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भोपाल

जिसने भी किया है ये व्रत उसका हर संकट हर लेंगे भगवन

सारे संकट हर कर भगवान कृष्ण खुशहाली, सम्पन्नता और समृद्धि से आपका आंगन भर देंगे। जानें डोल ग्यारस का विशेष महत्व…

भोपालSep 02, 2017 / 01:38 pm

sanjana kumar

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भोपाल। डोल ग्यारस हिन्दू धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं। इसीलिए यह ‘परिवर्तनी एकादशी’ भी कही जाती है। इसके अलावा यह एकादशी ‘पद्मा एकादशी’ और ‘जलझूलनी एकादशी’ के नाम से भी जानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन जो भी व्रत पूजन करता है उसे वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। यानी सारे संकट हर कर भगवान कृष्ण खुशहाली, सम्पन्नता और समृद्धि से आपका आंगन भर देंगे। जानें डोल ग्यारस का विशेष महत्व…

 

‘डोल’ में विराजेंगे भगवन, राजधानी की करेंगे सैर

डोल ग्यारस के दिन भगवान श्रीकृष्ण की स्थापना कर विशेष पूजन अर्चन के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है। डोल यानि एक रथ को सजाया जाएगा…स्थापित कृष्ण को इसमें बैठाया जाएगा। फिर इनके साथ बाल गोपाल और राधा रूप में सजे नन्हें बच्चों को रथ में बैठाकर शहर के प्रमुख मार्गों से शोभा यात्रा निकाली जाएगी। कोई बच्चा भगवान शिव का रूप लेगा तो कोई पार्वती बन जाएगा। किसी को भगवान राम और सीता के रूप में तैयार किया जाएगा तो किसी को राधा-कृष्ण की तरह सजाकर रथ में सवार भगवान श्रीकृष्ण के साथ बैठाकर झांकी तैयार की जाएगी। कृष्ण मंदिरों में विशेष आयोजन किए जा रहे हैं।

होगा विसर्जन भी

इन दिनों गणेशोत्सव जारी है। आज डोल ग्यारस के दिन कई लोग गणेश विसर्जन भी करेंगे। कुछ भक्त इन झांकियों में भगवान श्रीकृष्ण के साथ ही गणपति को भी बैठाकर शहर भर की सैर कराते हुए विसर्जित करने की परम्परा निभाते हैं।

क्यों मनाई जाती है डोल ग्यारस

माना जाता है कि डोल ग्यारस के दिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप का जलवा पूजन किया गया था। माता यशोदा ने बालगोपाल कृष्ण को नए वस्त्र पहनाकर सूरज देवता के दर्शन करवाए थे। उसके बाद उनका नामंकरण किया गया था। इस दिन भगवान कृष्ण के आगमन के कारण गोकुल में जश्न मनाया गया था। यही कारण है आज भी उसी प्रकार से कई स्थानों पर इस दिन मेले एवं झांकियों का आयोजन किया जाता है। माता यशोदा की गोद भरी जाती है। कृष्ण भगवान को डोले में बिठाकर झांकियां सजाईं जाती हैं। कई कृष्ण मंदिरों में नाट्य-नाटिका का आयोजन भी किया जाता हैं। मान्यता है कि इस दिन जो भी व्रत पूजन करता है उसे वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। 

 

वाजपेय यज्ञ

वाजपेय यज्ञ का विशिष्ट धार्मिक एवं वैदिक महत्व है। यह सोमा यज्ञों का सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ है। यज्ञ आमतौर पर उच्च स्तर और बड़े पैमाने पर किया जाता है। भारतीय इतिहास बताता है कि सवाई जय सिंह ने कम से कम दो यज्ञ प्रदर्शन किए जो वैदिक साहित्य में वाजपेय और तथा अश्वमेध नामों से वर्णित हैं। ‘ईश्वरविलाश महाकाव्य’ के अनुसार ‘जय सिंह प्रथम ने वाजपेय यज्ञ किया और सम्राट उपाधि धारण की। आधुनिक भारत में बाजपेयी लोगों ने अभिनय शिक्षा, साहित्य, कूटनीति, राजनीति में महत्वपूर्ण सम्मान अर्जित किया है।
भगवान विष्णु के वामनावतार की पूजा

डोल ग्यारस के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की भी पूजा की जाती है, क्योंकि इसी दिन राजा बलि से भगवान विष्णु ने वामन रूप में उनका सर्वस्व दान में मांग लिया था एवं उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर अपनी एक प्रतिमा को राजा बलि को सौंप दी थी। यही कारण है कि इसे वामन ग्यारस के नाम से भी जाना जाता है।
जानें महत्व

* डोल ग्यारस के दिन व्रत करने से व्यक्ति के सुखों में वृद्धि होती है।
* उसे सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
* डोल ग्यारस के विषय में यह भी मान्यता है कि इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण के वस्त्र धोए थे। इसी कारण से इसे एकादशी को ‘जलझूलनी एकादशी’ भी कहा जाता है।
* इस व्रत के प्रताप से सभी दुखों का नाश हो जाता है और खुशियां आपके घर-आंगन में हमेशा के लिए बस जाती हैं।
* इस दिन भगवान विष्णु के साथ बाल कृष्ण के रूप की पूजा की जाती हैं। जिनके प्रभाव से सभी व्रतों का पुण्य मनुष्य को मिलता हैं।
* जो मनुष्य इस एकादशी को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उसके हर संकट का अंत होता है।

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