भोपाल

छोटे हो रहे बच्चों के हाथ-पैर, गर्दन की लंबाई भी लगातार हो रही कम

डाउन सिंड्रोम जेनेटिक डिसऑर्डर से बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास हो रहा है धीमा, डाउन सिंड्रोम के जिला अर्ली इंटरवेंशन रिसोर्स सेंटर में अब तक 257 मामले आए सामने

भोपालMar 21, 2023 / 10:17 am

deepak deewan

डाउन सिंड्रोम जेनेटिक डिसऑर्डर

भोपाल. एमपी में बच्चे छोटे हो रहे हैं। बच्चों के हाथ पैर के साथ गर्दन की लंबाई भी कम हो रही है। दरअसल डाउन सिंड्रोम जेनेटिक डिसऑर्डर के कारण ऐसा हो रहा है। बुरी बात तो यह है कि डाउन सिंड्रोम से पीडि़त बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। भोपाल के जेपी अस्पताल परिसर में जिला अर्ली इंटरवेंशन रिसोर्स सेंटर यानि समर्पण केंद्र में साल 2014 से अब तक डाउन सिंड्रोम के 257 बच्चे सामने आए हैं। 31 मार्च 2022 से अब तक 29 बच्चे इस सिंड्रोम के रजिस्टर हो चुके हैं।

क्या होता है डाउन सिंड्रोम जेनेटिक डिसऑर्डर
जीएमसी के पीडियाट्रिक विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शर्मिला रामटेके के अनुसार डाउन सिंड्रोम जेनेटिक डिसऑर्डर है जिससे बच्चों का शारीरिक एवं मानसिक विकास धीमा हो जाता है। यह एक जन्मजात विकार है इसलिए थैरेपी के जरिए ही बच्चों के टैलेंट को उभारा जा सकता है। समर्पण केंद्र से मिली जानकारी के अनुसार यहां साल 2014 से 15 हजार बच्चों में शुरुआती लक्षण देखे गए, इसमें से 257 बच्चों में जेनेटिकली डाउन सिंड्रोम की गंभीर समस्या मिली। बाकी बच्चों में हियरिंग विजन कैटरेक्ट आदि दूसरी संबंधित बीमारियां पाई गई। इन सभी को थैरेपी दी जा रही है। गौरतलब है कि समर्पण केंद्र में 31 मार्च से अगले साल एक अप्रेल तक की लिस्ट बनाई जाती है।

टेलेंटेड होते हैं डॉउन सिंड्रोम वाले
एनजीओ आरुषि संस्था में इस समय 15 से 16 बच्चे डॉउन सिंड्रोम के थैरेपी के लिए आते हैं। इससे ग्रस्त बच्चे को दवाओं के साथ स्पीच, फिजिकल थेरेपी, बिहेवियरल थेरेपी और एजुकेशन दी जाती है। संस्था की कार्यकारी समन्वयक सपना गुप्ता ने बताया कि परिवार के सहयोग और सही ट्रेनिंग से बच्चे सेल्फ डिपेंडेंट बन सकते हैं। डाउन सिंड्रोम तब होता है जब 21वें गुणसूत्र का दोहराव होता है। इसमें बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है। मगर ऐसे बच्चे काफी टेलेंटेड, सोशल और केयरिंग होते हैं। संस्थान में पांच साल पहले आई स्तुति दोशी वर्तमान में एक बड़े निजी होटल में जॉब कर रही है। स्तुति को थिएटर में खासा इंट्रेस्ट था और उसने संस्थान के जरिए कई थिएटर शो में भाग भी लिया।

इसके प्रभाव
– शारीरिक विकास देर से होता है
– सोचने, समझने, सीखने में मुश्किल आती है
– बच्चा बोलना देर से शुरू करता है
– इम्यून डेफिशिएंसी
– गर्दन के पिछले हिस्से पर अतिरिक्त त्वचा होती है
– कई बार यह थायरॉइड की समस्या
– हृदय रोग से जुड़ी परेशानी

इसके लक्षण
– ऐसे बच्चों का सिर मुंह और कान का आकार छोटा या बड़ा होता है।
– इनकी जीभ की बनावट कुछ अलग होती है।
– आंखों की बनावट भी सामान्य से कुछ अलग नजर आती है।
– हाथ.पैर छोटे होते हैं।
– उंगलियां भी छोटी होती हैं।
– गर्दन भी कम लंबाई की होती है।

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