उन्होंने कहा- बगैर किसानों से चर्चा किए, बगैर किसान संगठनों को विश्वास में लिए, बगैर विपक्षी दलों से चर्चा किए, बगैर मत विभाजन के कोरोना जैसी महामारी में संसद का सत्र बुलाकर आनन-फानन में इन कानूनों को किसानों पर जबरन थोपा गया है। इन कानूनों का देशभर के किसान खुलकर विरोध कर रहे हैं। पिछले एक माह से इन तीन काले कानूनों के खिलाफ पूरे देश के अन्नदाता कड़ाके की ठंड में सड़कों पर अपने परिवारों के साथ शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन कर रहे हैं।
अभी तक 35 से ज्यादा किसान इस आंदोलन के दौरान शहीद हो चुके हैं लेकिन सरकार अपनी हठधर्मिता व हिटलरशाही दिखा रही है। वो इन कानूनों को वापस नहीं ले रही है। वो इसे किसानों का आंदोलन तक मानने को तैयार नहीं है। ऐसा देश में पहली बार हुआ है कि जब देश का अन्नदाता सड़कों पर है और सरकार उसकी सुनवाई तक करने को तैयार नहीं है।
एक तरफ चर्चा की बात की जा रही है। वहीं, दूसरी तरफ किसानों का दमन किया जा रहा है। उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है, उन्हें कोसा जा रहा है और उन्हें धमकाया जा रहा है। इन कानूनों का हश्र भी नोटबंदी व गलत तरीके से थोपी गयी जीएसटी की तरह ही होगा। जिसको लेकर भी कालेधन से लेकर आतंकवाद खत्म तक होने के झूठे सपने दिखाये गये थे।