संस्था में सभी जरूरी मामलों की देखरेख करने वाली प्रीती साहू ने बताया, हमारा उद्देश्य इन अनाथ मासूमों को एक बेहतर जिंदगी देना है। संस्था द्वारा संचालित सेवा विद्या मंदिर में बच्चों को शिक्षा प्रदान की जाती है। यहां सरकार के अलावा कई सामाजिक संस्था और आम लोग भी चैरिटी करते हैं। प्रीती साहू ने बताया, यहां लोगों के घर का खाना नहीं लिया जाता है, बल्कि इसके अलावा अगर कोई एक दिन का भोजन आयोजित करना चाहता है, तो वह संस्था की चैरिटी में पैसे डाल सकता है। उन्होंने बताया यहां 15-20 बच्चे हर साल आते हैं।
पालने में छोढ़ जाते हैं शिशुओं को
अनाथालय के बाहर एक पालना लगा हुआ है, जिसपर लिखा हुआ है कृपया शिशुओं को फेंके न यहां दे जाएं। प्रीती साहू ने बताया, ऐसे लोग जो बच्चों को छोढ़ने आते हैं, वो सीसीटीवी में कैद हो जाते हैं, लेकिन हम उनसे शिशु को वापस ले जाने को नहीं कहते, क्योंकि ऐसा करने पर वे अपने बच्चों को फेंक देते हैं। उन्होंने बताया अधिकतर ऐसे लोग जिनकी दूसरी शादी हो जाती है, या ऐसे लोग जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, वे अपने बच्चों को पालने में छोढ़कर वैल बजाकर चले जाते हैं। जिसके बाद हम सभी जरूरी प्रक्रियाओं को पूरा कर शिशु को अपनी हिफाजत में रखते हैं। जबकि 3-6 वर्ष की आयु के बच्चे मेले या सड़क पर मिलते हैं, जिसकी आम लोग हमें जानकारी देते हैं। उन्होंने बताया कुछ लोग हमारे समझाने पर बच्चों को वापस रख लेते हैं। यहाँ एक 2 साल की बच्ची पैरालाइज्ड है, जिसकी देखभाल संस्था करती है। बच्चों के लंच का समय सुबह 12 बजे जबकि उन्हें डिनर रात्रि 7 बजे दिया जाता है।
यशोदा करती हैं मां की तरह देखभाल
अनाथालय में बच्चों के खेलने कूदने के खिलौने, झूला, मनोरंजन के लिए टीवी व तमाम तरह की सुविधाऐं दी जाती हैं। साथ ही शिशुओं की देखभाल के लिए महिलाऐं कार्यरत रहती हैं, जिन्हें यशोदा कहा जाता है। यशोदा बच्चों की सेवा में दिन रात तत्पर रहती हैं साथ ही उन्हें मानवीय संस्कार जैसे मूल्य सिखाना व उन्हें लोरी आदि सुनाना यशोदा इस तरह एक मां का फर्ज अदा करती हैं।
पढाने से की थी शुरूआत, बन गया बच्चों का आश्रय
प्रीती साहू ने बताया, इसकी शुरूआत संघ के एक नेता विष्णु कुमार ने की थी। उन्होंने पहले यहां बच्चों को पढाने से शुरूआत की थी, लेकिन धीरे-धीरे आसपास के लोगों ने मदद करना शुरू किया, जिससे उन्होंने इसे 1997 में एक अनाथालय में तब्दील कर दिया। तभी से यहां मासूमों की देखभाल की जा रही है। यहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अलावा, मेनका गांधी समेत कई नेता बच्चों से रूबरू होने के लिए आते रहे हैं।
कोविड़ ने 250 से अधिक बच्चों को किया अनाथ
प्रदेश में कोरोना महामारी के दौरान करीब 250 बच्चे अनाथ हो गए थे। इसके अलावा 1200 बच्चों ने अपने माता पिता को खो दिया। इसके लिए राज्य सरकार ने अनाथ बच्चों को राहत देने का कार्य किया। जिन बच्चों ने अपने माता-पिता दौनों को खो दिया, उन्हों 21 वर्ष की आयु तक 5000 रुपए प्रति माह का भरण पोषण प्रदान किया जाएगा। संस्था की प्रमुख प्रीती साहू ने बताया, कोरोना में जिन बच्चों ने अपनों को खोया था, संस्था ने उन्हें भी शरण देने का काम किया है।