खो चुके है स्मरण शक्ति
डिग्री मिलने पर किसी मासूम की तरह चहक उठे। डिग्री को सीने से लगा लिया। जानकारी के लिए बता दें कि बशीर बद्र की सेहत इन दिनों काफी नासाज है। वे अपनी स्मरण शक्ति खो चुके है। कई बार एकदम से कुछ याद आने पर वे उसे दोहराने लगते हैं। वर्ष 1973 में उन्होंने आजादी के बाद की गजल का तनकीदी मुताला शीर्षक से अपनी थीसिस एएमयू में समिट की थी। पीएचडी की यह डिग्री उनकी पत्नी के प्रयासों से एएमयू ने डाक से भेजी है।
लोगों के जुबान पर हैं शेर
बहुत सरल भाषा में अपनी बात, अपने भाव और एहसास को आम आदमी तक पहुंचा देना बहुत बड़ी कला है और बशीर में ये प्रतिभा कूट-कूटकर भरी है। ग़ज़ल को लोकप्रिय बनाने में बशीर का नाम अगली पंक्तियों में शुमार है। बशीर साहब की भाषा में वो रवानगी मिलती है जो बड़े-बड़े शायरों में नहीं मिलती। उनके अनगिनत शेर दशकों से लोगों के जुबान पर हैं। ऐसा ही एक शेर है…
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए