प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और मुख्यमंत्री कमलनाथ व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राकेश सिंह की छह महीने के भीतर ये दूसरी अग्नि परीक्षा होगी। विधानसभा के पहले मुकाबले में बाजी कमलनाथ के हाथ रही है। महाकौशल में बंपर जीत के साथ वे राज्य के मुख्यमंत्री बन गए। राकेश को घर में ही मात मिली थी। प्रदेश की सत्ता भाजपा के हाथ से फिसलकर कांग्रेस के पास आ गई है।
छिंदवाड़ा: 1980 के बाद दूसरी बार ऐसा होगा जब छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से कमलनाथ चुनाव मैदान में नहीं होंगे। वे यहां से विधानसभा उपचुनाव लड़ेंगे। लोकसभा चुनाव उनके बेटे नकुलनाथ का लडऩा लगभग तय है। हाल के विधानसभा चुनाव में छिंदवाड़ा जिले की सातों सीट जीतकर कांग्रेस उत्साह में है।
भाजपा के सामने प्रत्याशी चयन की दुविधा है। पिछले चुनाव में भाजपा के चौधरी चंद्रभान सिंह हाल का विधानसभा चुनाव भी हार चुके हैं। ऐसे में भाजपा पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान या पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल पर दांव लगा सकती है।
जबलपुर: राकेश सिंह की इस परंपरागत सीट के समीकरण विधानसभा चुनाव ने बदल दिए हैं। 2014 में राकेश दो लाख से अधिक मतों से जीते थे, लेकिन यह अंतर घटकर अब 31 हजार वोटों का रह गया है।
विधानसभा चुनाव में राकेश यहां बगावत को नहीं रोक पाए और उसका परिणाम यह रहा कि भाजपा सीटों के साथ वोटों में पिछड़ गई। कांग्रेस ने शहरी सीटों पर भी सेंध लगाकर गणित को बिगाड़ दिया है। बगावत की आग अभी भी ठंडी नहीं हुई है, अगर पार्टी ने एकजुटता नहीं कायम की तो मुश्किल बढ़ेगी।
अभी तो भाजपा के लिए राहत की बात यही है कि कांग्रेस के पास कोई बड़ा चेहरा इस सीट के लिए नहीं है, लेकिन जिस तरह से भाजपा छिंदवाड़ा में घेरेबंदी की रणनीति बना रही है, कांग्रेस भी जबलपुर में राकेश सिंह को घेरने के लिए चौंकाने वाला चेहरा उतार सकती है।
बालाघाट : कमलनाथ के प्रभाव की महाकौशल की दूसरी सीट बालाघाट है। उनका राजनीतिक कौशल और रणनीति इस सीट पर दांव पर होगा। छिंदवाड़ा से सटी इस सीट पर कांग्रेस हाल के विधानसभा चुनाव में वोटों का बड़ा अंतर पाटने में कामयाब हुई है।
2014 में बोध सिंह भगत 96 हजार मतों से जीते थे। 2018 में यह घटकर आधी रह गई है। बालाघाट में भगत और पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन के बीच जिस तरह का टकराव है वह भाजपा को भारी पड़ सकता है। कांग्रेस ने प्रदीप जायसवाल को मंत्री और हिना कांवरे को विधानसभा उपाध्यक्ष बनाकर भाजपा की इस सीट पर घेरेबंदी की है।
मंडला : भाजपा के लिए सबसे अधिक खतरे में मंडला है। पार्टी के बड़े आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते इस सीट से पांच बार सांसद बने हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल से उन्हें हटाए जाने के बाद से लगातार परफार्मेंस गिरा है।
2014 में वे एक लाख से अधिक वोट से जीते थे। हाल के विधानसभा चुनाव में पूरा परिणाम ही पलट गया और कांग्रेस को 1.22 लाख वोटों की बढ़त मिली है। एंटीइंकंबेंसी की वजह से इस बार कुलस्ते की राह कठिन हो गई है।
विंध्य में पहला चरण…
सीधी: चुनाव से पहले सीधी लोकसभा सीट सांसद रीति पाठक और दूसरे नेताओं के विवादों के लिए सुर्खियों में है। कुछ दिन पहले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने ही पाठक और स्थानीय विधायक केदारनाथ शुक्ला की मंच पर ही भिड़ंत हो गई।
सदस्यता जनसंपर्क अभियान के लिए लोगों से निजी जानकारी मांगने को लेकर भी वे विवाद में घिर गईं थीं। भाजपा की यह अंदरूनी लड़ाई पाठक और पार्टी दोनों पर भारी पड़ सकती है।
विधानसभा चुनाव में बड़ी हार झेल चुकी कांग्रेस के सामने बड़ा संकट प्रत्याशी को लेकर है। यह राहत तो है पर अप्रत्याशित परिणाम वाले सीधी लोकसभा सीट पर भाजपा की राह आसान नहीं है।
शहडोल : विंध्य की इकलौती आदिवासी सीट शहडोल बीते पांच साल में तीन चुनाव हो चुके हैं। हर चुनाव में भाजपा ने जिस तरह से खोया है उससे आगे की मुश्किलें कम नहीं हैं। 2014 में यहां से दलपत सिंह परस्ते डेढ़ लाख से अधिक मतों से जीते थे।
उनके निधन के बाद 2016 के उपचुनाव में ज्ञान सिंह की बढ़त घटकर 56 हजार हो गई। 2018 में भाजपा 21 हजार मतों से कांग्रेस से पिछड़ गई। ज्ञान सिंह अपने कार्यकाल में विवादित बयानों को लेकर भी चर्चा में रहे। हाल ही में शहडोल लोकसभा उपचुनाव के निर्वाचन को कोर्ट ने शून्य घोषित कर दिया है। चुनाव से पहले भाजपा को यह बड़ा झटका परेशानी खड़ा कर सकता है।