ऐसे समझें, क्यों मुश्किल है बंटवारा -23 पानी की टंकियां, दो बड़े सम्पवैल दोनों निगमों की उलझन हैं। एक निगम क्षेत्र में मौजूद टंकी से दूसरे में जलापूर्ति कैसे होगी? यदि पानी बंद किया तो वैकल्पिक व्यवस्था क्या होगी? ये कुछ सवाल हैं, जिनका जवाब न तो जिला प्रशासन और न ही नगरीय प्रशासन विभाग के पास है। सभी मामले को दिखवाने की बात कह रहे हैं।
-कोलार नगर निगम के प्रस्तावित क्षेत्र करोंद, भानपुर, गोविंदपुरा में सीवेज लाइन तो है, पर पर्याप्त ट्रीटमेंट प्लांट नहीं हैं। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भोपाल नगर निगम की सीमा में है। सवाल ये है कि इस प्लांट से दूसरी नगर निगम का सीवेज क्यों ट्रीट किया जाएगा? अमृत योजना की 200 किमी लंबी सीवेज लाइन कोलार समेत भोपाल नगर निगम सीमा में भी है। ऐसे में एक नेटवर्क का दो नगर निगम कैसे प्रबंधन करेंगे?
-नगर निगम की 2500 किमी लंबी सड़कों में से 600 किमी की रोड दोनों नगर निगमों में है। इनके निर्माण और मेन्टेनेंस में परेशानी आएगी। चार लाख की आबादी सीधी प्रभावित होगी। एक्सपर्ट बोले— पानी सड़क का जिम्मा संभालें दूसरी एजेंसियां
-जलापूर्ति एक्सपर्ट आरबी राय का कहना है कि निगम में जलापूर्ति का जिम्मा संभालने वाले सभी इंजीनियर पीएचई के हैं। सिस्टम भी पीएचई का है। ऐसे में यदि शहर की जलापूर्ति व्यवस्था नगर निगम से वापस लेकर इसी तरह की अन्य एजेंसी या पीएचई को देना चाहिए। इससे जलापूर्ति व्यवस्था बेहतर होगी। प्रोजेक्ट भी समय पर पूरे होंगे।
-सीवेज सिस्टम एक्सपर्ट आरके त्रिवेदी बताते हैं कि राजधानी के सीवेज सिस्टम को प्रबंधन के लिहाज से अलग नहीं किया जा सकता। ये एक दूसरे से मिलकर ही बना है। यदि दो नगर निगम बनती हैं तो दोनों को इसके लिए संयुक्त टीम बनानी होगी।
-पूर्व टाउन प्लानर वीपी कुलश्रेष्ठ का कहना है कि शहर की सड़कें और अन्य निर्माण के लिए राजधानी परियोजना प्रशासन का गठन हुआ था। शहर की सड़कें सीपीए को सुपुर्द की जाएं। वैसे भी नगर निगम के पास खुद के इंजीनियर नहीं हैं। तकरीबन सभी इंजीनियर प्रतिनियुक्ति पर सीपीए या पीडब्ल्यूडी से आए हैं।
जो बेहतर होगा वही करेंगे अभी सुझाव-आपत्तियां आ रही हैं। संबंधित अफसर शहरहित में जो बेहतर होगा, वही करेंगे। दिक्कत जैसी कोई बात नहीं है।
संजय दुबे, प्रमुख सचिव, नगरीय प्रशासन
संजय दुबे, प्रमुख सचिव, नगरीय प्रशासन