भोपाल. देशभर में आज फ्रेंडशिप डे ( friendship day ) मनाया जा रहा है। इस मौके पर हम आपको सियासत की एक ऐसी दोस्ती का किस्सा बता रहे हैं जहां दो नेता आपसे में एक दूसरे के पक्के और सच्चे मित्र थे लेकिन उनकी मां आपसे में एक दूसरे की कट्टर राजनीतिक दुश्मन। ये दोस्ती है सिंधिया और गांधी परिवार की। पूर्व पीएम राजीव गांधी ( Rajiv Gandhi ) और केन्द्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया ( Madhavrao Scindia ) गहरे दोस्त थे तो वहीं, राजीव के बेटे राहुल गांधी ( Rahul Gandhi ) और माधवराव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ( Jyotiraditya Scindia ) भी आपसे में गहरे दोस्त थे। लेकिन माधवराव की मां विजयराजे सिंधिया और राजीव गांधी की मां इंदिरा गांधी के बीच राजनीतिक दुश्मनी थी।
इसे भी पढ़ें- कैलाश विजयवर्गीय का बड़ा बयान- ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते हैं तो ये गौरव की बात दोनों की मां के बीच थी दुश्मनी
माधव राव सिंधिया और भूतपूर्व पीएम राजीव गांधी गहरे दोस्त थे। इससे पहले उनकी दादी भूतपूर्व पीएम इंदिरा गांधी और माधव राव सिंधिया की मां विजया राजे सिंधिया में भी गहरी दोस्ती थी लेकिन बाद में चलकर इन दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा बन गया था। दोनों नेताओं के बीच दुश्मनी इस कदर हावी हो गई थी कि विजयाराजे सिंधिया इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए मध्यप्रदेश छोड़कर रायबरेली चली गईं थी। हालांकि इस चुनाव में विजयाराजे सिंधिया की हार हुई थी।
माधव राव सिंधिया और भूतपूर्व पीएम राजीव गांधी गहरे दोस्त थे। इससे पहले उनकी दादी भूतपूर्व पीएम इंदिरा गांधी और माधव राव सिंधिया की मां विजया राजे सिंधिया में भी गहरी दोस्ती थी लेकिन बाद में चलकर इन दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा बन गया था। दोनों नेताओं के बीच दुश्मनी इस कदर हावी हो गई थी कि विजयाराजे सिंधिया इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए मध्यप्रदेश छोड़कर रायबरेली चली गईं थी। हालांकि इस चुनाव में विजयाराजे सिंधिया की हार हुई थी।
नेहरू के कहने के पर सियासत में आईं थी विजयाराजे सिंधिया
आजादी के बाद जीवाजीराव ने रियासत को खुद ही भारत में मिला लिया था क्योंकि रियासतों के गणतंत्र में विलय से बचने का यही तरीका था। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1957 में जीवाजी से मिलने के बाद उन्हें कांग्रेस में शामिल होने का न्यौता दिया, लेकिन जीवाजी राव इसके लिए राजी नहीं हुए। उनका झुकाव हिंदू महासभा की ओर था। लेकिन कांग्रेस ने महारानी को ही कांग्रेस के टिकट पर खड़ा होना की सिफारिश की और रानी मान गईं।
आजादी के बाद जीवाजीराव ने रियासत को खुद ही भारत में मिला लिया था क्योंकि रियासतों के गणतंत्र में विलय से बचने का यही तरीका था। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1957 में जीवाजी से मिलने के बाद उन्हें कांग्रेस में शामिल होने का न्यौता दिया, लेकिन जीवाजी राव इसके लिए राजी नहीं हुए। उनका झुकाव हिंदू महासभा की ओर था। लेकिन कांग्रेस ने महारानी को ही कांग्रेस के टिकट पर खड़ा होना की सिफारिश की और रानी मान गईं।
इसे भी पढ़ें- एक किस्सा लोकसभा का: हिन्दू महासभा से विचलित थे नेहरू, इस सीट से शुरू हुआ था नया अध्याय
कांग्रेस से बनाई दूरी
डीपी मिश्रा जब मध्यप्रदेश के सीएम थे तो उनके कार्यकाल में ग्वालियर में छात्र आंदोलन हुआ। मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा आंदोलन को खत्म करने में जुटे थे, लेकिन महारानी उसे खत्म करने के खिलाफ थीं। जिसके बाद डीपी मिश्रा की महारानी से तनातनी थी। उसके बाद उन्होंने कांग्रेस से दूरी बनानी शुरू की और फिर कांग्रेस छोड़ दिया।
कांग्रेस से बनाई दूरी
डीपी मिश्रा जब मध्यप्रदेश के सीएम थे तो उनके कार्यकाल में ग्वालियर में छात्र आंदोलन हुआ। मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा आंदोलन को खत्म करने में जुटे थे, लेकिन महारानी उसे खत्म करने के खिलाफ थीं। जिसके बाद डीपी मिश्रा की महारानी से तनातनी थी। उसके बाद उन्होंने कांग्रेस से दूरी बनानी शुरू की और फिर कांग्रेस छोड़ दिया।
इंदिरा ने बंद किया था प्रिवी पर्स, इस कारण बड़ा था विरोध
