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क्या था बुजुर्ग की मौत का कारण?
वैसे तो लॉकडाउन के कारण देशभर के गरीब-मजदूरों के सामने मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। देश में ऐसे करोड़ों लोग हैं, जो मजदूरी करके रोजाना की कमाई के आधार पर अपनी आजीविका चलाते हैं। ऐसे कई लाखों लोग हैं, जो भीख मांगकर अपना गुजारा करने को मजबूर हैं। इनमें कुछ माजूर हैं, और कुछ आदत से मजबूर हैं, जो इस तरह अपनी आजीविका चलाते हैं। हालांकि, ये सभी लोग लॉकडाउन के कारण बड़े संकट से जूझ रहे हैं। इसी बीच सोशल मीडिया पर राजधानी भोपाल की एक विचलित कर देने वाली फोटो वायरल होने लगी। तस्वीर के साथ ये दावा किया जा रहा था कि, ये बुजुर्ग भीख मांगकर गुजारा करता था, लॉकडाउन के चलते खाना न मिलने के कारण इसकी मौत हो गई।
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पुलिस से मिली जानकारी
पत्रिका ने इस फोटो की पड़ताल की तो सामने आया कि, फोटो में मृत अवस्था में सड़क किनारे पड़ा बुजुर्ग शहर के बीचों बीच नादरा बस स्टेंड से रेलवे स्टेशन मार्ग पर लोगों से मांगकर अपना गुजारा किया करता था और इसी इलाके में किसी फुटपाथ या सड़क के किनारे पर रहता था। हालांकि, पुलिस ने शव का पंचनामा बनाकर उसे शहर के हमीदिया अस्पताल पहुंचवा दिया था, जिसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट आना फिलहाल बाकी है। पुलिस के मुताबिक, क्योकिं अब तक शव की पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं आई है, इसलिए स्पष्ट तौर पर ये कहना संभव नहीं है कि, बुजुर्ग की मौत का कारण क्या था।
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इस वजह से गई बुजुर्ग की जान
प्राप्त जानकारी के अनुसार, बुजुर्ग हमेशा बस स्टेंड से रेलवे स्टेशन के बीच मार्ग पर भीख मांगकर अपना गुजारा किया करता था। कुछ लोगों ने तो यहां तक बताया कि, जब से लॉकडाउन लगा है, तभी से उसके सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया था। क्योंकि, बस स्टेंड से लेकर रेलवे स्टेशन तक न तो कोई सवारी थी, जिससे वो भीख मांगता और न ही शहर भर में कहीं कोई खाने पीने की होटल खुली थी, जहां से भोजन मांगकर वो अपने पेट की आग को बुझा पाता। एक दो दिन में कोई भला मानस उसे कुछ खाने को दे देता तो सड़क के किनारे फुटपाथ पर पड़े रहकर खा लेता। पर बुजुर्ग हाथ पेरों में इतनी जान कहां थी कि, दो-तीन दिनों के भीतर मिलने वाले कुछ खाने के जरिये हाथ-पैरों के लिए कुछ दम भर पाता।
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शख्स ने सुनाया आंखों देखा हाल
जानकारी देने वाला शख्स भी उसी बस स्टेंड के फुटपाथ पर भीख मांगकर गुजारा करता है। वो उस मरते हुए बुजुर्ग की मदद इसलिए नहीं कर पाया क्योंकि, उसके पास खुद भी बुजुर्ग की मदद करने के लिए कुछ नहीं था। उसने बताया कि, बीते तीन दिनों से तो बुजुर्ग उसी जगह पर पड़ा था, जहां से आज पुलिस उसे मृत अवस्था में उठाकर ले गई हैं। अब वो मरा कब होगा, ये तो पुलिस और जांच करने वाले डॉक्टर ही जानें।
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महत्वपूर्ण है ये जानकारी
फिलहाल, बुजुर्ग की मौत ने तो शायद उसकी पीड़ा को खत्म कर दिया, लेकिन इस लॉकडाउन के कारण ऐसे कई लोग हैं, जो लगभग ऐसी ही पीड़ा का सामना रोजाना कर रहे हैं। सवाल ये है कि, जिन जिम्मेदारों के पास सड़क से वाहन लेकर गुजरने वाले हर शख्स का रिकॉर्ड है, किस इलाके में कितने कोरोना संक्रमित और कितने अन्य बीमारियों से ग्रस्त लोगों का रिकॉर्ड है, शहर की सीमा में किस व्यक्ति ने कहां से प्रवेश लिया है इसका रिकॉर्ड हैं, तो फिर ऐसे गरीब, मांगकर गुजारा करने वालों का कोई पुख्ता रिकॉर्ड क्यों नहीं है। अब वो बुजुर्ग भीख मांगकर गुजारा करने वाला गरीब था, ये सोचकर उसकी मौत को नज़रअंजाद तो नहीं किया जा सकता न, वो भी एक इंसान ही था।