शुरुआती लक्षण में ही पशु चिकित्सालय को सूचना देने के लिए निर्देश दिए है। राज्य पशु रोग अन्वेषण प्रयोगशाला में कंट्रोल रूम स्थापित किया गया है। रोग के लक्षण पाए जाने पर बायो सिक्योरिटी, बायो सेफ्टी वेक्टर कंट्रोल के उपाय अपनाने के निर्देश दिए गए हैं। पशुपालकों को सुरक्षा और बचाव के लिए जागरूक करने की कवायद भी शुरू कर दी गई है।
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इस तरह फैल रहा है लंपी वायरस
इससे पहले स्वास्थ विभाग की ओर से जारी गाइडलाइन में बताया गया कि, लंपी वायरस स्किन डिसीज पशुओं की एक वायरल बीमारी है, जो पॉक्स वायरस द्वारा पशुओं में फैलती है। ये बीमारी मच्छर काटने वाली मक्खी और टिक्स आदि से एक पशु से अन्य पशुओं में फैलती है। इस रोग के शुरुआत में हल्का बुखार दो से तीन दिन के लिए रहता है, उसके बाद पूरे शरीर के चमड़ी में गठानें (2-3 सेमी) निकल आती हैं।
ये हैं लंपी वायरस के लक्षण
पशुओं के शरीर पर ये गोल गठान के रूप में उभर जाती है, जो चमड़ी के साथ-साथ मसल्स की गहराई तक पहुंच जाती है। इस बीमारी के लक्षण मुंह, गले, श्वास नली तक फैल जाती है। साथ ही लिंफ नोड में सूजन पैरों में सूजन, दुग्ध उत्पादकता में कमी, गर्भपात, बांझपन और कभी-कभी मृत्यु का भी कारण बन जाती है।
2-3 सप्ताह में ठीक हो जाते हैं पशु
लंपी वायरस से ज्यादातर संक्रमित पशु 2-3 हफ्तों में ठीक हो जाते हैं। लेकिन, दुग्ध उत्पादकता में कमी कई हफ्तों तक बन जाती है। हालांकि, इस संक्रमण से पशुओं की मृत्यु दर 15 फीसदी है, लेकिन संक्रमणता की दर 10-20 फीसदी रहती है।
इन बातों का रखें ध्यान
अगर किसी पशु में लंपी वायरस के लक्षण आ रहे हैं तो तत्काल ही उसे अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग कर दें। साथ ही, पशु चिकित्सकों से परामर्श लेकर उसका उपचार शुरु करें। अगर संक्रमित पशुओं को बुखार है तो उसे पैरासिटामॉल खिलाएं। वहीं, सेकेंडरी बैक्टीरियल इंफेक्शन रोकने के लिए पशु को चिकित्सक से परामर्श लेकर 5-7 दिनों तक घावों पर एंटीबायोटिक और एंटी हिस्टामिनिक लगावाएं। लंपी वायरस से संक्रमित पशु को पर्याप्त मात्रा में तरल खाना दें।
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