जुगनू अंधेरे में रहने वाला कीट है, लेकिन जहां रोशनी होती है वहां इनके प्रजनन में दिक्कत आती है। नर कीट कृत्रिम रोशनी में मादा को आकर्षित नहीं कर पाता। बड़े तालाब के आसपास कई जगह दूधिया रोशनी और सोडियम लैंप लग गए हैं। इससे ये खत्म हो रहे हैं। इनका प्राकृतिक रहवास खत्म होना भी एक कारण है।
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नर जुगनू मादाओं को रिझाने और दूसरे शिकारियों को अपने से दूर रखने के लिए टिमटिमाते हैं। जुगनुओं की हर चमक का पैटर्न साथी को तलाशने का प्रकाशीय संकेत होता है। जुगनुओं की तरह ही उनके अंडे भी चमकते हैं। मादा के पंख नहीं होते। वह एक ही जगह पर चमकती हैं।
पर्यावरणविद सुभाष सी. पांडे बताते हैं, शहरीकरण से हरियाली खत्म हुई है। तालाबों के किनारे पक्के निर्माण हुए। इससे जुगनू का रहवास खत्म हुआ। ये जहरीले रसायनों से मुक्त पानी के पास पाए जाते हैं। पराग या मकरंद के सहारे जिंदा रहते हैं। इनके जीवन का बड़ा हिस्सा लार्वा के रूप में जमीन या जमीन के नीचे या फिर पानी में बीतता है। अभी
भोपाल का बड़ा तालाब किनारे बोरवन-रामसर साइट पर रात में जुगनू दिखते हैं।
क्यों पैदा होती है रोशनी
जुगनुओं की दुनिया में 2000 से अधिक प्रजातियां हैं। इन्हें कहीं जुगनू, जोनाकी पोका तो जोनाकी पोरुआ कहते हैं। जुगनू के पेट में रोशनी पैदा करने वाला अंग होता है। ये विशेष कोशिकाओं से ऑक्सीजन लेते हैं। इसे लूसीफेरिन नामक तत्व से मिलते हैं। इससे रोशनी पैदा होती है। इस रोशनी में गर्मी न के बराबर होती है। रोशनी को बायोल्यूमिनिसेंस कहते हैं।