूरी प्रक्रिया में खर्च भी अधिक आता है। इससे बचने के लिए किसान खेतों में आग लगाते हैं। खेतों में बचे कृषि अवशेषों को जलाने से मिट्टी के पोषक तत्वों को खासा नुकसान होता है। इसके अलावा मिट्टी की उवर्रकता को बनाए रखने में सहयोगी सूक्ष्म जीवों की कमी होती है। इससे जमीन के बंजर होने का खतरा बना रहता है। पराली जलाने से इससे होने वाले धुएं से वायु प्रदूषण बढ़ता है।
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इस संबंध में कृषि अभियांत्रिकी विभाग के संचालक राजीव चौधरी बताते हैं कि सेटेलाइट मॉनीटरिेंग के जरिये मिलने वाले रियल टाइम आंकड़े और लोकेशन को रोजाना सभी कलेक्टरों को भेजा जा रहा है। सेटेलाइट इमेज से गांवों और वहां के खेतों के साथ ही वहां लगी आग के समय की सटीक जानकारी मिलती है।