मंच से परे चरित्र को रियल जिंदगी में भी जीता है गणपतराव
नाटक में दिखाया कि गणपतराव नटसम्राट की उपाधि मिलने पर थियेटर से तो रिटायर्ड हो जाते हैं, लेकिन हमेशा अपने निभाए गए चरित्रों को भी वर्तमान में जीते रहते हैं। जैसे मंच के अंधेरे उजाले रोशनी को अपनी जिंदगी के पास बैठाए हुए है। उनका बेटा और शादीशुदा बेटी ऐसा मानते है कि उन्होनें घर में भी थियेटर जैसा माहौल बना दिया है। इधर पत्नी की जिदंगी पति और बच्चों के बीच पिसती रहती है। गणपतराव को लगता कि जिन बच्चों को जन्म दिया पाला पोसा वहीं उनकी जिदंगी का कांटा बन गए है। दुनिया ने उसे आजाद खयाल नट के खिताब से नवाजा है।
जिंदगी की त्रासदी का समुद्र
गणपतराव के व्यवहार में दोहराव नहीं है, यह उसकी शख्सियत की अटूट हिस्सा रहा। अभिनेता होना बहुत कठिन है, जिस तरह स्त्री के पास ढेर सारा अनकहा दुख होता है ठीक उसी तरह ट्रेजेडी किंग नटसम्राट गणपतराव के पास जिंदगी की त्रासदी का समुद्र है। लेकिन इसे वह कहना नहीं चाहता है। एक समय ऐसा आता है कि वह कहता है कि दूर हटो दूर हटो दया दिखाने के लिए यह जूलियस सीजर किसी से प्रार्थना नहीं करता और कोई प्रार्थना करे उस पर दया नहीं करता।