आजादी के पहले हिंदुस्तान में लगभग 500 से ऊपर छोटी बड़ी रियासतें थीं। इन रियासतों के रक्षा और विदेश मामले ब्रिटिश सरकार देखती थी इन रियासतों में पड़ने वाला कुल इलाका भारतीय उपमहाद्वीप के क्षेत्रफ़ल का तिहाई था। जिस रियासत की जिसकी जितनी हैसियत, उसको उतना भत्ता ब्रिटिश सरकार देती थी। आजाद भारत में भी ये भत्ता मिल रहा था जिसके बाद इंदिरा ने इसे बंद कर दिया था। इसक बाद विजयाराजे सिंधिया और इंदिरा में दुश्मनी बढ़ गई थी।
आजादी के पहले हिंदुस्तान में लगभग 500 से ऊपर छोटी बड़ी रियासतें थीं। इन रियासतों के रक्षा और विदेश मामले ब्रिटिश सरकार देखती थी इन रियासतों में पड़ने वाला कुल इलाका भारतीय उपमहाद्वीप के क्षेत्रफ़ल का तिहाई था। जिस रियासत की जिसकी जितनी हैसियत, उसको उतना भत्ता ब्रिटिश सरकार देती थी। आजाद भारत में भी ये भत्ता मिल रहा था जिसके बाद इंदिरा ने इसे बंद कर दिया था। इसक बाद विजयाराजे सिंधिया और इंदिरा में दुश्मनी बढ़ गई थी।
इसे भी पढ़ें- एक किस्सा लोकसभा का: जानते हुए भी हार गए थे अटल, कहा था- मेरी एक हार में इतिहास छुपा है माधवराव ने ज्वाइन की थी कांग्रेस
1967 का चुनाव राजमाता ने स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार के रूप में गुना-शिवपुरी से लड़ा और जीत दर्ज की। लेकिन 1971 के चुनाव में राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने अपने बेटे माधवराव सिंधिया को जनसंघ के टिकट पर गुना से चुनाव लड़ाया। माधवराव सिंधिया जीत कर पहली बार संसद पहुंचे। कहा- जाता है माधवराव सिंधिया को हिन्दुत्व की राजनीति रास नहीं आई और 1977 का चुनाव निर्दलीय लड़ा। माधवराव सिंधिया का कांग्रेस ने समर्थन किया और वहां से अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारा। माधवराव सिंधिया के इस फैसले के बाद से राजमाता और माधव राव सिंधिया के बीच दूरी बढ़ने लगी थी। इंदिरा गांधी ने 1980 के लोकसभा चुनाव में माधवराव सिंधिया को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया।
1967 का चुनाव राजमाता ने स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार के रूप में गुना-शिवपुरी से लड़ा और जीत दर्ज की। लेकिन 1971 के चुनाव में राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने अपने बेटे माधवराव सिंधिया को जनसंघ के टिकट पर गुना से चुनाव लड़ाया। माधवराव सिंधिया जीत कर पहली बार संसद पहुंचे। कहा- जाता है माधवराव सिंधिया को हिन्दुत्व की राजनीति रास नहीं आई और 1977 का चुनाव निर्दलीय लड़ा। माधवराव सिंधिया का कांग्रेस ने समर्थन किया और वहां से अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारा। माधवराव सिंधिया के इस फैसले के बाद से राजमाता और माधव राव सिंधिया के बीच दूरी बढ़ने लगी थी। इंदिरा गांधी ने 1980 के लोकसभा चुनाव में माधवराव सिंधिया को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया।
राजीव से थी दोस्ती
माधव राव सिंधिया के कांग्रेस ज्वाइन करने की वजह राजीव गांधी से दोस्ती बताई जाती है। सियासत में साथ आने के बाद ये दोनों नेता एक दूसरे के सच्चे दोस्त बन गए थे। सियासत में आज भी इन नेताओं की दोस्ती के किस्से बयां किए जाते हैं। 986 में राजीव गांधी कैबिनेट में माधवराव सिंधिया रेल मंत्री थे। हालांकि माधवराव सिंधिया और राजीव गांधी दोनों ही नेताओं का निधन हो चुका है।
माधव राव सिंधिया के कांग्रेस ज्वाइन करने की वजह राजीव गांधी से दोस्ती बताई जाती है। सियासत में साथ आने के बाद ये दोनों नेता एक दूसरे के सच्चे दोस्त बन गए थे। सियासत में आज भी इन नेताओं की दोस्ती के किस्से बयां किए जाते हैं। 986 में राजीव गांधी कैबिनेट में माधवराव सिंधिया रेल मंत्री थे। हालांकि माधवराव सिंधिया और राजीव गांधी दोनों ही नेताओं का निधन हो चुका है।
इसे भी पढ़ें- ज्योतिरादित्य ने 33 साल पुराने बंगले को छोड़ा, आज भी घर के बाहर लगाकर रखते हैं पिता माधवराव का नेमप्लेट राहुल-ज्योतिरादित्य भी दोस्त
पिता माधवराव और राजीव की दोस्ती के बाद, बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया और राहुल गांधी के बीच भी गहरी दोस्ती है। दोनों नेता अक्सर एक साथ दिखाई देते हैं।
पिता माधवराव और राजीव की दोस्ती के बाद, बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया और राहुल गांधी के बीच भी गहरी दोस्ती है। दोनों नेता अक्सर एक साथ दिखाई देते हैं।