राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के हवाले से कहा गया है कि आयोग द्वारा ऐसे मामलों पर गंभीर आपत्तियां ली गई हैं। इसलिए किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी विधि सुसंगत प्रावधानों एवं प्रक्रिया के तहत ही की जाए। दरअसल, अलीराजपुर में कुछ महीने पहले पुलिस पर आदिवासियों को पानी की जगह पेशाब पिलाने का आरोप लगा था। इसे राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने गंभीरता से लिया था और मप्र पुलिस से जवाब तलब भी किया था। इसके बाद आयोग ने तीन प्रावधान लागू करने की अनुशंसा की थी।
इसमें कहा गया था कि इस घटना के पीडि़तों को 50-50 हजार रुपए दिया जाए। विधि संगत बर्ताव किया जाए और अनावश्यक मारपीट न की जाए। पुलिस मुख्यालय ने इसके परिप्रेक्ष्य में आदेश जारी कर ऐसा बर्ताव नहीं करने संबंधी आदेश जारी कर दिया। इसकी सोशल मीडिया में दिन भी आलोचना हुई। इसके साथ कई कांग्रेस और भाजपा नेताओं ने भी इसके विरोध में बयान जारी किए।
डीजीपी ने कहा सभी वर्गों के हित संरक्षण के लिए हैं निर्देश
आदेश की गलत व्याख्या से हुए विवाद के बाद सरकार और पुलिस की दिनभर आलोचना हुई तो डीजीपी वीके सिंह ने बुधवार को स्पष्टीकरण जारी किया। उन्होंने कहा कि अजाक शाखा द्वारा जारी परिपत्र में दिए गए दिशा-निर्देशों की कुछ लोगों द्वारा गलत व्याख्या की गई है। यह परिपत्र पूर्णत: समाज के सभी वर्गों के हितों को ध्यान में रखकर जारी किया गया है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग द्वारा दिए गये आदेश के परिपालन में समाज के कमजोर वर्गों के हितों को संरक्षित करने के लिए जारी किया गया है। परिपत्र में दर्शाए गए दिशा-निर्देशों के माध्यम से समाज के सभी वर्गों के मानवाधिकारों का संरक्षण किया गया है। परिपत्र में हर व्यक्ति के विधिक अधिकारों के संरक्षण का स्पष्ट उल्लेख है।